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Holi 2025 : होली पर नये रूप में अवतरित होती है प्रकृति, आज भी लुभाते हैं टेसू फूल के रंग

Holi 2025 : आनंद और उल्लास का पर्व होली से कुमकुम, अबीर-गुलाल, चंदन और सुगंधित अंग रागों से धरती-आकाश अनुरंजित हो जाते हैं. विशुद्ध रूप से प्रकृति निर्मित इस रंग से होली का त्योहार और भी रंगीन नजर आता है.

Holi 2025 : बांका. लोग कहते हैं कि वसंत प्रकृति का अनुपम रूप है तो फागुन उसका श्रृंगार करता है. प्रकृति नये रंग ओढ़ रही है. होली के साथ प्रकृति अपना स्वरुप बदल रही है. पेड़-पौधे में पतझड़ जारी है. दअरलस, यह फागुन मस्ती का महीना है, इस महीने समस्त प्रकृति पुष्पों, किसलयों की श्रृंगार-सज्जा से आनंदित और पुलकित हो जाती है. आम की मधुमती मंजरियों का झूम-झूमकर सृष्टि के प्राणों में मादकता का संचार करना, कोयल का बागों-वाटिकाओं में पंचम राग से कूकना, सरसों का वासंती फूलों के द्वारा इठलाना, खेतों में तृप्ति का उपहार लिए गेहूं की फसल का समर्पित होना, खिले हुए फूल पर भौरों का मंडराना आदि की प्राकृतिक उल्लास राग रंग चढ़ा देती है.

आनंद और उल्लास का पर्व होली

साहित्यकार डॉ आलोक प्रेमी वसंत के साथ फागुन के संबंध में कहते हैं कि गांव में इस अवसर पर मंजर से लदे आम के टहनियों पर कोयल की कूक मन को मुग्ध और तन को बेसुध करती है, यौवन मदमाता है. इन दिनों पलाश का पेड़ एक अलग सा रुप लेकर खड़ा है. पत्ते सब झड़ चुके हैं. पुष्प ही पुष्प नजर आ रहे हैं. चटक लाल रंग के फुल से पेड़ भरा पड़ा है. आनंद और उल्लास का पर्व होली से कुमकुम, अबीर-गुलाल, चंदन और सुगंधित अंग रागों से धरती-आकाश अनुरंजित हो जाते हैं. विशुद्ध रूप से प्रकृति निर्मित इस रंग से होली का त्योहार और भी रंगीन नजर आता है. रासायनिक रंगों के इस दौर में आज भी कई जगह पलाश के फूलों की डिमांड है. इसके सिंदूरी लाल रंग की काफी मांग है.

पलाश के फूल से बने प्राकृतिक रंग की मांग

इन दिनों टेसू के फूलों ने ऐसा श्रृंगार किया है कि वनों की सुंदरता देखते ही बनती है. टेसू को पलास, परसा, ढाक और केसू आदि नाम से जाना जाता है. लाल और केसरिया रंग के टेसू के फूल फाल्गुन पूर्णिमा आते-आते दूर से ही अपने ओर आकर्षित करने लगते हैं. सामाजिक सरोकारों से लेकर साहित्य रंजन में भी पलाश के फूल का अपना महत्व रहा है. प्राचीन ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है. होली पर इसके फूलों के रंगों का बड़ा महत्व रहा है. आज भी कुछ लोग त्वचा का नुकसान की जगह लाभ पहुंचाने वाले टेसू के फूलों से रंग निकालकर होली खेलते हैं. खास कर ग्रामीण पलाश के फूल से बने प्राकृतिक रंग से होली खेलते हैं.

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