– सिकलीगढ़ धरहरा में दो दिवसीय विश्वस्तरीय वार्षिक संतमत सत्संग प्रतिनिधि, बनमनखी . महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज की जन्म व तपोभूमि सिकलीगढ़ धरहरा में दो दिवसीय विश्वस्तरीय वार्षिक संतमत सत्संग के आखिरी और दूसरे दिन रविवार को श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी.अपराह्नकालीन संतमत सत्संग में स्वामी व्यासानंद जी महाराज के प्रवचन को श्रवण करने अहले सुबह से ही दूरदराज के श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया है. इसमें महिलाओं की तादाद काफी अधिक रही. आखिरी दिन पचास हजार से अधिक श्रद्धालु पहुंचे.मंच पर स्वामी व्यासानंद जी महाराज का पदार्पण होते ही गुरु महाराज के जयकारे लगते रहे. मंच पर आसीन अन्य साधु महात्माओं ने प्रवचन दिया. मंच पर आसीन हुए स्वामी व्यासानंद जी ने आज के अपने प्रसंग में कर्म और जीवन पर प्रवचन देते हुए कहा कि जीवन की एक सेकंड की गारंटी नहीं है .इस शरीर से जीव के निकलने पर कितना लंबा रास्ता तय करना होगा. यह शरीर पर जब तक स्वस्थ है तब तक आगे का ठिकाना बना लो .आगे का भविष्य बना लो .आगे के जीवन को सुखमय बना लो. जब शरीर में रोग प्रवेश कर जाएंगे. तब कुछ नहीं होगा. इस डगर में आपको अपनी पहचान के कोई मिलेंगे. ना कहीं कोई चौक चौराहे मिलेंगे. ना साथ में संसार का कुछ जाएगा. ऐसे रास्ते में जहां हमारे साथ कुछ नहीं इस जीवन में एक बार गुरु के बताए हुए नाम का स्मरण किया है तो समझो कि एक दिन का खुराक तो ले ही लिए हैं. उन्होंने कहा कि संत का दिया हुआ नाम कभी भक्षक नहीं हो सकता और भक्षण करने वाला कभी संत नहीं हुआ करते हैं. सदगुरु दया के समुद्र है .जैसे समुद्र का जल कभी घटता नहीं वैसे सद्गुरु के अंदर जो शिष्य के प्रति दया है वह कभी घटती नहीं है. गुरु महाराज को आप कागज का पुतला समझने वाले को कुछ नहीं मिलता है .गुरु महाराज में विश्वास रखने वाले पर कभी विपत्ति नहीं आती है. धरती पर हमारे सदगुरु ने सभी शेषनाग को बस कर लिया .हमारा मन ही शेषनाग है. अनंत इच्छा रूपी फल है .सबके पास शेषनाग है. वही सब तो परेशान कर रखा है. सच्चे सपेरे हमारे सदगुरु महाराज है इसलिए सभी लोग शांत बैठे हुए हैं. हमारे गुरुदेव मनुष्य रूप में भगवान हैं. काल के भी महाकाल हमारे गुरुदेव हैं.गुरु को कभी मनुष्य ना समझना. गुरु के रूप को अपने अंदर में अपने सामने अभ्यास करते-करते प्रकट कर लेता है एक क्षण भी यदि साधक को गुरु मूर्ति का ध्यान सामने हो जाता है उनको दुनिया के सारे यज्ञ करने का पुण्य प्राप्त हो जाता है. ओरिया बाबा ने कहा आंख बंद करो. जैसे सीने के लिए धागा देते समय एकाग्रता से देखते हो. इस तरह एकाग्रतापूर्वक दोनों आंखों के मध्य में देखते रहो इधर-उधर नहीं .इधर-उधर का चिंतन उस समय हो नहीं. दृष्टि के पूर्ण एकाग्र होने पर अंदर में प्रकाश का चिह्न प्रकट होता है .हमारे गुरुदेव का वचन है .ब्रह्म ज्योति का अंधकार के कपाट खुलते ही दृष्टि के एकाग्र होते ही सबसे पहले सूक्ष्म प्रकाश प्रकट होता है. उसे सूक्ष्म प्रकाश के दर्शन होते ही सारे संसार के तप करने का फल प्राप्त हो जाता है.
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