Bihar Election Express: अखिलेश चंद्रा/सत्येंद्र सिन्हा, कसबा (पूर्णिया). प्रभात खबर का इलेक्शन एक्सप्रेस मंगलवार को पूर्णिया के कसबा विधानसभा क्षेत्र में लगी चौपाल के दौरान शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसे मुद्दे हावी रहे. चौपाल में क्षेत्र से पलायन रोकने, युवाओं को रोजगार दिलाने, जलजमाव और कई इलाकों में बाढ़ के संकट के स्थायी निदान के साथ वर्षों से लंबित पड़ी कसबा को अनुमंडल बनाने की मांग पर लोगों ने सवाल किये.
नशे के विरोध में मुखर हुए लोग
युवाओं ने स्मार्ट सिटी के बजाय स्मैक सिटी बनने का सवाल उठाकर जनप्रतिनिधियों को सवालों में लपेटा, तो युवाओं को नशे के खौफनाक चंगुल से निकाले जाने की भी जरूरत बतायी. इसके अलावा कसबा के औद्योगिक विकास के साथ कसबा कॉलेज में पीजी की पढ़ाई और बेहतर शिक्षण संस्थान की स्थापना आदि मुद्दों पर जनता ने नेताओं से तीखे सवाल पूछे. चौपाल में राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि के रूप में एनडीए के पूर्व प्रत्याशी एवं हम के जिलाध्यक्ष राजेंद्र यादव, भाजपा नेता किशोर कुमार जायसवाल, विधायक प्रतिनिधि चंदन सिंह उर्फ राजू सिंह, जनसुराज के नेता मो इत्तेफाक आलम, जदयू के पूर्णिया महानगर अध्यक्ष अविनाश कुमार मौजूद थे.
कई बार लोग उत्तेजित होते दिखे
सीटिंग विधायक की ओर से अपनी उपलब्धियां गिनायी गयीं, जिस पर जनता ने सवाल उठाया. सवाल-जवाब के दौरान कई बार लोग उत्तेजित होते दिखे. लोगों ने कहा कि फोरलेन राष्ट्रीय राजमार्ग के कसबा के मध्य से गुजरने के कारण बुनियादी ढांचे में काफी सुधार आया है और व्यापार व परिवहन के अवसर भी बढ़े हैं. मगर, विडंबना है कि कसबा मुख्यालय में आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध होने के बावजूद इसे अनुमंडल का दर्जा दिलाने की दिशा में आज तक कोई ठोस पहल नहीं की गयी. चौपाल के दौरान
कई बार तो लोगों के सवालों ने नेताओं को असहज भी किया, इसके बावजूद उन्होंने अपनी बात रख जनता को संतुष्ट करने की कोशिश की.

पलायन का भी उठाया मुद्दा
लोगों ने कहा कि कसबा के गढ़बनैली को औद्योगिक क्षेत्र माना जाता रहा है, पर न तो पुराने उद्योग को चालू करने की पहल हो सकी और न ही नये उद्योग लगाये जा सके. इसके लिए कभी आवाज भी नहीं उठायी गयी. इससे रोजगार का संकट और पलायन का सवाल आज भी खड़ा है. नागरिकों ने कहा कि कसबा विधानसभा क्षेत्र मक्का उत्पादन में अग्रणी है, लेकिन मक्का आधारित प्रसंस्करण उद्योगों की स्थापना न होने से किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता. फसल की बिक्री में बिचौलियों पर निर्भरता अधिक है. इससे किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है.

