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तत्कालीन एसपी की पहल से भवानीपुर में 75 साल से सज रहा कार्तिक पूर्णिमा का मेला

भवानीपुर

इन्देश्वरी यादव ,भवानीपुर. प्रखंड मुख्यालय स्थित बस पडा़व के पास कार्तिक पूर्णिमा पर 15 दिवसीय मेला लगाने की परंपरा 1950 से चली आ रही है . जानकारी के अनुसार, कार्तिक पूजा की शुरुआत जिला के तत्कालीन एसपी कैलाश प्रसाद झा एवं भवानीपुर के बड़े जमींदार बाबू जगन सिंह की पहल पर हुई थी. तब तत्कालीन एसपी श्री झा पुरोहित तो जमींदार बाबू जगन सिंह यजमान बने थे. बाबू जगन सिंह के वंशज के समीर , अजय व ऋषभ ने बताया कि उस समय के जिला के एसपी एवं मेरे दादाजी के बीच काफी गहरी मित्रता थी .उन्होंने बताया 50 के दशक में पूर्णिया के तत्कालीन आरक्षी अधीक्षक कैलाश प्रसाद झा उनके घर भवानीपुर आना जाना था. दोनों विद्वतजनों की पहल से ही कार्तिक पूजनोत्सव प्रारंभ हुआ. इस परंपरा को आज भी उनके वंशज के लोग निर्वाह कर रहे हैं. मेला को लेकर कई जिलों के दुकानदार अपनी दुकान को मेला के एक सप्ताह पूर्व जोर-शोर से सजाने की तैयारी कर रहे हैं. मेला मालिक वीरेंद्र कुमार सिंह समीर कुमार सिंह, अजय कुमार सिंह व ऋषभ कुमार सिंह मेला प्रांगण में भगवान कार्तिक की भव्य प्रतिमा स्थापित करने की तैयारी में लगे हुए हैं . भगवान कार्तिक समेत देवी- देवताओं की बनती भव्य प्रतिमा कार्तिक पूर्णिमा पर भगवान कार्तिक, भोलेनाथ, मैया पार्वती, भगवान गणेश सहित अन्य देवी देवताओं की प्रतिमा मेला मालिक अपने सौजन्य से प्रत्येक वर्ष आकर्षक प्रतिमा की स्थापना करते हैं. वर्तमान समय में वीरेंद्र कुमार सिंह ,ऋषभ सिंह ,समीर कुमार सिंह, अजय कुमार सिंह, अंशु कुमार सिंह, आदित्य कुमार सिंह परंपरा निभाने का काम कर रहे हैं . बताते हैं कि इस मेला में बिहार के कई जिलों के लोग अपनी अपनी दुकान लगाने के लिए एक सप्ताह पूर्व ही चले आते हैं. प्रसाद में चढ़ती केवल मुढी की लाई इस मेला की खास विशेषता यह है कि सिर्फ मुढी की लाई ही भगवान कार्तिक एवं अन्य भगवान को चढ़ाया जाता है. दूसरा कोई प्रसाद नहीं चढ़ता है. जो भी श्रद्धालु मेला में आते हैं उन्हें प्रसाद के रूप में मुढ़ी की लाइ ही दी जाती है. लोग बड़े ही श्रद्धा से प्रसाद ग्रहण करते हैं. ज्योतिषाचार्य सह आचार्य मृत्युंजय पाठक लाई के संबंध में बताते हैं अग्नि और ऊर्जा का प्रतीक मुरमुरा भुने चावल के होते हैं . वह अग्नि में तप कर शुद्ध होते हैं. भगवान कार्तिक का जन्म अग्नि से हुआ उनका दूसरा नाम अग्निज भी है इसलिए भने अन्न अर्पित करने से अग्नि और शक्ति की उपासना होती है.

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