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उत्तराखंड में बिहार के लोगों को मिल रहा काम का अवसर, जानें क्यों आजीविका कमाने उत्तराखंड जाते हैं मजदूर

बिहार के लोग पहले उत्तराखंड शिक्षा प्राप्त करने जाते थे, लेकिन वहां फार्मा उद्योग के विकास के बाद शिक्षा ग्रहण करने के अलावा लोग रोजगार की तलाश में भी जाने लगे. इसके अलावा उत्तराखंड में आधारभूत संरचनाओं के विकास के लिए कई परियोजनाएं चल रही हैं. ऐसे में यहां बड़े पैमाने पर मजदूरों की मांग बढ़ी है.

पटना. बिहार से काम की तलाश में लोग वैसे तो पंजाब, महाराष्ट्र, बंगाल और दिल्ली जैसे राज्यों में अधिक जाते हैं, लेकिन हाल के दिनों में उत्तराखंड जैसे राज्यों में भी बिहार के लोगों की आवाजाही बढ़ी है. शिक्षा हो या नौकरी या फिर दिहाड़ी मजदूरी बिहार के काफी लोग आज उत्तराखंड की ओर रुख कर चुके हैं. एक जमाने में बिहार के लोग उत्तराखंड शिक्षा प्राप्त करने जाते थे, लेकिन वहां फार्मा उद्योग के विकास के बाद शिक्षा ग्रहण करने के अलावा लोग रोजगार की तलाश में भी जाने लगे. आज बड़ी संख्या में इस उद्योग में बिहार के लोगों की सहभागिता है. इसके अलावा उत्तराखंड में आधारभूत संरचनाओं के विकास के लिए कई परियोजनाएं चल रही हैं. ऐसे में यहां बड़े पैमाने पर मजदूरों की मांग बढ़ी है. बिहार के मजदूरों को यहां बड़े पैमाने पर काम मिला. आज शायद ही कोई ऐसी परियोजना वहां चल रही हो जिसमें बिहारी मजदूरों को काम न मिला हो. पिछले 17 दिनों से हादसाग्रस्त सुरंग में फंसे 40 मजदूरों में भी चार मजदूर बिहार के हैं.

फार्मा उद्योग ने बिहारियों को रिझाया

उत्तराखंड में बिहार के लोगों को सबसे अधिक रोजगार फार्मा उद्योग में मिला हुआ है. सेलाकुई, रुड़की के भगवानपुर, हरिद्वार, काशीपुर, सितारगंज, देहरादून के मोहब्बेवाला, ऋषिकेश आदि क्षेत्रों में करीब 1123 फार्मा उद्योगों में बड़ी संख्या में बिहार के लोग काम करते हैं. इसके अलावा पर्यटन और स्वास्थ्य संबंधी सेक्टर में भी बिहारियों की अच्छी खासी संख्या है. इसके साथ ही उत्तराखंड में संचालित हो रहे फर्नेस ऑयल व पेट्रो ऑयल से संबंधित 61 उद्योग पूर्ण होने को हैं. इनके निर्माण में तो बिहार के लोग लगे ही हुए हैं, इन उद्योगों में रोजगार पानेवालों में भी बिहार के लोग आगे रहेंगे. आज उत्तराखंड के निर्माण क्षेत्र में काम करनेवाले प्रवासी मजदूरों में बिहार के लोग सबसे अधिक हैं. सर्विस सेक्टर में भी बिहारियों की हिस्सेदारी प्रवासियों में सर्वाधिक है. पुष्कर सिंह धामी का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देवभूमि उत्तराखंड रोजगार सृजन के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है. राज्य सरकार उनके कथनानुसार 21वीं सदी के तीसरे दशक को उत्तराखंड का दशक बनाने के लिए संकल्पित है.

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देश में 35 प्रतिशत प्रवासी मजदूर

माइग्रेटेड लेबर का भारत में डाटा 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने वाले मजदूरों की संख्या 45.36 करोड़ है. जो देश की कुल जनसंख्या का 37% है. इसी गणना के मुताबिक भारत में काम करने वालों संख्या 48.2 करोड़ था. देश में कुल काम करने वालों की संख्या 2016 तक अनुमान के मुताबिक 50 करोड़ से भी ज्यादा होने का अनुमान है. 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार देश के भीतर मजदूरों की पहली पसंद गुरुग्राम, दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों थे. इसके अलावा यूपी के गौतम बुद्ध नगर (उत्तर प्रदेश), इंदौर और भोपाल (मध्य प्रदेश), बेंगलुरु (कर्नाटक); और तिरुवल्लूर, चेन्नई, कांचीपुरम, इरोड और कोयंबटूर (तमिलनाडु) जैसे जिलों में माइग्रेटेड लेबर ज्यादा थी मजदूर आते हैं.

उत्तराखंड रोजगार सृजन में देश में नंबर दो

बिहार के लोगों का उत्तराखंड की तरफ रुख करने का एक बड़ा कारण उत्तराखंड में बढ़े रोजगार के अवसर रहा है. सामान्य रोजगार सृजन में उत्तराखंड ने लंबी छलांग लगाई है. 28.6 प्रतिशत की वृद्धि के साथ उत्तराखंड देश के टाप 5 राज्य में दूसरे नंबर पर आ गया है. कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है. सीएम पुष्कर सिंह धामी ने इस उपलब्धि का श्रेय पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व के मार्ग-निर्देशन को दिया है. पिछले साल जनवरी से जून 2022 में 1,03,411 लोग फार्मल रोजगार से जुड़े थे, जबकि इस साल इसी अवधि में यह संख्या बढ़कर 1,33,023 पर पहुंच गई. यह करीब 28.6 प्रतिशत है. दूसरी तरफ आनुपातिक लिहाज से नंबर वन पोजिशन पर असम है. हालांकि बिहार तीसरे स्थान पर है.

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