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बिहार: दिनकर को स्मरण करने के साथ किताब उत्सव का शुभारंभ, पढ़ने के फायदे के बारे में दी गई ये जानकारी..

Ramdhari Singh Dinkar: बिहार के गांधी मैदान स्थित श्रीकृष्ण विज्ञान केन्द्र में दिनकर को स्मरण करने के साथ किताब उत्सव का शुभारंभ किया गया. यहां परिचर्चा में किताब पढ़ने के फायदें के बारे में जानकारी दी गई.

पटना. गांधी मैदान स्थित श्रीकृष्ण विज्ञान केन्द्र में राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा आयोजित छह दिवसीय ‘किताब उत्सव’ का शुभारंभ हुआ. 23 से 28 सितंबर तक चलने वाले इस ‘किताब उत्सव’ का उद्घाटन वरिष्ठ साहित्यकार चन्द्रकिशोर जायसवाल ने किया. इस मौके पर तैयब हुसैन, रामधारी सिंह दिवाकर, आलोकधन्वा, शिवानन्द तिवारी और शिवमूर्ति बतौर विशिष्ट अतिथि मौजूद रहे. उद्घाटन के बाद रामधारी सिंह दिनकर के पुत्र एवं आलोचक केदारनाथ सिंह के निधन पर मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की गई. उद्घाटन सत्र में ‘किलकारी’ संस्था के बच्चों ने अमीर खुसरो के पद ‘ऐ री सखी मोरे पिया घर आए’ का गायन किया. बच्चों ने राष्ट्र गौरव दिनकर जी की जयंती पर ‘कलम आज उनकी जय बोल’ और ‘कलम या तलवार’ कविताओं का पाठ करके उनका स्मरण किया.

‘भविष्य की पाठक पीढ़ी’ विषय पर हुई परिचर्चा

उद्घाटन सत्र के बाद ‘भविष्य की पाठक पीढ़ी’ विषय पर परिचर्चा हुई. इस दौरान राजकमल प्रकाशन समूह के संपादकीय निदेशक सत्यानन्द निरुपम ने कहा, “हमने पिछले कुछ सालों में दुनिया को जिस तेजी से बदलते देखा है, उतनी तेजी से पहले बदलाव नहीं हुए. सोशल मीडिया के इस दौर में बहुत से लेखकों को अपने पाठकों से जुड़कर एक नया जीवनदान मिला है.” आगे उन्होंने कहा, “हमारा समाज सुनने वाला समाज है. पढ़ने वाला समाज अभी तक पैदा नहीं हो पाया है. अगर तुलसी, कबीर, सूरदास, खुसरो को हमारी पीढ़ियों ने गाया नहीं होता तो शायद वह हम तक नहीं पहुंच पाते.” शिवमूर्ति ने अपने वक्तव्य में कहा, “भविष्य के पाठक तैयार करने के लिए हमें नए पाठकों की तलाश करनी होगी.

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इसके लिए समय के साथ खुद को बदलना भी जरूरी है. हमें साहित्य में नए विषय और नए सरोकार लाने होंगे, तभी नई पीढ़ी के पाठक हमसे जुड़ेंगे.” वहीं हृषीकेश सुलभ ने कहा कि हिन्दी में लंबे समय तक इस तरह की कहानियाँ और उपन्यास लिखे गए जिनको पाठक दस पेज से अधिक पढ़ नहीं पाते. इस तरह के लेखन ने पाठकों को किताबों से दूर किया है. आगे उन्होंने कहा, “सोशल मीडिया ने मुझे एक बड़ा पाठक वर्ग दिया है. इससे पाठकों की एक नई दुनिया बनी है. आज का युवा पढ़ना चाहता है, भविष्य के पाठक तैयार है, वो बस आपकी प्रतीक्षा कर रहा है. यह लेखक और पाठक दोनों की जिम्मेदारी है कि वे उन तक पहुँचें.”

‘संवेदना पैदा करने के लिए साहित्य पढ़ना बहुत जरूरी’

परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए चन्द्रकिशोर जायसवाल ने कहा कि आज के समय में साहित्य पढ़ना हमारे समाज की मजबूरी है. आज जिस किसी को भी देखें वह युद्ध और उन्माद की बात करता है. शांति कोई नहीं चाहता. ऐसा इसलिए है क्योंकि लोगों में संवेदना नहीं है. संवेदना पैदा करने के लिए साहित्य पढ़ना बहुत जरूरी है. हम अगर अपने बच्चों से अच्छा व्यवहार चाहते हैं तो उन्हें साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित करना होगा. नहीं तो दुनिया आज जैसी है उससे भी बदतर हो जाएगी. आज के लेखकों की यह जिम्मेदारी है कि वे गांवों में रहने वाले पाठकों को ध्यान में रखकर लिखें. यही सभी के हित में होगा. इसी से भविष्य के पाठक तैयार होंगें. अगले वक्ता शिवानन्द तिवारी ने कहा, “किताबें आपको एक ऐसी दुनिया में ले जाती है जिससे अभी तक आपका परिचय नहीं हुआ है. राजनीति में रहने की वजह से मेरी एक अलग तरह की पृष्ठभूमि बन चुकी थी. लेकिन साहित्य में रुचि होने और लगातार पढ़ते रहने से किताबों ने मुझे बहुत बदला है. कई किताबों ने दलितों, महिलाओं को लेकर मेरी दृष्टि में बदलाव लाया है.” वहीं रामधारी सिंह दिवाकर ने कहा कि हमें अपने घर में ऐसा वातावरण तैयार करना होगा कि हमारे बच्चे हिन्दी की किताबें पढ़ें.

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शिवमूर्ति के उपन्यास का हुआ लोकार्पण

अगले सत्र में शिवमूर्ति के उपन्यास ‘अगम बहै दरियाव’ का लोकार्पण हुआ. इस उपन्यास में आपातकाल से लेकर उदारीकरण के बाद तक करीब चार दशकों में फैली एक ऐसी करुण महागाथा है जिसमें किसान-जीवन अपनी सम्पूर्णता में सामने आता है. यह उपन्यास किसानों के कष्टकारी जीवन के साथ नौकरशाही और न्याय-व्यवस्था के सामने उसकी क्या स्थिति होती है, इस पर भी रौशनी डालता है. लेखक ने इस उपन्यास में ग्राम-संस्कृति और लोकगीतों का भी भरपूर प्रयोग किया है. लोकापर्ण के बाद शिवमूर्ति ने उपन्यास से एक रोचक अंशपाठ करके श्रोताओं को सुनाया. वहीं हृषीकेश सुलभ ने इस उपन्यास पर एक टिप्पणी की. सुलभ ने कहा कि शिवमूर्ति यथार्थ को इस आत्मीयता ढंग से गल्प में ले आते हैं कि वो हमें अपना लगता है. वे गांव के लोगों की कथा को इस ढंग से कहते हैं कि शहर में रहने वाले पाठक भी उसे अपना दुख मानने लगते हैं. वे हमेशा जीवन का नया सच पाठकों के लिए ढूँढकर लाते रहे हैं.

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कार्यक्रम के चौथे और अंतिम सत्र में किस्सागो हिमांशु वाजपेयी के लखनउवा किस्सों पर सत्यानन्द निरुपम के साथ बतकही हुई. इस दौरान हिमांशु ने कई मशहूर शायरों के शे’र सुनाए. इसी बीच सत्यानन्द निरुपम ने सवाल किया कि पहले आप पत्रकार थे, फिर रिसर्चर हुए, उसके बाद लेखक बने और अब दास्तानगोई कर रहे हैं तो आखिर होना क्या चाहते थे? इसका जवाब देते हुए हिमांशु ने कहा, “ज़िन्दगी आपको बहुत गलियों से गुजारती है, बहुत रंग दिखाती है. पहले जो कुछ किया उसमें मन नहीं लगा इसलिए बदलते रहा. पिछले दस सालों से दास्तानगोई कर रहा हूं तो यह अच्छा लग रहा है. जिन्दगी ऐसी ही है. जब जो करने का मन करे, वो कर लेना चाहिए.” इसके बाद उनसे पसंदीदा शे’र और किताबों पर बात हुई साथ ही उन्होंने श्रोताओं को किस्से और लतीफे सुनाए.

Sakshi Shiva
Sakshi Shiva
Worked as Anchor/Producer from March 2022 to January 2023 at DTV Bharat TV channel. Have worked with Sixth Sense weekly newspaper from August 2021 to January 2022. Have done 21 days internship at Clinqon India as a Social media intern. Post Graduated in Journalism and Mass Communication from Central University of South Bihar, Gaya. Graduated in English from Purnea Mahila College, Purnea.

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