सहरसा : सामाजिक सरोकार से जुड़कर प्रतिष्ठित पेशा करने वालों मे डाक्टर सर्वोपरि हैं. लेकिन कुछ स्याह पक्ष को छोड़ कर यदि सेवा की बात करें तो डॉक्टरो के बगैर इस दुनिया की कल्पना गैर बाजिब होगी. फिर इन्हें सुरक्षित रखने का क्या मापदंड है. इनके लिए कोई एंटिबायोटिक सरकार और प्रशासन के पास क्यों नहीं है. आप कह सकते हैं सुरक्षा सबों के लिए सर्वसुलभ होना चाहिए तो प्रशासनिक अक्षमता का उदाहरण दर उदाहरण पेश करने वाले दरबारी संस्कृति से ओतप्रोत सरकार के इस विभाग का उपाय क्या है? कड़े और बड़े फैसले लेने में अधिकारियो को किस उपर वाले का इंतजार है. बात डाक्टरों की सुरक्षा का हो तो इसके विभिन्न प्रकार से निशाने पर बने रहने की फेहरिस्त काफी लंबी है.
डॉ अनिल पाठक से शुरू होकर कहानी बरियाही पीएचसी में तोड़-फोड़, डाक्टर की कार जलाने की कोशिश, सदर अस्पताल में डाक्टर के साथ हाथापाई, शहर के विभिन्न क्लिनिकों पर बढ़ते हमले-हंगामे, रंगदारी मांगने की घटना, कार पर गोली चलाना (जांच की प्रक्रिया में) इत्यादि ऐसे मूद्दे हैं जो सुरक्षा की गारंटी पर सवालिया निशान लगाते हैं. डा गोपाल शरण सिंह का बयान सिस्टम के मौजूदा हालात को स्कैन कर देता है. उन्होंने कहा कि पहली बार 100 गज पूरब से एक सिम बिक्रेता को पुलिस उठा कर ले गई तो अबकी बार 100 गज पश्चिम से एक सिम विक्रेता को धड़ दबोचा. अपराधियों से दूर पुलिस मुम्बई से गम्हरिया (मधेपुरा) तक दौड़ रही है. डा ब्रजेश सिंह को अपराधियों ने कई महीनों से अपने टारगेट पर रखा है. अब तक धमकी के लिए प्रयोग होने वाले सिम कार्ड और मोबाइल तक पुलिस नही पहुंच पायी है. डॉ ब्रजेश कहते हैं कि डॉक्टरो को सुरक्षित रखने का उपाय सिर्फ प्रशासनिक सूझ-बूझ, तत्परता और अपराधियों के हौंसले पस्त करने वाले पुलिसिया कार्रवाई से संभव है. माहौल भयमुक्त नहीं हो तो मरीजो का ईलाज कैसे संभव है? डॉक्टर विजय शंकर समेत कई डाक्टरों ने कहा कि जब तक अपराधियों को सामने नही लाया जाता, आंदोलन जारी रहेगा. डॉ ब्रिजेन्द्र देव सहित अन्य ने कहा कि यह प्रशासनिक निष्क्रियता का उदाहरण है कि डॉक्टरो का समूह अपनी जान की सुरक्षा का गुहार लगा रहा है. मरीजो की सेवा करने वाले डॉक्टरों को इस बात का कष्ट है कि वह अपनी जान बचाने के लिए आंदोलन का रास्ता अपनाया. जिससे मरीजो को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.