उदासीनता. दशक भर से बदहाल है जिले का एकमात्र पुस्तकालय
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कमिश्नर साहब! पुस्तकालय को समृद्ध व सक्रिय कीजिये
उदासीनता. दशक भर से बदहाल है जिले का एकमात्र पुस्तकालय कभी जिले की शान हुआ करता था लाइब्रेरी पुस्तकालय संचालन समिति के कमिश्नर अध्यक्ष, तो आरडीडीइ व टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज के प्राचार्य सदस्य हैं. लेकिन बदहाली का आलम यह है कि यहां न अखबार हैं, न पुस्तकें. न ही स्थायी कर्मियों की नियुक्ति की गयी […]
कभी जिले की शान हुआ करता था लाइब्रेरी
पुस्तकालय संचालन समिति के कमिश्नर अध्यक्ष, तो आरडीडीइ व टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज के प्राचार्य सदस्य हैं. लेकिन बदहाली का आलम यह है कि यहां न अखबार हैं, न पुस्तकें. न ही स्थायी कर्मियों की नियुक्ति की गयी है.
सहरसा : कमिश्नर साहब! सुपर मार्केट स्थित पुस्तकालय की दशा सुधारिये. आप प्रमंडलीय पुस्तकालय के अध्यक्ष भी हैं. इसके संचालन समिति में क्षेत्रीय शिक्षा उप निदेशक एवं टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज के प्राचार्य हैं. फिर भी पुस्तकालय सुधरने की बजाय गर्त में जाता जा रहा है. इसे समृद्ध व सक्रिय बनाने के लिए आप तीनों वरीय पदाधिकारियों व शिक्षाविदों पर नजरें टिकी है और आपसे ही उम्मीद भी है. जबकि दस वर्षों से भी अधिक समय से यह बदहाल है. यहां न तो पत्र-पत्रिकाएं आती हैं और न ही उपलब्ध पुराने पुस्तकों की दशा ही ठीकठाक है. लिहाजा पाठक भी यहां नहीं आते हैं. शहर में भवन व नाम होते हुए भी पुस्तकालय का नहीं होना खटकता है.
गुलजार पर पिन ड्रॉप साइलेंस था: जबकि यही पुस्तकालय जब तक डीबी रोड में चलता रहा, तब तक पाठकों की कतार लगती रही. लाइब्रेरी में पुस्तकों का अंबार लगा रहा. इसके सदस्य बनने की होड़ बनी रही थी. देश के किसी भी कथाकार की पुस्तकें या हिंदी-अंगरेजी के वर्षों पुराने अखबार को ढ़ूंढ़ने में कभी परेशानी नहीं होती थी. पुस्तकालय के बरामदे पर लगे दर्जनों कुरसियों पर बैठे पाठकों वह रीडिंग रूम में तब्दील रहता था.
पाठकों का दूसरे ग्रुप के बाहर में होने के बावजूद पिन ड्रॉप साइलेंस की स्थिति बनी रहती थह. लेकिन सुपर बाजार में जमीन मिलने व दो मंजिला भवन बनने के बाद इसकी दशा आगे बढ़ने की बजाय नीचे लुढ़कती चली गई. स्थिति यह है कि आज यहां एक अदद दैनिक अखबार तक नहीं आता है. दीमक खाये किताबों से यह पुस्तकालय पाठक के लिए तरसता रहता है.
जनप्रतिनिधि भी नहीं लेते दिलचस्पी
चूंकि पुस्तकालय के समृद्ध होने या उसके गर्त में जाने से जनप्रतिनिधियों के वोट पर कोई असर नहीं होता. पुस्तकालय के नाम पर धर्म अथवा जाति विशेष के वोटर तैयार नहीं होते लिहाजा यह कभी चुनाव में मुद्दा भी नहीं बन सका. इसलिए वे इसके पुराने दिन लौटाने में या नये सिरे से इसे समृद्ध करने में कोई दिलचस्पी नहीं लेते. बीते माह सहरसा आये राज्य सरकार के शिक्षामंत्री के निर्देश पर महिषी के दशकों से बंद संस्कृत हाइ स्कूल को फिर से शुरू करने की कवायद शुरू कर दी गई. शिक्षकों की प्रतिनियुक्ति व बगल के विद्यालय व महाविद्यालय में कक्षा संचालन की वैकल्पिक व्यवस्था तक कर दी गई.
नये सिरे से भवन निर्माण का प्राक्कलन भी तैयार कराया जा रहा है. लेकिन कोसी प्रबुद्ध समाज के विजय कुमार गुप्ता आत्मदर्शी व आचार्य योगेश्वर द्वारा इस पुस्तकालय के जीर्णोद्धार के लिए उनके हाथ में आवेदन देकर निवेदन किए जाने के बाद भी कोई असर होता नहीं दिख रहा है.
बेगूसराय के लाइब्रेरियन हैं प्रभार में
बेगूसराय के लाइब्रेरियन ही प्रभार में हैं. वे कभी-कभार आकर देख लेते हैं. स्थायी कमिर्यों की कमी इसकी बदहाली का मुख्य कारण है.
प्रभाशंकर सिंह, क्षेत्रीय शिक्षा उपनिदेशक, सहरसा
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