संवाददाता , पटना बिहार पुलिस में सीधी भर्ती में चरित्र सत्यापन अब सिर्फ एक फॉर्म भरने की औपचारिकता नहीं रहेगी. यदि कोई अभ्यर्थी अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि की जानकारी छुपाता है या झूठ बोलता है, तो उसे नौकरी नहीं मिलेगी, चाहे उसका नाम पुलिस भर्ती बोर्ड या भर्ती आयोग की मेरिट सूची में क्यों न हो ? लेकिन किसी भी आपराधिक मामले में नामजद होना मात्र नियुक्ति रद्द करने का कारण नहीं बनेगा. अब हर मामले को उसके तथ्य और गंभीरता के आधार पर केस टू केस देखा जायेगा. सक्षम अधिकारी विवेकाधीन निर्णय लेंगे. पुलिस मुख्यालय ने यह दिशा-निर्देश सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले और पुलिस हस्तक तथा सामान्य प्रशासन विभाग के निर्देशों के प्रकाश में 22 मई को जारी किये हैं. अब आपराधिक मामलों की जानकारी छुपाने या गलत सूचना देने के मामले में सख्त, लेकिन न्यायपूर्ण रुख अपनाया जायेगा. पहले पुलिस मैनुअल के नियम 673(ग) और स्थायी आदेश संख्या-01/2020 के तहत अभ्यर्थी द्वारा आपराधिक मामलों की जानकारी छुपाने पर नियुक्ति रद्द कर दी जाती थी. अब ऐसा नहीं होगा. मामूली या राजनीतिक-सामाजिक कारणों से लगे छोटे मामलों के कारण अभ्यर्थी की योग्यता पर असर नहीं पड़ेगा, लेकिन गंभीर और जानबूझकर छुपाए गए मामलों पर सख्ती बरती जायेगी. सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन अनिवार्य सुप्रीम कोर्ट ने 2016 के फैसले अवतार सिंह बनाम भारत संघ में कहा था कि नियोक्ता को नियुक्ति से पहले या बाद में अभ्यर्थी द्वारा दी गयी जानकारी की सत्यता पर ध्यान देना चाहिए. जानबूझकर छुपाने या गलत जानकारी देने पर नियुक्ति रद्द की जा सकती है, लेकिन मामूली और तुच्छ मामलों में, जैसे किशोरावस्था में आंदोलन में भाग लेना या हल्का अपराध, नियोक्ता अपने विवेकाधीन अधिकार का इस्तेमाल कर सकता है. आदेश जारी करने की वजह क्या है? : कुछ समय में कई ऐसे मामले सामने आए, जहां अभ्यर्थी अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि छुपाकर चयनित हुए, लेकिन जांच में असलियत सामने आयी. इससे भर्ती प्रक्रिया में भेदभाव और न्यायहीनता हुई. कुछ मामूली मामलों के कारण योग्य अभ्यर्थी रोके गए, जबकि गंभीर अपराध के आरोपों वाले अभ्यर्थी भर्ती हो गये. इस वजह से भर्ती व्यवस्था में असमानता और भ्रम बढ़ा. इसलिए बिहार पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए नियम कड़ा किया है. हर मामला अब व्यक्तिगत जांच का विषय: पुलिस मुख्यालय ने स्पष्ट किया है कि प्रत्येक मामले का मूल्यांकन केस टू केस किया जायेगा. सत्यापन पदाधिकारी या एजेंसी की रिपोर्ट और अभ्यर्थी की दी गई जानकारी में अंतर होने पर नियुक्ति प्राधिकारी उस अंतर की समीक्षा करेगा. कठोर निर्णय से पहले सुप्रीम कोर्ट के 11 बिंदुओं और सामान्य प्रशासन विभाग, बिहार के 23 जुलाई 2020 के निर्देशों का पालन अनिवार्य होगा. मुख्य बिंदु जो नये निर्देशों में शामिल हैं यदि अभ्यर्थी ने आपराधिक मामलों की जानकारी छुपाई है, तो नियुक्ति प्राधिकारी मामले की गंभीरता, संदर्भ और अभ्यर्थी के चरित्र को देख निर्णय करेगा. लंबित मामलों की सही सूचना देने पर भी नियुक्ति प्राधिकारी विवेक से निर्णय ले सकता है. यदि अभियोजन के दौरान दोष सिद्ध हो चुका है और मामला गंभीर है, तो नियुक्ति रद्द की जा सकती है. तकनीकी कारणों से बरी किये गये मामलों को भी क्लीन चिट नहीं माना जायेगा, पूरी परिस्थिति का अध्ययन होगा. नियुक्ति के बाद यदि कोई छुपी हुई जानकारी सामने आती है, तो विभागीय कार्रवाई होगी. एक से अधिक लंबित आपराधिक मामले छुपाना गंभीर अपराध होगा और नियुक्ति रद्द हो सकती है.
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