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बाड़ीहाट में लक्ष्मी पूजा की तैयारी तेज, छह अक्तूबर से शुरू होगा अनुष्ठान

छह अक्तूबर से शुरू होगा अनुष्ठान

आकर्षण का केन्द्र बनेगा बाड़ीहाट का लक्ष्मी पूजा मेला

मेला में जुटाए जा रहे मनोरंजन के साधन, सजेगा बाजार

77 साल पुराना है बाड़ीहाट का इतिहास

1948 से शुरू हुई थी देवी लक्ष्मी की पूजा

पूर्णिया. दशहरा सम्पन्न होने के साथ शहर के बाड़ीहाट में लक्ष्मी पूजा की तैयारी तेज हो गयी है. आगामी 6 अक्टूबर से बाड़ीहाट में पांच दिवसीय पूजनोत्सव का आयोजन शुरू होगा. एक तरफ पूजन अनुष्ठान के तैयारी चल रही है तो दूसरी ओर मेला भी सजाया जाने लगा है. बाड़ीहाट लक्ष्मी पूजा का इतिहास 77 साल पुराना है. यहां लक्ष्मी पूजा के दौरान आस्था का संसार सजता है और श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है. यहां हर कोई मां लक्ष्मी के दर्शन के लिए बेचैन और बेताब रहता है. पूरे शहर में यह अकेली जगह है जहां लक्ष्मी पूजा का व्यापक स्वरुप देखने को मिलता है. पूजा के अवसर पर वर्षों से लगने वाला मेला खास आकर्षण का केन्द्र होता है जहां लोग जमकर खरीदारी भी करते हैं.

गौरतलब है कि बाड़ी हाट में हर साल लक्ष्मी की पूजा बड़े पैमाने पर की जाती है जिसमें पूरे शहर के लोग इकट्ठे होते हैं. आगामी 6 अक्टूबर से 10 अक्टूबर तक चलने वाली इस अनुष्ठान को लेकर बाड़ीहाट में इस बार लक्ष्मी मंदिर को बेहतर ढंग से सजाया जा रहा है. पूजा समिति के सदस्यों ने बताया कि इसके लिए समिति गठित की गयी है और मेला को आकर्षक रुप देने की पहल शुरु कर दी गयी है. सबसे पहले मेला परिसर के चहुंओर सफाई की गई है जबकि मंदिर में प्रतिमा निर्माण कार्य को अंतिम रुप दिया जा रहा है. सदस्यों ने बताया कि इस वर्ष मेले को वृहत रुप दिया जा रहा है. इस मेले में बच्चों के लिए मनोरंजन के साधन जुटाए जा रहे हैं. इसके साथ खिलौने की दुकानें भी आ रही हैं. इतना ही नहीं मेला में कई बाजार भी सजाए जा रहे हैं.

जब हुई थी पूजा की शुरुआत

अपना देश सन् 1947 में आजाद हुआ और बाड़ीहाट में लक्ष्मी की पूजा 1948 में शुरु हुई. उस समय स्व. नूनू सिंह, स्व. लक्ष्मी नारायण सिंह, शिवनाथ सिंह, रुपलाल पांडेय आदि समाज के प्रबुद्ध लोगों ने यहां लक्ष्मी पूजा की नींव डाली. पूजा समिति के बुजुर्ग बताते हैं कि पूजा के साथ मेला के आयोजन में जयकिशुन साह, एस के राय, रामनारायण सिंह आदि का योगदान भुलाया नहीं जा सकता. आज भी पूजन का आयोजन उसी स्वरुप में होता है. बुजुर्गों की मानें तो पूजा की शुरुआत के समय ही यहां मेला की नींव पड़ गई थी. चूंकि उस समय इतनी आबादी नहीं थी और जगह अधिक थी इसलिए मेला का स्वरुप इतना बड़ा होता था कि चलते-फिरते बड़े बाजारों के अलावा तरह-तरह के खेल तमाशा वाले भी आते थे. कालान्तर में जगह सिमट गयी और इसी हिसाब से मेला का स्वरुप भी छोटा होता चला गया.

पूजा को भव्य रुप देने की तैयारी

पूजा समिति के अध्यक्ष दीपक कुमार दीपू, उपाध्यक्ष संजय आर्य,संजय मोहन प्रभाकर,राकेश साह,अनिल अग्रवाल,सोनू शर्मा एवं राहुल कुमार मानव, कार्यकारी अध्यक्षअमित कुमार साह बबलू,डब्लू दा, शंकर साह,विजय कुमार भारती,रीणा मल्लिक, महासचिव त्रिलोक कुमार पांडेय उर्फ बौआ पांडेय,सचिव प्रकाश अग्रवाल, पलटू साह एवं राजीव रंजन श्रीवास्तव अपनी पूरी कमेटी के साथ आयोजन को भव्य रुप देने की तैयारी में जुटे हैं.

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