Bihar Tourism: इतिहास और लोकमान्यता के अनुसार, मौर्य काल में सम्राट अशोक ने अपने 99 भाइयों की हत्या करा कर उनके शव को मंदिर परिसर के पास स्थित एक कुएं में डलवा दिया था, यह बात लोककथाओं में प्रचलित है. कई लोग आज भी उस कुएं को अशोककाल से जुड़ा मानते हैं और उसके पास दीया जलाकर मनोकामना करते हैं. इतिहासकारों के मत अलग-अलग रहे हैं, फिर भी आम श्रद्धालु इस स्थान को आस्था और इतिहास दोनों से जोड़कर देखते हैं.
कुएं से प्राप्त हुई थी मूर्ति
शीतला माता मंदिर की ऐतिहासिक महत्व की जब बात आती है तो इतिहासकारों के अनुसार करीब 2500 साल पहले यहां एक कुआं और नवपिंडी मौजूद थी, जो उस समय छोटे मंदिर में स्थापित थी. उनका कहना है कि तुलसी मंडी में जब कुएं की खुदाई की जा रही थी, तभी शीतला माता की खड़ी मूर्ति वहां से प्राप्त हुई. इसके बाद छोटी पहाड़ी, बड़ी पहाड़ी और तुलसी मंडी के ग्रामीणों ने मिलकर विचार-विमर्श किया और उसी स्थान पर माता शीतला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा कराई.
इस कुए में डाला गया था 99 भाइयों का शव
मंदिर के पूर्व दिशा में स्थित यह कुआं “अगमकुआं” के नाम से प्रसिद्ध है. माना जाता है कि यह कुआं चौथी शताब्दी में मौर्य सम्राट अशोक के समय का है. लोककथाओं के अनुसार, सम्राट अशोक ने राज्यारोहण से पहले अपने 99 भाइयों की हत्या कर उनके शव इसी कुएं में डलवा दिए थे. वर्तमान में इसकी सुरक्षा के लिए कुएं को ईंटों से ऊंचा घेरकर सुरक्षित किया गया है. मौर्य साम्राज्य में अशोक के भाइयों की संख्या बहुत अधिक बताई जाती है. सम्राट बिंदुसार की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार का सवाल खड़ा हुआ. राज्य की गद्दी पाने के लिए भाइयों के बीच संघर्ष हुआ. परंपरा और कथाओं के अनुसार, अशोक ने सत्ता सुरक्षित करने के लिए अपने लगभग 99 भाइयों को मरवा दिया था.
शीतला माता मंदिर पहुंचने के रास्ते
कंकड़बाग–कुम्हरार रोड के पूरब से होते हुए और गांधी सेतु के नीचे से गुजरकर आसानी से शीतला माता मंदिर पहुंचा जा सकता है. राष्ट्रीय राजमार्ग-30 से जीरो माइल होकर उत्तर दिशा में बढ़ने पर भी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है. अशोक राजपथ से आने वाले श्रद्धालु एनएमसीएच मार्ग से आरओबी पर चढ़कर अगमकुआं के पास उतरने के बाद मंदिर जा सकते हैं. वहीं, पटना साहिब से आने वाले भक्त सुदर्शन पथ और तुलसी मंडी होकर आरओबी तक पहुँचते हैं और वहां से अगमकुआं होते हुए मंदिर पहुंचते हैं.

