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जीवन भर पति का साया बनकर रहीं नीता

तारापुर : वर्ष 1978 के जून माह में नीता चौधरी एवं डॉ मेवालाल चौधरी परिणय सूत्र में बंधे थे. उस वक्त मेवालाल चौधरी कृषि के क्षेत्र में बीएचयू से पीएचडी की उपाधि लेने के लिए अध्ययनरत थे. नीता चौधरी के चचेरे भाई सी प्रसाद जो बीएचयू में एचओडी थे. सी प्रसाद को अंदर से मेवालाल […]

तारापुर : वर्ष 1978 के जून माह में नीता चौधरी एवं डॉ मेवालाल चौधरी परिणय सूत्र में बंधे थे. उस वक्त मेवालाल चौधरी कृषि के क्षेत्र में बीएचयू से पीएचडी की उपाधि लेने के लिए अध्ययनरत थे. नीता चौधरी के चचेरे भाई सी प्रसाद जो बीएचयू में एचओडी थे.

सी प्रसाद को अंदर से मेवालाल चौधरी अपनी प्यारी बहन नीता के लिए सटीक लगे और फिर उनका रिश्ते लेकर कमरगामा आये. पीएचडी होते ही जून में विवाह संपन्न हुआ और दो माह के अंदर ही कृषि वैज्ञानिक के रूप में मुंगेर के कृषि विज्ञान केंद्र में पहली पोस्टिग हुई. जिसके बाद उन्होंने सबौर कृषि विश्वविद्यालय में बतौर प्रोफेसर के रूप में योगदान दिया.
तत्पश्चात शिमला में कृषि विज्ञान केन्द्र में सेवा दिया. फिर एक बार सी प्रसाद काम आये और इन्हें नयी दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में अनुसंधान करने का मौका मिला. जहां ये वरीय वैज्ञानिक का कार्य करने लगे और यहीं से इन्हें तीन वर्ष के लिए भारत सरकार ने शोध के लिए अमेरिका भेज दिया. जिसके एक माह के बाद नीता चौधरी भी अमेरिका चली गयीं. लेकिन नीता चौधरी ने खुद शादी के वक्त महज मैट्रिक तक की शिक्षा प्राप्त की थी.
जिसके बाद मेवालाल चौधरी के साथ रहने से उन्हें भी शिक्षा के प्रति ललक बढ़ी और अंत में उन्होंने भी तारापुर के आरएस कॉलेज से इतिहास में प्रतिष्ठा की डिग्री प्राप्त की. अपने पति के साथ रहने वाली नीता चौधरी हर वक्त पति के विकास के प्रति चिंतन करती थीं. नीता चौधरी पूरे जीवन पति का साया बनकर रहीं. जब 2010 में वे विधायक बनीं, तो उस समय मेवालाल चौधरी बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के कुलपति थे. उनके सेवानिवृत्त होने पर 2015 में नीता ने अपना सीट पति को सौंप दिया और आज वे तारापुर के विधायक हैं.

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