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रद्दी जलाकर कट रही गरीबों की रात

सच्चाई : संस्थाएं आयें आगे मगर सरकारी दावा रहा थोथासमस्तीपुर. कड़ाके की ठंड में गरम कपड़ों का लबादा ओढ़े लोगों का भी हाड़ कांप जा रहा है, ऐसे में गरीबों को एक-एक रात काटना मुश्किल हो रहा है़ ऐसे लोग जिदंगी के संघर्ष में सांसों के लिए रात व दिन में कागज व कूड़ा जलाकर […]

सच्चाई : संस्थाएं आयें आगे मगर सरकारी दावा रहा थोथासमस्तीपुर. कड़ाके की ठंड में गरम कपड़ों का लबादा ओढ़े लोगों का भी हाड़ कांप जा रहा है, ऐसे में गरीबों को एक-एक रात काटना मुश्किल हो रहा है़ ऐसे लोग जिदंगी के संघर्ष में सांसों के लिए रात व दिन में कागज व कूड़ा जलाकर वक्त काट रहे हैं़ इसी के सहारे शरीर को गरमी दे रहे हैं़ खास यह कि शहर के किसी भी चौराहों पर अलाव नहीं जल रहा है जबकि जिला प्रशासन का दावा है कि अलाव के लिए लकडि़यों की आपूर्ति शुरू कर दी गयी है़ इससे इतर अलाव जलाने के लिये लकडि़यों का बोटा भी कही नहीं गिरा गया है़ सरकारी दावे के इतर शहर के तमाम प्रमुख चौराहों व ठिकानों पर अलाव की कोई व्यवस्था नहीं हुई थी़ कुछ स्थानों पर अलाव जलते जरूर मिले, लेकिन वो पूरी तरह निजी व स्वयंसेवी संस्थाओं के अपने प्रयास से दहक रहे थे़ सरकारी दावों के इतर, पोल खोलती यह कहानी अब आम आदमी की जिंदगी पर भारी पड़ने लगी है़ सरकार ने इससे निबटने के लिए जिले को राशि भी प्रदान कर दी है़ लेकिन, ठंड से मुकाबले की यह कवायद ‘ऊं ट के मुंह में जीरा’ से कम नहीं है़ दूसरे शब्दों में कहें तो आपदा की यह लकड़ी एक रात भी जल जाये तो गनीमत ही है़ यहां सवाल खड़ा होता है कि इतनी कम राशि से आखिर प्रशासन ठंड से कैसे निबटेगा़ इसके लिए जिले को महज पचास हजार रुपये मिले है़ं

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