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पार्षदों की कहां नजर है साहेब को इसकी खबर है
एक को सेट किया, तब तक सरकार बदल गयी. दूसरा सेट होने का नाम नहीं ले रहा. खाउ-पकाउ फाइल खोलने पर अमादा है. परेशानी होने लगी है. निजी सलाहकार पर टिका टिप्पणी होने लगी है. खैर हो कि चुनाव आ गया. नहीं, तो मामला फंस सकता था. अब तो रणनीति ही यह बनानी पड़ेगी कि […]
एक को सेट किया, तब तक सरकार बदल गयी. दूसरा सेट होने का नाम नहीं ले रहा. खाउ-पकाउ फाइल खोलने पर अमादा है. परेशानी होने लगी है. निजी सलाहकार पर टिका टिप्पणी होने लगी है. खैर हो कि चुनाव आ गया. नहीं, तो मामला फंस सकता था.
अब तो रणनीति ही यह बनानी पड़ेगी कि अपने मन मुताबिक सरकार बने. नेताजी भी चाह रहे हैं, पार्टी के समर्थकों का अधिक से अधिक बोर्ड में जुटान हो. नेताजी ने अपने सगे को साहेब पर नजर रखने को लगा रखा है. प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से दोहन जारी है.
साहेब भी कम खिलाड़ी नहीं. सगे व उफनाये पार्षदों को दरकिनार करने की जुगत में हैं. निजी सलाहकार से शहर की सूचना एकत्रित कर, चहेतों के लिए काम करने लगे हैं. अपनी टीम होगी, तो अगली पारी में धुआंधार बैटिंग होगी. जो कुछ मिलेगा, उसमें अपना हिस्सा ज्यादा और धौंस भी रहेगा. देखना है कि साहेब की मंशा कितनी पूरी होती है?
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