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किताबें तो हैं, पर यहां कद्रदान नहीं

समस्या. महज 73 लोगों ने ली है पुस्तकालय की प्राथमिक सदस्यता साहित्य से सामाजिक मूल्यों को नयी दिशा मिलती है. लेकिन जिस समाज में साहित्य से लोग दूरियां बना लेंगे, उस समाज का क्या होगा. ऐसा ही कुछ हाल सुपर बाजार के प्रमंडलीय पुस्तकालय का है. सहरसा : साहित्य समाज का दर्पण होता है. साहित्य […]

समस्या. महज 73 लोगों ने ली है पुस्तकालय की प्राथमिक सदस्यता

साहित्य से सामाजिक मूल्यों को नयी दिशा मिलती है. लेकिन जिस समाज में साहित्य से लोग दूरियां बना लेंगे, उस समाज का क्या होगा. ऐसा ही कुछ हाल सुपर बाजार के प्रमंडलीय पुस्तकालय का है.
सहरसा : साहित्य समाज का दर्पण होता है. साहित्य से सामाजिक मूल्यों को नयी दिशा मिलती है. लेकिन जिस समाज में साहित्य से लोग दूरियां बना लेंगे, उस समाज का क्या होगा. ऐसा ही कुछ हाल सुपर बाजार के प्रमंडलीय पुस्तकालय का है.
यहां हजारों की संख्या में साहित्य की किताबें हैं. लेकिन उस किताब को कोई पढ़ने वाला नहीं है. जिले की स्थापना एक अप्रैल सन 1954 को हुई. जिले के लोगों को साहित्य से जोड़ने के उद्देश्य से जिले में प्रमंडलीय पुस्तकालय खोलने का सपना साकार हो सका. जिले वासियों को एक ही छत के नीचे सभी प्रकार के साहित्य एवं प्रतियोगी पुस्तकें आसानी से उपलब्ध हो जाय, इसके लिए जिला प्रशासन द्वारा प्रमंडलीय
पुस्तकालय में साहित्यिक, धार्मिक, विज्ञान, इतिहास, भूगोल, कृषि विज्ञान, कानून, स्वास्थ्य, रोग एवं उपचार, खेल पत्रिकाएं, सामाजिक ज्ञानवर्धन एवं प्रतियोगी पुस्तकें सहित सात हजार पुस्तकें भेजी गयी. साथ ही इसकी देखरेख के लिए दो कर्मचारियों की ड्यूटी भी लगायी गयी है. इतना ही नहीं पुस्तकालय में एक साथ पचास लोगों के बैठकर किताबों का अध्ययन करने के लिए कुर्सियों की भी व्यवस्था की गयी है. लेकिन साहित्य को पढ़ने वाले भूलकर भी इस तरफ नहीं आते. पुस्तकालय के जीर्णोद्धार को चार महीने का समय बीत गया. लेकिन इतने बड़े जिले में महज 73 लोगों नें ही सदस्यता ली है. हालांकि सदस्यता शुल्क भी कोई ज्यादा नहीं है.
सदस्यता के लिए मात्र 120 रुपये निर्धारित किया गया है. प्रमंडलीय पुस्तकालय में प्रतिनियुक्त कर्मी राजीव कुमार झा व राजेश कुमार ने बताया कि सुबह दस बजे से सायं 5 बजे तक पुस्तकालय खुला रहता है. लेकिन ज्यादा संख्या में कोई पढ़ने वाला आते ही नहीं है. कुछ लोग कभी-कभार आते भी हैं तो समाचार पत्र पढ़कर चले जाते हैं. जिनकी संख्या औसतन आठ से दस होती है.
15 लाख से हुआ जीर्णोद्धार
बीते चार माह पूर्व जिला प्रशासन द्वारा 15 लाख की राशि से पुस्तकालय का जीर्णोद्धार कराया गया है. पाठकों के अध्ययन के लिए भव्य व सुसज्जित कक्ष का भी निर्माण किया गया. जिसमें पाठकों के लिए कुरसी व टेबल की व्यवस्था भी की गयी है.
नगर परिषद द्वारा पुस्तकालय को प्रत्येक महीना समसामयिक पत्र-पत्रिकाएं उपलब्ध करायी जाती है. खासकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए पर्याप्त सामग्री उपलब्ध रहती है. समाचार पत्र पुस्तकालय प्रबंधन के स्तर से उपलब्ध हो रही है. इसके अलावा पुराने किताबों की बायडिंग, वर्गीकरण का कार्य कर्मियों द्वारा निष्पादित किया जा रहा है.
अब तक 900 पाठक कर चुके हैं भ्रमण
15 अगस्त से उपलब्ध आंकड़े के अनुसार कार्य दिवस में लगभग 900 पाठक पुस्तकालय में आ चुके हैं. औसतन यह संख्या प्रतिदिन दस के करीब है. जबकि प्रतिदिन सौ से अधिक लोगों के पहुंचने की संभावना जतायी गयी थी. फिलवक्त बीते दस दिनों के आंकडे पर गौर करते पांच से सात पाठक प्रत्येक दिन अखबार व पत्रिका पलटने पहुंचते हैं. पुस्तकालय पहुंचने वाले पाठकों के नाम विजिटर बुक में दर्ज है. डिजिटल युग में किताब से बढ़ रही दूरी को पुस्तकालय के आंकड़े से समझा जा सकता है.
नव निर्मित भवन, चमचमाती फर्श, स्टाइलिश कुर्सी व टेबुल की संख्या अध्ययन कक्ष में पचास के करीब है. इन कुरसियों को रोजाना पाठक के आगमन का इंतजार रहता है. जबकि पूर्व में व्यवस्था सुदृढ़ नहीं रहने पर पुस्तकालय के बिंदु पर प्रशासन की लोग खूब किरकिरी करते थे. स्थानीय लोगों की उदासीनता को बताते समाजशास्त्री गणेश प्रसाद कहते हैं कि सोशल मीडिया पर लोग ज्यादा समय बिताने के आदी हो गये हैं. ऐसे में ऑनलाइन लाइब्रेरी का कंसेप्ट ज्यादा पसंद किया जाने लगा है.
दुर्लभ पुस्तकों का है भंडार : साहित्य जगह की दुर्लभ पुस्तकें संग्रहित करने का सौभाग्य प्रमंडलीय पुस्तकालय को मिला है. पुस्तकालय में साहित्यकारों की कालजयी रचना मौजूद है. जानकार बताते हैं कि सूबे में पटना के बाद स्तरीय पुस्तक यहीं उपलब्ध है. इसके बावजूद पुस्तकालय में सदस्यों की संख्या काफी कम है. आबादी के अुनुरूप पुस्तकों के कद्रदान नहीं पहुंच रहे हैं. जिसका मलाल विभाग से जुड़े लोगों को भी है.

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