सहरसा . ब्रज किशोर ज्योतिष संस्थान के संस्थापक ज्योतिषाचार्य पंडित तरुण झा ने बताया कि ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को वट सावित्री का व्रत रखा जाता है. सुहागिन महिलाएं इस दिन अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. माना जाता है कि पौराणिक समय में सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लाने के लिए यह व्रत रखा था. मिथिला विश्वविद्यालय पंचांग के अनुसार अखंड सौभाग्य प्रदान करने वाला यह वट सावित्री व्रत 26 मई को है एवं अमावस्या सुबह 11.02 मिनट से पुरे दिन है. वट सावित्री का व्रत सौभाग्य प्राप्ति के लिए किया जाता है. वट वृक्ष का पूजन एवं सावित्री सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार,वट वृक्ष को देव वृक्ष माना गया है. वट वृक्ष की पूजा कर महिलाएं देवी सावित्री के त्याग, पति प्रेम एवं पति व्रत धर्म का स्मरण करती हैं. व्रत स्त्रियों के लिए सौभाग्य वर्धक प्रदान करने वाला होता है. नवविवाहितों को करनी होती है विशेष पूजा पहली बार व्रत करने वाली नवविवाहितों को विशेष पूजा-अर्चना करने की मान्यता है. पंडित तरुण झा ने बताया कि पहली बार व्रत करने वाली नवविवाहिता स्नान के बाद नया वस्त्र धारण कर श्रृंगार करती हैं. जिसके बाद वट के पेड़ की पूजा के लिए निकलती हैं. उनके पीछे दर्जनों महिलाएं पारंपरिक गीत गाती वट वृक्ष तक साथ चलती हैं. साथ ही सुहागिन महिलाएं कच्चे धागे से वृक्ष को बांधती हैं. वृक्ष के नीचे फल, पकवान रखकर वट सावित्री की पूजा कथा कही एवं सुनी जाती है.
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