पूसा . बिहार के किसानों को समेकित कृषि प्रणाली को सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक रूप से समझने की जरूरत है. तभी इसे अपना कर आर्थिक स्थिति को सबल बनाने में कामयाबी हासिल कर सकते हैं. यह बात डॉ रत्नेश कुमार झा ने कही. वे प्रशिक्षु किसानों को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन से निबटने के लिए वैज्ञानिक सतत प्रयासरत हैं. आज की दौर में किसान मछलीपालन करना नहीं जान रहे हैं. वह सिर्फ मछली को पकड़ना और खाना ही जानते हैं. प्रत्येक मछली की प्रजातियों की अलग-अलग प्रकृति होती है. उसे भी मत्स्यपालकों को अध्ययन करने की आवश्यकता है. तालाब में मौजूद सम्पूर्ण जल को सदुपयोग करने पर ही समेकित मत्स्यपालन संभव हो पायेगा. किसानों को मोतीपालन के क्षेत्र में भी आगे बढ़ने की जरूरत है. राज्य में रंगीन मछलियों के व्यवसाय की अपार संभावनाएं हैं. वैज्ञानिक डॉ फूलचंद ने कहा कि किसानों को बेहतर आमदनी के लिए धान के साथ मत्स्यपालन करने की आवश्यकता है. आगत अतिथियों का स्वागत सह संचालन करते हुए प्रसार शिक्षा निदेशालय के उपनिदेशक प्रशिक्षण डॉ बिनीता सतपथी ने कहा कि प्रशिक्षण के इस सत्र में प्रतिभागियों वैज्ञानिक विधि से मत्स्यपालन के तकनीक से अवगत होंगे. प्रशिक्षण में बहुत ही बारीकी के साथ सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक सत्रों को समाहित किया गया है. किसानों को सही समय से समुचित इनपुट देने का प्रबंध किया गया है. निश्चित रूप से किसानों को मत्स्यपालन के क्षेत्र में कम लागत में बेहतर आमदनी की दिशा में ज्ञानवर्धन किया जा रहा है. धन्यवाद ज्ञापन वैज्ञानिक डॉ संजीव कुमार ने किया. मौके पर डीएफओ सहित पूर्णिया जिले के 40 प्रतिभागियों के अलावा टेक्निकल सेल से सुरेश कुमार, सूरज कुमार, विक्की कुमार आदि मौजूद थे.
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