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नदियों से जलकुंभी हटाने के लिए नहीं उठाये जा रहे ठोस कदम

नदियों से जलकुंभी हटाने के लिए नहीं उठाये जा रहे ठोस कदम

मर रही मछलियां, मछुआरे चिंतित, किसानों को भी हो रही समस्या सरकार ध्यान दे तो जलकुंभी रोजगार का बड़ा स्रोत जिला प्रखंड एवं पंचायत स्तर पर जागरूकता की जरूरत पर्यटन क्षेत्र को भी हो रहा नुकसान बनमा ईटहरी . वर्तमान समय में जलकुंभी विकट समस्या पैदा कर रही है. जिसका सीधा असर छोटे-छोटे तालाबों, नदियों व पोखरों में देखने को साफ तौर से मिल रहा है. जलकुंभी लगातार फैलने से पानी से ऑक्सीजन सोख लेता है और पानी के अंदर रहने वाले मछलियां मर जाती है. यहां तक की किसानों को खेतों में सिंचाई करने में भी परेशानी होती है. वहीं छोटे-छोटे झील जिससे पर्यटन को फायदा होता था, उसे भी नुकसान हो रहा है. इस पर सरकार गंभीरता से नहीं सोच रही है.आने वाले समय में समस्या और विकट हो जायेगी. बनमा ईटहरी प्रखंड के काली कोशी सहुरिया, कुआने धार महारस, सुगमा तिलावे नदी, खनमा धार, खगमा नदी, बहुअरबा तिलावे नदी, गेय घाट, फैकरा झील समेत अन्य जगहों की नदियों पर जलकुंभी ने अपना पूरा जाल बिछा दिया है. जिससे किसानों के साथ-साथ पानी के अंदर रहने वाले जीव जंतुओं पर विकट समस्या उत्पन्न हो गयी है. यह पानी को पूरी तरह से ब्लॉक कर देती है. जिस कारण से ऑक्सीजन अंदर तक नहीं पहुंच पाता है. जलकुंभी के सड़ने से कार्बन डाइऑक्साइड से ज्यादा मकथेन गैस खतरनाक साबित होता है. मछुआरों व किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या है जलकुंभी जलकुंभी उतारने वाला पौधा जो मूल रूप से दक्षिणी अमेरिका के अमेजॉन क्षेत्र में पाया जाता है. वहीं से भारत आया. यह खरपतवार ठहरे हुए जल से अत्यधिक तेजी से फैलता है. इसे रोकने का प्रयास सरकार द्वारा किया जा रहा है, लेकिन जिस स्तर से होना चाहिए वह नहीं हो रहा, जिस कारण हर साल जब बाढ़ आती है तो किसानों के खेतों में जलकुंभी अपना घर बना लेते हैं और फिर अत्यधिक खर्च कर मजदूर के माध्यम से किसान खेतों से जलकुंभी को हटाते हैं सुखाते हैं और फिर जला देते हैं. जिससे प्रदूषण को खतरा रहता है. इतना ही नहीं दूसरी और जीविका का सबसे बड़ा सहारा मछुआरों के लिए भी रहता है. छोटे-छोटे पोखर, नदियों में मछली पालन जैसी कार्य कर अपना जीवन यापन करते हैं, लेकिन जलकुंभी के कारण इसमें भारी गिरावट हुई है. मछुआरों के रोजगार पर भी असर हो रहा है. सरकार ध्यान दें तो जलकुंभी रोजगार के बड़े स्रोत असम, वेस्ट बंगाल, उड़ीसा में महिलाओं के द्वारा जलकुंभी को सुखाकर घरेलू उपयोग की सामग्री बनाकर खूब पैसे कमा रहे हैं. राज्य सरकार अगर इस पर ध्यान दें तो बिहार में भी जीविका द्वारा जलकुंभी से विभिन्न प्रकार की सामग्री युद्ध स्तर पर बनाया जा सकता है और इसे कंट्रोल भी किया जा सकता है. हालांकि राज्य सरकार ने इस पहल की शुरुआत की है. यह शुरुआत धीमी है, जिसे और तेज करने की आवश्यकता है. बताते चलें कि राज्य में कोई भी एजेंसी इस पर ठोस रूप से काम नहीं कर रही है. जिस कारण यह अपना पांव धीरे-धीरे भयंकर रूप से पसार रही है. जरूरत है देश स्तर पर इसके लिए सब एक साथ होकर जागरूकता लाने की, जिससे जलकुंभी को कंट्रोल किया जा सके. क्या बोलें जिला कृषि पदाधिकारी जिला कृषि पदाधिकारी संजय कुमार ने कहा कि आप प्लांट प्रोटक्शन संरक्षण वाले से संपर्क कीजिए .हम इसके लिए कुछ नहीं कर सकते हैं. जब प्लांट प्रोटक्शन वाले पदाधिकारी श्यामानंद कुमार से संपर्क किया तो उनका मोबाइल स्विच ऑफ तकरीबन 3 घंटे से था. इससे साफ जाहिर होता है कि इसके प्रति अधिकारी भी जिम्मेदार नहीं है, जिस कारण यह स्थिति प्रखंड में बनी हुई है.

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