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बैंकों की लापरवाही से कम हो रही है सिक्के की खनक

सोनवर्षाराज : दुकानदार हो या खरीदार या फिर बैंक बाजार में भारी मात्रा में आये दस, पांच, दो एवं एक रुपये के सिक्कों की वजह से सब परेशान हैं. नोटबंदी के बाद परिचालन में छोटे सिक्के नहीं चलने की अफवाह ने लोगों की परेशानी बढ़ा दी है. सिक्के के लेनदेन को लेकर दुकानदार व ग्राहकों […]

सोनवर्षाराज : दुकानदार हो या खरीदार या फिर बैंक बाजार में भारी मात्रा में आये दस, पांच, दो एवं एक रुपये के सिक्कों की वजह से सब परेशान हैं. नोटबंदी के बाद परिचालन में छोटे सिक्के नहीं चलने की अफवाह ने लोगों की परेशानी बढ़ा दी है. सिक्के के लेनदेन को लेकर दुकानदार व ग्राहकों के बीच होती नोक-झोंक अक्सर मारपीट तक पहुंच जा रही है. सबसे ज्यादा दिक्कत प्रशासन की तरफ से हो रही है. छोटे सिक्के परिचालन में नहीं रहने की अफवाह पर काबू पाने में प्रशासन पूर्ण रूपेण विफल साबित हो रही है.

नोटबंदी ने सिक्कों की घटायी खनक
पिछले वर्ष के नवंबर माह की आठ तारीख को पीएम के द्वारा नोटबंदी कर घोषणा के बाद भारतीय मुद्रा की स्थिति में भारी परिवर्तन हुआ है. जिस सिक्के का महत्व हमेशा नोटों से ज्यादा रहा है. उस सिक्के का महत्व तेजी से घटता जा रहा है. बेचारा सिक्का किसी बच्चे के गुल्लक में या फिर किसी बनिये के कंटर या फिर बोरे में पड़ा अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाने पर मजबूर है. सोनवर्षा जनवितरण विक्रेता अशोक कुमार साह अपने पास जमा हुए सिक्कों को जगह लगाने में असफल होने के बाद बताते हैं कि नोटबंदी के बाद सिक्का बलाय हो गया है. बैंक जाओ तो बैंक कर्मी इसे गिनने की समस्या को लेकर लेने से इन्कार करते हैं .
सामान खरीदने जाओ मो दुकानदार भी लेने से मना कर देता है. आखिर इस स्थिति में लोग सिक्कों के रूप में खुल्ले पैसे लेकर जायें तो कहां जायें.
घरेलू बचत के जरिये पर बैंकों की कुदृष्टि
परिवार के बच्चों के लिए बचत का एक माकूल जरिया गुल्लक था. सिक्कों से भरने के बाद परिवार के मुखिया उन सिक्कों को नोट में बदलने के लिए जब भी किसी बनिए को देते थे तो सिक्के के बदले में अक्सर बनिया 100 रुपये की जगह 110 रुपये वापस करता था. लेकिन सिक्कों की वह खनक नोटबंदी के बाद सुनाई नहीं देता. नोटबंदी से पूर्व जिन सिक्कों को देख दुकानदार खुशी-खुशी लेने को तैयार रहते थे. उन्हीं सिक्को को देख अब उनके नाक-भौं सिकुड़ने लगे हैं.
यहां तक कि नोटबंदी के समय बोरे के हिसाब से सिक्के थमाने वाला बैंक भी उसे जमा लेने से सीधे इंकार करने लगा है. सिक्कों का महत्वहीन होना बच्चों के गुल्लक बचत को सीधे प्रभावित कर दिया है. यह सिक्का परिवार का गुल्लक का हो या फिर बनिये का गल्ले का ढेरो मे ढेर बदल कर तेजी से अपना महत्व खोता जा रहा है. बैंक सिक्के लेने से इसलिए इंकार करते हैं कि उनकी शाखाओं में सिक्के गिनने के लिए न तो मानव बल हैं और न ही मशीन हैं.
दुकानदार इसलिए सिक्के नहीं ले रहा है कि उनके पास जमा सिक्का पहले से ही कोई लेने को तैयार नही है. पुन: सिक्के लेकर वो अपनी समस्या क्यों बढ़ाये. जाहिर है कि ऐसे में दुकानदार व आमलोगों का जमा सिक्का दूर-दूर तक खपाने का कोई जरिया नजर नहीं आ रहा है.

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