विडंबना. अंचल के प्रारंभिक विद्यालयों में नामांकित दिव्यांगों को कई वर्षों से नहीं मिला है संसाधन
Advertisement
अपंग है दिव्यांगों को पढ़ाने का सिस्टम
विडंबना. अंचल के प्रारंभिक विद्यालयों में नामांकित दिव्यांगों को कई वर्षों से नहीं मिला है संसाधन दिघवारा : कहते हैं कि दिव्यांग बच्चों की तकदीर शिक्षा के सहारे संवारी जा सकती है और शिक्षा के प्राप्ति के बाद संसाधन बने दिव्यांग परिवार, समाज, राज्य व देश के लिए बोझ नहीं बन सकते हैं, मगर जब […]
दिघवारा : कहते हैं कि दिव्यांग बच्चों की तकदीर शिक्षा के सहारे संवारी जा सकती है और शिक्षा के प्राप्ति के बाद संसाधन बने दिव्यांग परिवार, समाज, राज्य व देश के लिए बोझ नहीं बन सकते हैं, मगर जब सरकारी विद्यालयों में दिव्यांग बच्चों को पढ़ाने का सिस्टम ही ‘अपंग’ हो तो सहज कल्पना की जा सकती है कि दिव्यांग बच्चों का भविष्य कैसा होगा और वे लोग बोझ बनेंगे या संसाधन? जी हां, दिघवारा अंचल के सात संकुलों अधीन 94 विद्यालयों में नामांकित लगभग 250 दिव्यांग बच्चों के लिए पढ़ाई के नाम पर सिर्फ कोरम पूरा किया जाता है. भले ही इन बच्चों को विकलांग से दिव्यांग कहा जाने लगा,
नाम तो बदले मगर हालात नहीं और आज भी ऐसे दिव्यांगों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ. छह से 14 आयु वर्ग के विभिन्न प्रकार के सैकड़ों दिव्यांगों प्रारंभिक विद्यालयों में नामांकित हैं, मगर लोगों को पढ़ाने के लिए न तो प्रशिक्षित शिक्षक की व्यवस्था है और न ही संसाधनों का उचित इंतजाम. यह कहें कि दिव्यांगों को पढ़ाने का सिस्टम ही पंगु है और सिर्फ कोरम पूरा किया जा रहा है, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी.
पढ़ाने के लिए नहीं है प्रशिक्षित शिक्षकों का इंतजाम : प्रारंभिक विद्यालयों में नामांकित बच्चों को पढ़ाने के लिए सामान्य शिक्षकों की व्यवस्था होती है. इसमें पांच वर्ग तक के लिए बेसिक और वर्ग छह से आठ तक के लिए विषयवार शिक्षकों की बहाली होती है. अब तक ऐसे लाखों शिक्षक बहाल हो गये,
मगर दिव्यांग बच्चों को पढ़ाने के लिए किसी प्रशिक्षित शिक्षकों की बहाली नहीं होती है. सामान्य शिक्षक को ही एक दो दिनों का प्रशिक्षण देकर नामांकित दिव्यांगों को पढ़ाने की जिम्मेवारी दे दी जाती है,ऐसी व्यवस्था दिव्यांगों की पढ़ाई के लिए नाकाफी है. सहज समझ ले कि दृष्टिबाधित या बहरे बच्चों को सामान्य शिक्षक कैसे पढ़ाते होंगे? पहले दिव्यांगों को पढ़ाने के लिए चयनित शिक्षकों को 31 दिनों की ट्रेनिंग दी जाती थी, जो घट कर अब एक दो तक सिमट गया है. दो शिक्षकों के जिम्मे ही नामांकित सभी दिव्यांगों को पढ़ाने की जिम्मेवारी है.
नहीं मिलता है दिव्यांगों को उचित संसाधन : विद्यालयों में नामांकित दिव्यांग बच्चों को सर्व शिक्षा अभियान द्वारा संसाधन के तौर पर ट्राइसाइकिल, व्हीलचेयर, वैशाखी, हियरिंग ऐड, लो विजन किट, ब्रेल किट, एल्बो क्रंच आदि उपलब्ध कराने का नियम है, मगर अंचल में पिछले चार सालों से दिव्यांगों को ऐसे सामान के मिलने का इंतजार है. पिछले साल सिर्फ श्रवण यंत्र बांटे गये. दिव्यांगों को सामान नहीं मिलने से अभिभावकों में गहरी नाराजगी है. दिव्यांग बच्चों को घर से स्कूल तक ट्राइसाइकिल से पहुंचाने वाले अटेंडेंट को 10 महीने का 2500 रुपये का स्कॉट अलाउंस देने का प्रावधान है, मगर वह भी सबको समय पर नहीं मिल पाता है.
इसके अलावा दिव्यांग बच्चों के अभिभावकों को बच्चे की उचित देखभाल के लिए प्रशिक्षित करने के लिए परामर्श कक्षा आयोजित करने का नियम है, मगर ऐसा वास्तविकता में कम और कागजों पर ज्यादा होता है. बिहार शिक्षा परियोजना द्वारा प्रारंभिक विद्यालयों में नामांकित दिव्यांगों का सर्वे हर साल करवाया जाता है, मगर इन बच्चों को शायद ही पेंशन छोड़ कर कोई अन्य सरकारी लाभ मिल पाता है.
स्थिति यही है कि दिव्यांग बच्चे हर दिन सामान्य बच्चे की तरह स्कूलों तक आते हैं, मगर उनलोगों की आवश्यकता के अनुसार उनलोगों को पढ़ाई नहीं मिल पाती है और योजनाओं व संसाधनों का लाभ मिलने की उम्मीद के बीच दिव्यांग बिना पढ़ाई के ही निरंतर अगले वर्गों में प्रोन्नत होते हुए सर्टिफिकेट लेकर विद्यालय से पास कर जाते हैं.
हकीकत यह भी है कि बिना पढ़ाई के उनके पास प्राप्त डिग्री के अनुसार उनकी योग्यता नहीं होती है जो बाद में संसाधन बनने की बजाय बोझ बनकर ही रह जाते हैं.
दिव्यांगता के 21 प्रकार
मानसिक मंदता
ऑटिज्म
सेरेब्रल पाल्सी
मानसिक रोगी
श्रवण बाधित
मूक निशक्तता
दृष्टि बाधित
अल्प दृष्टि
चलन निशक्तता
कुष्ठ रोग से मुक्त
बौनापन
तेजाब हमला पीड़ित
मांसपेशी दुर्विकास
स्पेसिफिक लर्निंग डिसेबिलिटी
बौद्धिक निशक्तता
मल्टीपल स्क्लेरोसिस
पार्किंसंस रोग
हिमोफिलिया
अधिक रक्तस्राव
थैलेसिमिया
सिकल सेल डिजीज
बहु निशक्तता
क्या कहते हैं अधिकारी
अंचल के सरकारी प्रारंभिक विद्यालयों में नामांकित दिव्यांग बच्चों की देखभाल के लिए समय समय पर शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाता है और दिव्यांगों को समय समय पर हरसंभव संसाधन उपलब्ध कराया जाता है.
चंद्रशेखर पांडेय, प्रखंड साधन सेवी, समावेशी शिक्षा
दिव्यांग बच्चों को अभिभावक जिस उम्मीद से विद्यालय भेजते हैं वह उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता है.सरकारी विद्यालयों में नामांकित दिव्यांगों की पढ़ाई के लिए भी अलग से प्रशिक्षित शिक्षक की व्यवस्था होनी चाहिए.
अजय सिंह, संकुल समन्वयक,गोराईपुर
जब तक दिव्यांग बच्चों को संसाधन नहीं मिलेगा तब तक वे लोग संसाधन नहीं बन सकेंगे.बिना संसाधन के बेहतर पढ़ाई की बात बेमानी है.बदकिस्मती से दिव्यांग हुए बच्चों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement