पटना. प्रसिद्ध प्रगतिशील-जनवादी कवि, आलोचक, कहानीकार, नाटककार, निबंधकार और संपादक डॉ तैयब हुसैन पीड़ित का रविवार को निधन हो गया. वे हिंदी के प्रोफेसर थे और सिवान के जेडए इस्लामिया कॉलेज के हिंदी विभाग से सेवानिवृत्त हुए थे. हिंदी में भी उन्होंने रचनाएं लिखीं, पर उससे ज्यादा वे भोजपुरी साहित्य की यथार्थवादी-प्रगतिशील परंपरा के विकास के लिए जाने जाते थे. रविवार को पटना के अपोलो हॉस्पीटल में लगभग 2ः30 बजे उनका निधन हो गया. वे लीवर और किडनी के परेशानियों से संघर्ष कर रहे थे. उनका जन्म 16 अप्रैल 1945 को सारण जिला के मिर्जापुर गांव में हुआ था. प्रगतिवादी-जनवादी सिद्धांतों के प्रति उनकी दृढ़ता, उनका शालीन व्यक्तित्व और उनकी बेबाकी को कभी भुलाया नहीं जा सकता. उनके निधन से भोजपुरी साहित्य जगत ने प्रगतिशील-समाजशास्त्रीय दृष्टि वाली एक प्रतिभाशाली शख्सियत को खो दिया है. डॉ तैयब हुसैन महान लोककलाकार भिखारी ठाकुर के विशेषज्ञ विद्वान थे. उन्होंने ‘भिखारी ठाकुर: व्यक्तित्व-कृतित्व’ विषय पर ही पीएचडी की थी. साहित्य अकादमी के लिए भिखारी ठाकुर पर लिखा गया उनका मोनोग्राफ उल्लेखनीय कृति है. वे लोक इतिहास और लोकसंस्कृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले फतेहबहादुर शाही और मास्टर अजीज जैसी शख्सियतों पर भी लिखा और बोला. उन्होंने कई पुस्तकें भी संपादित और प्रकाशित की, जिनमें कहानी संग्रह- एगो बड़ परिवार, भोजपुरी नाटक, जिसमें तेरह प्रतिनिधि नाटक और एकांकी शामिल हैं. तैयब हुसैन पीड़ित को भोजपुरी साहित्य और संस्कृति से जुड़े संगठनों की ओर से कई सम्मान और पुरस्कार मिले. जन संस्कृति मंच अपने वैचारिक हमसफर डॉ तैयब हुसैन ‘पीड़ित’ के निधन पर गहरा शोक जाहिर करते हुए अपनी श्रद्धांजलि अर्पित किया है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है