Bihar: बिहार का गया शहर हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों के लिए हमेशा से ही बेहद महत्वपूर्ण रहा है. मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से 108 कुल और सात पीढ़ियों का उद्धार होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. यही वजह है कि पितृ पक्ष के दौरान देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु गया आते हैं और अपने पितरों के लिए पिंडदान करते हैं. इन सबसे अलग, गयाजी की एक और खास बात है, जो लोगों का ध्यान खींच रही है. वह यह है कि यहां व्यक्ति अपना पिंडदान खुद भी कर सकता है.

गया के इस मंदिर में लोग करते हैं खुद का पिंडदान
गयाजी में भस्मकूट पर्वत पर स्थित मां मंगलागौरी मंदिर के पास जनार्दन भगवान का एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण मंदिर है, जहां आत्मस्वयं पिंडदान की परंपरा प्रचलित है. मंदिर प्रबंधन से जुड़े लोग बताते हैं कि गयाजी में पितृपक्ष चल रहा है और यहां विभिन्न प्रकार के श्राद्ध होते हैं. मंगलागौरी मंदिर के पास ही जनार्दन स्वामी का मंदिर है और यहां आत्मस्वयं पिंडदान की जाती है. इसका अर्थ यह है कि किसी व्यक्ति के आगे-पीछे किसी और के होने की आवश्यकता नहीं. यदि आपको चिंता है कि आपकी मृत्यु के बाद आपके संतान या परिवार के लोग पिंडदान नहीं करेंगे, तो आप जीवित रहते ही अपने लिए पिंडदान कर सकते हैं और मोक्ष की प्राप्ति के लिए उपाय कर सकते हैं.
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विष्णु पुराण में है गयाजी का विशेष स्थान
गयाजी के पावन स्थल होने के धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व का जिक्र पुराणों में भी मिलता है. वायु पुराण, गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण में गयाजी का विशेष स्थान बताया गया है और पारंपरिक धारणा यह है कि यहां किए गए श्राद्ध से पितर जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पा सकते हैं.
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