Bihar News: इस समझौते के तहत दोनों संस्थान मिलकर अनमोल पांडुलिपियों को डिजिटल रूप में संरक्षित करेंगे. इन पांडुलिपियों में बिहार के प्राचीन ज्ञान और संस्कृति का अनमोल खजाना है, जिसे सुरक्षित रखने के साथ-साथ शोधकर्ताओं और इतिहास प्रेमियों के लिए ऑनलाइन उपलब्ध भी कराया जाएगा. साथ ही, नालंदा विश्वविद्यालय और बिहार म्यूजियम संयुक्त शैक्षणिक पाठ्यक्रम तैयार करेंगे, जो छात्रों को राज्य के इतिहास, पुरातत्व और संस्कृति के बारे में गहरी जानकारी देंगे. इस पहल के तहत विभिन्न सांस्कृतिक और शैक्षणिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे, जैसे प्रदर्शनियां, मीटिंग्स और सम्मेलन, ताकि आम लोग बिहार की परंपराओं से परिचित हो सकें.
ट्रेनिंग के जरिए दी जाएगी जानकारी
म्यूजियम और विश्वविद्यालय मिलकर ऐसे कार्यक्रम चलाएंगे, जिसमें विशेषज्ञ और छात्रों को पुरातत्व, इतिहास और संग्रहालय विज्ञान के काम के बारे में सीखा जाएगा. इन कार्यक्रमों का उद्देश्य नई पीढ़ी को इन क्षेत्रों में सक्षम बनाना और उन्हें बिहार की सांस्कृतिक विरासत के बारे में जागरूक करना है.
विश्व स्तर पर बनेगी पहचान
नालंदा विश्वविद्यालय, जो प्राचीन काल में विश्व का एक प्रमुख शिक्षा केंद्र था, अब बिहार म्यूजियम के साथ मिलकर अपनी ऐतिहासिक परंपरा को आधुनिक विज्ञान और शिक्षा के साथ जोड़ रहा है. यह सहयोग न केवल बिहार बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का विषय है, क्योंकि यह हमारी प्राचीन संस्कृति को सुरक्षित रखते हुए उसे विश्व स्तर पर प्रस्तुत करने का प्रयास है.
क्या होती हैं पांडुलिपियां
पांडुलिपि दस्तावेज या किताब होती है, जिसे हाथ से लिखा गया होता है. यह पुराने समय के ज्ञान, इतिहास और संस्कृति को सुरक्षित रखने का जरिया होती है. इन्हें पढ़कर हम प्राचीन काल की जानकारी और परंपराओं को जान सकते हैं.
बिहार की विरासत है पांडुलिपियां
बिहार की सांस्कृतिक विरासत में पांडुलिपियों का विशेष स्थान है. ये पुराने समय के हाथ से लिखे दस्तावेज हैं, जिनमें राज्य के इतिहास, ज्ञान और परंपराओं की जानकारी सुरक्षित रहती है. पांडुलिपियों के जरिए हम बिहार की प्राचीन संस्कृति और ज्ञान को समझ सकते हैं.

