सहरसा . व्यवहार न्यायालय के न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी कृष्ण कुमार की अदालत ने वन्यजीव संरक्षण से जुड़े एक मामले में अहम आदेश पारित करते दो अभियुक्तों को दोष सिद्ध ठहराया है. सरकारी शिकायत वाद में राज्य बनाम महादेव रजक व अन्य मामले में अभियुक्त महादेव रजक व मो कौसर पर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 48, 48ए, 49, 49ए, 49बी सहपठित धारा 51, भारतीय वन अधिनियम की धारा 33 तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 511 के अंतर्गत आरोप लगाये गये थे. अदालत के समक्ष दोनों अभियुक्तों ने स्वेच्छा से दोष स्वीकार करते प्ली बार्गेनिंग का आवेदन प्रस्तुत किया. अभियोजन पक्ष की ओर से अभियोजन पदाधिकारी आदर्श किशोर ने न्यायालय के समक्ष अपना पक्ष रखा. सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि अभियुक्त प्रथम बार अपराध में संलिप्त पाये गये हैं व उनके विरुद्ध कोई आपराधिक पूर्ववृत्त नहीं है. न्यायालय ने यह पाते हुए कि संबंधित पक्षी रोज रिंग पैराकीट तोता वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची में सूचीबद्ध है एवं अत्यधिक संकटग्रस्त प्रजाति की श्रेणी में नहीं आता है. दोनों अभियुक्तों को दोषसिद्ध करार दिया. अदालत ने दोनों दोषसिद्ध अभियुक्तों को आठ हजार रुपये प्रत्येक का अर्थदंड देने की सजा सुनायीई. अर्थदंड अदा नहीं करने की स्थिति में दो सप्ताह का साधारण कारावास भुगतने का आदेश दिया. अभियुक्तों द्वारा अर्थदंड की राशि जमा कर दी गयी. जिसके बाद उनकी जमानत एवं जमानतदार मुक्त कर दिये गये. न्यायालय ने यह भी कहा कि दोष स्वीकार करने एवं प्रथम अपराधी होने के कारण अभियुक्तों को कारावास भेजना न्यायोचित नहीं होगा. इस प्रकार मामला दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 265 के तहत निस्तारित किया गया. यह आदेश वन्यजीव संरक्षण कानूनों के प्रभावी क्रियान्वयन एवं कानून के प्रति जागरूकता का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है.
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