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वैदिक व तांत्रिक पद्धति से होता है अपूर्व शोभा दुर्गाबाड़ी में पूजन का अनुष्ठान

पुरुलिया से आए गाय के घी से तैयार होते हैंअन्न भोग और मिठाई

पुरुलिया से आए गाय के घी से तैयार होते हैंअन्न भोग और मिठाई

देवी को चढ़ावा के लिए बनारस से मंगाए जाते हैं मीठे पान के मसाले

मक्खन, मिश्री, संदेश, पान, जल के भोग लगा की जाती है कर्पूर आरती

पूर्णिया. शहर के जिला स्कूल के समीप स्थित अपूर्व शोभा दुर्गाबाड़ी में वैदिक व तांत्रिक पद्धति के अनुसारपूजन का अनुष्ठान किया जाता है. पूजन की बंगाली परंपराओं के अनुरूप के अनुरुप होता है. प्रतिमा बंगाली शैली के अनुरूप एक चाला का होता है एवं देवी के ध्यान मंत्र के अनुरूप गठित किया जाता है. पूजा पंचमी के शाम से शुरू होता है देवी के बोधन से ओर दशमी तक होता है प्रतिमा के निरंजन तक. संपूर्ण पूजा एवं चंडी पाठ, बेलूर मठ से आये प्रशिक्षित ब्राह्मण गण के हाथों सूर्य सिद्धांत पंजिका के अनुसार बिल्कुल समय के अनुसार होता है. अहम यह है कि यहां के दुर्गोत्सव में दुर्गा पूजा के सारे कुलाचार एवं लोकाचार सम्मिलित हैं जो सभी जगह देखने नहीं मिलता.दुर्गाबाड़ी के अभिरूप घोष ने बताया कि बोधन के शाम में श्री रामचंद्र की विशेष पूजा, बिल्व वृक्ष के नीचे देवी की निद्रा कलश की स्थापना, अष्टमी के रात्रि में अर्धरात्रि पूजा, अष्टमी के दिन में ब्राह्मण कन्या की कुमारी पूजा, संधि पूजा एवं नवमी पूजा तंत्र मत से एवं दशमी मेंअपराजिता पूजा की जाती है. अभिरूप घोष बताते हैं कि यहां का दुर्गा पूजा श्री श्री शारदा देवी के नाम से संकल्पित है. यहां का अन्न भोग एवं मिठाइयां संपूर्ण रूप से गाय के घी से ही बनाया जाता है जो पुरुलिया के गांव से आता है. मां की बनारसी साड़िया एवं भोग और नैवेद्य में चढ़ने वाले मीठे पान के मसाले भी एक सुप्राचिन बनारस के दुकान से मंगाया जाता है. देवी को रोज ब्रह्मा मुहूर्त में निद्रा से जगा के घर में बानी मक्खन, मिश्री, सन्देश, पान, जल के भोग लगा के कर्पूर आरती की जाती है. तत्पश्चात देवी का एक घंटे से उपर विभिन्न द्रव्यों से महास्नान कराया जाता है और उसके बाद देवी को भुना खिचड़ी का भोग लगाया जाता है. उसके बाद ही पूजा आरंभ होती है. पूजा में विभिन्न प्रकार के नैवेद्य और दोपहर एवं रात्रि में विभिन्न व्यंजनों का भोग लगाया जाता है. दशमी के दिन देवी के विदाई से पहले दही-चूड़ा, पंता भात के भोग लगता है. देवी के संध्या आरती तीन ब्राह्मण पंडित एक साथ करते हैं.

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