बिहार म्यूजियम बिनाले के तीसरे संस्करण के तहत किलकारी बिहार बाल भवन में सात दिवसीय मुखौटा सृजन कार्यशाला का रविवार को शुभारंभ हुआ. यह कार्यशाला किलकारी और बिहार म्यूजियम के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित की जा रही है. इसका मुख्य उद्देश्य बच्चों को मुखौटा परंपरा की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता से अवगत कराना है. साथ ही, उन्हें भारत और विश्व की विभिन्न मुखौटा संस्कृतियों से परिचित कराना है.
कार्यशाला में विशेषज्ञ के रूप में मध्य प्रदेश से एनएसडी एलुमनाइ सुशील कांत मिश्रा और हरियाणा से नीरज कुमार शामिल हुए हैं. उद्घाटन समारोह में बिहार म्यूजियम के अपर निदेशक अशोक कुमार सिन्हा ने कहा कि बच्चों को मुखौटा के प्राचीन इतिहास के बारे में बताया. उन्होंने रामायण के पात्रों जैसे जामवंत, हनुमान और जटायु को मुखौटा परंपरा का वाहक बताया. उन्होंने यह भी जानकारी दी कि मेक्सिको जैसे देशों में ‘डे ऑफ द डेथ’ जैसे पर्वों में मुखौटा संस्कृति आज भी जीवंत है, जहां लोग अपने पूर्वजों से मिलने के लिए मुखौटे पहनते हैं.
बता दें कि, यह कार्यशाला 24 अगस्त से 1 सितंबर तक चलेगी, जिसमें किलकारी के सभी नौ प्रमंडलों से 100 से अधिक बच्चे भाग ले रहे हैं. बच्चे विशेषज्ञों से मुखौटा बनाने की तकनीक सीखेंगे. इस वर्ष की कार्यशाला का एक प्रमुख थीम रामायण के पात्र हैं, जिन्हें बच्चे कार्यशाला के अंत में एक गीत-नाटिका के रूप में मुखौटों के साथ मंच पर प्रस्तुत करेंगे. यह कार्यशाला बच्चों में कला और संस्कृति के प्रति जागरूकता बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
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