Samastipur News:पूसा : डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय परिसर स्थित संचार केंद्र के पंचतंत्र सभागार में जलवायु प्रतिरोधी फसलों के रूप में ग्रीष्मकालीन दालें, रणनीतियां व हस्तक्षेप विषय पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण शुरू हुआ. अध्यक्षता करते हुए प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ रत्नेश कुमार झा ने कहा कि सामाजिक संरचना के आधार पर दलहनी फसलों का उत्पादन करने की जरूरत है. केंद्र एवं राज्य सरकार ग्रीन क्रॉप्स एवं सीरियल क्रॉप्स के अलावे पल्सेज की खेती बढ़ाने की दिशा में कृतसंकल्पित है. हालांकि दलहन की खेती क्षेत्रवार घटती जा रही है. दलहनी फसलों में रासायनिक खाद या सिंचाई की जरूरत बिल्कुल नगण्य ही होती है. दलहनी फसलों का बेहतर उत्पादन लेने के लिए कम ग्रोथ वाली भूमि का चयन करने की आवश्यकता है. केंद्र सरकार एक बार और दलहनी फसलों को बढ़ावा देने के लिए हरी चादर योजना एवं पंक्ति में शक्ति योजना को धरातल पर लाकर उत्पादन बढ़ाने की दिशा में पहल की गयी थी. जबकि दलहन के उत्पादकता दर में बहुत ज्यादा वृद्धि दर्ज नहीं किया जा सका. मूंग की फसल 60 से 65 दिनों में पक कर तैयार हो जाता है. आलू एवं राई के फसल होने बाद उस खेतों में मूंग की फसल बेहतर उत्पादन देता है. दलहन के कोई भी फसलों को पंक्तिबद्ध विधि से करने पर उत्पादन में 10 से 15 प्रतिशत स्वाभाविक रूप से बढ़ने की संभावना होती है. जलवायु परिवर्तन की दौर में भूमि की उर्वरकता को संतुलित बनाए रखने की जरूरत है. संचालन करते हुए प्रसार शिक्षा उप निदेशक प्रशिक्षण सह कोर्स कॉर्डिनेटर डॉ बिनीता सतपथी ने कहा कि भारत सरकार ने अभी अभी आत्मनिर्भर परियोजना में दलहनी फसलों को शामिल कर बढ़ावा देने का कार्य किया है. इस परियोजना के तहत प्रशिक्षण एवं प्रत्यक्षण को शामिल किया गया है. धन्यवाद ज्ञापन वैज्ञानिक डॉ संजीव कुमार ने किया. मौके पर टेक्निकल टीम के सुरेश कुमार, एटीएम सुनील कुमार चौधरी, दरभंगा से अमृता, समस्तीपुर से निशा किरण, बेगूसराय से ऋचा कुमारी, खगड़िया से श्रेया चौधरी, मधुबनी से नीरजा लवली, बीटीएम टुन्नू कुमार, सूरज कुमार शामिल थे.
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