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स्वयं सहायता समूह के लिए बनी थी दुकान, अब है अवैध कब्जा

101 दुकानों का सरकारी स्तर पर हुआ था निर्माण पूर्णिया : स्वयं सहायता समूह के सदस्यों को रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से पूर्व प्रखंड कार्यालय के पूर्व और उत्तरी हिस्से में 101 दुकानों का निर्माण सरकारी स्तर पर कराया गया था. इन दुकानों को स्वयं सहायता समूह के सदस्यों को आवंटित किया गया, लेकिन […]

101 दुकानों का सरकारी स्तर पर हुआ था निर्माण

पूर्णिया : स्वयं सहायता समूह के सदस्यों को रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से पूर्व प्रखंड कार्यालय के पूर्व और उत्तरी हिस्से में 101 दुकानों का निर्माण सरकारी स्तर पर कराया गया था. इन दुकानों को स्वयं सहायता समूह के सदस्यों को आवंटित किया गया, लेकिन ये सभी दुकानें सिर्फ नाम के लिए ही स्वयं सहायता समूह के लोगों के लिए रह गयी है. आवंटन के बाद तो कुछ दिनों तक समूह के सदस्यों ने खुद दुकान चलायी, लेकिन इसके बाद इन सरकारी दुकानों को भाड़े पर दे दिया गया. अब स्थिति यह है कि स्वयं सहायता समूह के लोग इन दुकानों से बेदखल हो गये हैं और इन पर दबंगों का कब्जा है.
दुकानों से संचालित हो रहा है फलों का कारोबार: दरअसल सबसे पहले भाड़े को लेकर समूह के सदस्यों के बीच ही विवाद शुरू हुआ और इसके कारण दुकान का शटर बंद कर दिया गया. इसके बाद भाड़े पर काबिज दुकानदारों ने दुकान पर अपना कब्जा जमा लिया, अब यहां करोड़ों के फलों का कारोबार होता है. अब यही दुकान समूह के सदस्यों को वापस लेना भारी पड़ रहा है.
फल और अन्य कारोबारियों को दुकान किराये पर देना उनके गले में फांस बन कर रह गया है. दुकान खाली करना तो दूर, किराया भी नहीं मिल रहा है. कई दुकान को तो दबंगों ने जबरन अपने कब्जे में ले लिया है. समूह के सदस्य बताते हैं कि दुकान खाली करने के लिए कहने पर अवैध कब्जा करने वाले मारपीट पर उतारू हो जाते हैं. सदस्यों ने बताया कि प्रखंड कार्यालय के अधिकारी भी उनकी मदद करने से कतरा रहे हैं.
कई लोग बेच चुके हैं आवंटित दुकान
वर्ष 2012-13 में स्वयं सहायता समूह को दुकानें आवंटित होने के कुछ माह बाद ही दुकानें बिकनी शुरू हो गयी थी. जानकार बताते हैं कि जिन स्वयं सहायता समूहों का गठन हुआ था उसका पूर्ण स्वरूप केवल कागजों पर ही तैयार किया गया था. सूत्रों की मानें तो तकरीबन एक दर्जन समूह ही शुरुआती दौर में थोड़ा बहुत काम कर पाये, जबकि बांकी समूहों ने आवंटन के बाद गुपचुप तरीके से अपनी दुकानें लाखों रुपये लेकर बेच दी. बताया जाता है कि किसी ने पगड़ी के रूप में लाखों रुपये वसूले, तो किसी ने किराये पर दूसरे को दुकान सौंप दी.
लूट के इस खेल में कई साझेदार
मिली जानकारी अनुसार एसएचजी को प्रखंड कार्यालय द्वारा पहले 300 से 500 रुपये के महीने पर दुकानें आवंटित की गयी थी. इसमें बाद में किराये में बढ़ोतरी करते हुए 2016 में इसे 1000रुपये प्रतिमाह कर दिया गया. लेकिन इसमें काबिज कई दुकानदार ऐसे हैं, जो 05 से 06 हजार रुपये प्रतिमाह तथाकथित दुकान मालिक को भाड़े के तौर पर दे रहे हैं. इस लूट के खेल में कई सरकारी कर्मियों के भी शामिल होने की चर्चा आम है. हैरानी की बात यह है कि आवंटन के बाद आज तक कभी दुकानों का सर्वेक्षण नहीं हुआ है.

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