Durga Puja 2025: फेस्टिवल का दौर शुरू होते ही पटना का माहौल भक्ति और उत्साह से भरने लगा है. दुर्गा पूजा की तैयारियां अब हर गली-चौराहे पर नजर आने लगी हैं. कुर्जी मोड़, चूड़ी बाजार, डाकबंगला और बंगाली अखाड़ा जैसे इलाकों में कारीगर मां दुर्गा की प्रतिमाओं को गढ़ने में पूरी मेहनत से लगे हुए हैं. यहां कहीं बांस का फ्रेम खड़ा किया जा रहा है, तो कहीं भूसा और कपड़े की मदद से उसे मजबूत बनाया जा रहा है. कई जगह मूर्तियों पर मिट्टी की पहली परत चढ़ चुकी है और मां दुर्गा के चेहरे के भाव, हाथ-पांव और बाकी अंग धीरे-धीरे आकार लेने लगे हैं. प्रतिमा निर्माण की यह पूरी प्रक्रिया केवल कला का उदाहरण ही नहीं, बल्कि कारीगरों के धैर्य, समर्पण और कड़ी मेहनत की भी झलक दिखाती है. उनकी दिन-रात की लगन ही आने वाले दिनों में पूजा पंडालों को जीवंत और आकर्षक बनाने वाली है.
गंगा की मिट्टी से तैयार की जाती है मूर्तियां
गंगा और खेतों की मिट्टी, सरकंडा, पटवा और भूसा से मूर्तियां तैयार की जाती हैं. खास बात यह है कि पटवा पानी में आसानी से गल जाता है. रंगों के लिए भी केवल पानी से बने रंगों का उपयोग किया जाता है ताकि विसर्जन के बाद नदी को कोई नुकसान न पहुंचे. तेल वाले पेंट से बचा जाता है क्योंकि वे प्रदूषण फैलाते हैं.
चाय पत्ती का होता है उपयोग
टिकाऊपन के लिए कारीगर चाय पत्ती का पाउडर और इमली के बीज तक का इस्तेमाल करते हैं. इस बार मां का मुकुट और सजावट का सारा सामान बंगाल से लाया गया है. सबसे बड़ी प्रतिमा करीब 10 फीट ऊंची होगी, जिसकी लागत लगभग 80 हजार रुपये है.
बंगाल से आता है शृंगार और रंग
पटना के बोरिंग कैनाल रोड पर इस बार 14 फीट ऊंची पंचमुखी प्रतिमा तैयार की जा रही है. मूर्तियों के लिए शृंगार और रंग का सामान हमेशा की तरह बंगाल से मंगवाया जाता है. मिट्टी, भूसा और कपड़े की परतों से मूर्ति तैयार होती है, फिर रंग चढ़ाया जाता है और अंत में मां के नयन-नक्श गढ़े जाते हैं. रंगों को टिकाऊ बनाने के लिए इमली के बीज का इस्तेमाल किया जाता है. यही पुरानी परंपरा है, और इसके चलते कभी भी केमिकल का प्रयोग नहीं किया जाता. यह न केवल परंपरा को जीवित रखता है बल्कि पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित है.

