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लोरिक पर बनी मैथिली फिल्म ”इतिहास-दि प्राइड ऑफ मिथिला” प्रदर्शन को तैयार

सहरसा : साहसी, बहादुर, शासक व नम्रता के पर्याय वीर लोरिक पर बनी मैथिली फिल्म ‘इतिहास-दि प्राइड ऑफ मिथिला’ प्रदर्शन को तैयार है. फिल्म का प्रीमियर दिल्ली में शुक्रवार को होगा. उसके बाद देश के विभिन्न हिस्सों के फिल्म फेस्टिवलों में इसका प्रदर्शन होगा. बुंदेलखंड के शासक लोरिक पहलवानी के लिए भी प्रसिद्ध रहे थे. […]

सहरसा : साहसी, बहादुर, शासक व नम्रता के पर्याय वीर लोरिक पर बनी मैथिली फिल्म ‘इतिहास-दि प्राइड ऑफ मिथिला’ प्रदर्शन को तैयार है. फिल्म का प्रीमियर दिल्ली में शुक्रवार को होगा. उसके बाद देश के विभिन्न हिस्सों के फिल्म फेस्टिवलों में इसका प्रदर्शन होगा. बुंदेलखंड के शासक लोरिक पहलवानी के लिए भी प्रसिद्ध रहे थे. उसके बाद वे मिथिला भ्रमण के दौरान सुपौल जिले के हरदी-चौघारा आये. जहां चांदनी नाम की एक लड़की से उन्हें प्रेम हुआ और वे यहीं के होकर रह गये. इस दौरान वीर लोरिक ने यहां के लोगों को बेंगठा चमार के आतंक से मुक्त कराया और चांदनी के बाद लोगों के दिलों पर भी राज करने लगे. वीर लोरिक की गाथा लोरिकायन के रूप में आज भी मगध से लेकर मिथिला तक श्रद्धा से गायी जाती है.

इतिहास करेगी मैथिली का प्रतिनिधित्व
इतिहास की 80 फीसदी शूटिंग सुपौल जिले के हरदी इलाके में हुई है तो शेष उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड में हुआ है. फिल्म के केंद्रीय भूमिका में बॉलीवुड अभिनेता अनिल मिश्रा, सीतामढ़ी की जाह्नवी झा, सुपौल के मुन्ना चमन व अन्य हैं. संगीत पवन नारायण का है. चमन टेलीमीडिया द्वारा बनायी गयी इस फिल्म के निर्देशक सहरसा जिले के एकाढ़ भकुआ गांव निवासी किसलय कृष्ण हैं. किसलय ने बताया कि इतिहास को पर्दे पर उतारना एक चुनौती भरा काम होता है. खासकर मिथकीय लोक साहित्य के इतिहास को फिल्म का रूप देना जोखिम भरा होता है. उन्होंने कहा कि इतिहास कभी भी ठोस और प्रमाणिक नहीं होता है. लेकिन लोक-वेद, बड़े-बुजुर्ग जो बोलते आए हैं, जो लोगों के कंठ में बसा है, गायन शैली में है. पर्व-उत्सव में है, वही इतिहास है. जिसके बाद कई राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में यह फिल्म मैथिली का प्रतिनिधित्व करेगी.

ग्राम व लोक देवता थे वीर लोरिक
निर्देशक किसलय कृष्ण ने बताया कि वीर लोरिक को ग्राम देवता व लोक देवता की उपाधि मिल चुकी है. इतिहास के अनुसार वे पाल वंश के राजा भी थे. वे प्रेम समर्पण के लिए भी याद किये जाते हैं. 14वीं सदी में मुल्ला दाउद के लिखे चंद्रायन में लोरिक व चंदा के प्रेम का विस्तृत वर्णन है. यह सूफी परंपरा का पहला काव्य ग्रंथ है. इसकी हस्तलिपि की प्रति आज भी मनेरशरीफ में रखी हुई है. निर्देशक ने बताया कि ऐतिहासिक कहानियों में दर्ज एक कथा के अनुसार एक बार प्रेम परीक्षा में उन्होंने रास्ते में आये बड़े शिला को तलवार से दो टुकड़े कर दिये थे. वे पत्थर के टुकड़े सोनभद्र में आज भी यथावत विद्यमान हैं. फिल्म में उनकी शक्ति, बहादुरी, नम्रता, उनके साहस एवं मंजरी व चंदा से प्रेम को दिखाया गया है. यह फिल्म इतिहास को जीवंत करने अलावा मैथिली भाषा को और भी समृद्ध बनाने में मील का पत्थर साबित होगा.

Prabhat Khabar Digital Desk
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