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स्टोरी : जैविक कचरा फैला रहा है संक्रमण

स्टोरी : जैविक कचरा फैला रहा है संक्रमणइलाज का कचरा फैला रहा बीमारी/ इलाज का कचरा कर रहा हमें बीमार- शहर के सरकारी अस्पतालों से रोज निकल रहे 16 क्विंटल जैविक कचरे, पर पांच क्विंटल का ही होता निबटान- पटना में सिर्फ दो अस्पतालों में ही इन्सीनरेटर की सुविधा, प्राइवेट अस्पतालों में जमा हो रहे […]

स्टोरी : जैविक कचरा फैला रहा है संक्रमणइलाज का कचरा फैला रहा बीमारी/ इलाज का कचरा कर रहा हमें बीमार- शहर के सरकारी अस्पतालों से रोज निकल रहे 16 क्विंटल जैविक कचरे, पर पांच क्विंटल का ही होता निबटान- पटना में सिर्फ दो अस्पतालों में ही इन्सीनरेटर की सुविधा, प्राइवेट अस्पतालों में जमा हो रहे कचरे की भी कोई व्यवस्था नहीं प्रदेश का हाल2500 अस्पताल 67000 बेड 21000 मरीज भरती 120 क्विंटल कचरा निकलता है 22 क्विंटल कचरे ही इन्सीनरेटर में पहुंच पाते हैंशहर का हाल16 क्विंटल जैविक कचरे निकलता है रोजाना05 क्विंटल का ही होता है निबटानआनंद तिवारी, पटनाराजधानी के लोग मेडिकल वेस्ट से होनेवाले संक्रमण और बीमारियों की जद में हैं. मुख्य वजह है, इस कचरे का पुख्ता निबटान न होना. स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के अनुसार शहर के सरकारी अस्पतालों से निकलनेवाले हर माह 16 क्विंटल से अधिक मेडिकल वेस्ट में से पांच क्विंटल का ही निबटान हो पाता है. रिपोर्ट के आधार पर स्वास्थ्य विभाग ने सरकारी अस्पतालों का कचरा 15 नवंबर तक इन्सीनरेटर में ही डिस्पोज करने के आदेश दिये थे, लेकिन दिसंबर खत्म होने को है, कोई कार्रवाई नहीं की गयी है. ऐसे में आशंका है कि बचा हुआ मेडिकल वेस्ट नालों में बहाया जा रहा है ओर वेस्ट डंपिंग पीएमसीएच या आइजीआइएमएस में जा रहा है. खुले में होने की वजह से इससे नयी बीमारियों और संक्रमण का खतरा बढ़ रहा है.इन्सीनरेटर कम और कचरा अधिकगौरतलब है कि पीएमसीएच और आइजीआइएमएस महज दो अस्पतालों में ही इन्सीनरेटर की सुविधा दी गयी है. पीएमसीएच में तो खुद अपने विभाग का कचरा डंप होता है. इससे ज्यादा क्षमता का इन्सीनरेटर आइजीआइएमएस में है, जो अपने अस्पताल का ही नहीं, बल्कि शहर के सभी सरकारी अस्पतालों के कचरों को नष्ट कर सकता है. लेकिन हकीकत यही है कि यहां प्राइवेट अस्पतालों के कचरे भी जमा होते हैं. नतीजा यहां मेडिकल कचरा हमेशा खुले में रहता है. प्राइवेट या अन्य सरकारी अस्पतालों में इन्सीनरेटर नहीं होने से यह समस्या आ रही है.एम्स में नहीं लगा बायोगैस प्लांटएम्स पटना में इन्सीनरेटर के बजाय अपना कचरा भस्म करने के लिए एवलुएंट और बायोगैस प्लांट लगाने की योजना बनायी गयी थी. इसके तहत अस्पतालों से निकलने वाले कॉटन, बैंडेज, प्लास्टर जैसे ऑर्गेनिक कचरे को एवलुएंट ट्रीटमेंट प्लांट में स्टोर करने के बाद कचरे को बायो गैस प्लांट के टैंक में गोबर व मिट्टी के साथ मिलाना है. इससे बनी बायो गैस एम्स के किचन में सप्लाइ होगी. करीब 150 बेड वाले अस्पताल से रोजाना एक क्विंटल जैविक निकलने का दावा था. लेकिन योजना अभी भी अधर में ही है. इन्सीनरेटर खोलने के दावे फेल सूत्रों के अनुसार शहर व प्रदेश के सभी बड़े अस्पतालों में होनेवाले बायोमेडिकल वेस्ट के निबटान के लिए 10 नये इन्सीनरेटर खोलने की बात कही गयी है. ये इन्सीनरेटर प्राइवेट हॉस्पिटलों, नर्सिंग होम्स संचालक आपस में एक सोसाइटी बना कर खोलेंगे. लेकिन, अभी तक इस योजना पर अमल नहीं किया गया. नतीजा मेडिकल कचरा जमा होता जा रहा है. यह है अपने प्रदेश की स्थितिरिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर जिला अस्पताल स्तर पर करीब 2500 अस्पताल हैं. इन सभी वार्डों में 67 हजार बेड हैं, जिन पर हमेशा 21 हजार मरीज भरती रहते हैं. इन मरीजों के इलाज में उपयोग होनेवाले कॉटन, बैंडेज, आइवी फ्लूड बॉटल, सिरिंज, इंजेक्शन आदि मिला कर कुल 120 क्विंटल कचरे निकलते हैं. इनमें से 22 क्विंटल कचरे ही इन्सीनरेटर में पहुंच पाते हैं. वहीं अस्पतालों की खाली पड़ी जमीन पर दफन किया जाता है. कचरे में शामिल कॉटन, बैंडेज और बॉडी पार्ट एक से दो दिन में नष्ट हो जाते हैं. लेकिन आइवी फ्लुड की बाॅटल, सीरिंज, निडिल सहित सर्जिकल आइटम नष्ट नहीं होते हैं. इससे मिट्टी प्रदूषित हो जाती है, जिससे बारिश में संक्रमण का खतरा बन जाता है. कोटमेडिकल नर्सिंग होम से कचरा कलेक्ट कर जलाने का जिम्मा आइजीआइएमएस को है, लेकिन कचरे का निबटान क्यों नहीं हो रहा है, इस पर मैं इसके जिम्मेदार अधिकारी से बात करता हूं, अगर दोषी पाये गये तो कार्रवाई होगी.- प्रो सुभाष, चेयरमैन, बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डकचरा प्रबंधन अनिवार्य है. इसके नहीं होने से कई तरह की संक्रामक बीमारियां होती हैं. इसके लिए चाहिए कि हर बड़े अस्पतालों व नर्सिंग होम में इन्सीनरेटर की व्यवस्था हो. वहीं इन्सीनरेटर होने के बाद भी अगर कचरा नहीं उठा रहा है, तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कार्रवाई करे.- डाॅ सुनील सिंह, सदस्य शासकीय निकाय, आइजीआइएमएस————-ये हो सकती हैं बीमारियांइस तरह जमा संक्रामक कचरा दूसरे गैर-संक्रामक कचरों को भी दूषित कर देता है. इससे पैदा होने वाले फ्यूरांस और डायोक्सिन जैसे प्रदूषक तत्त्व कैंसर, मधुमेह, प्रजनन और शारीरिक विकास संबंधी कई परेशानियों की वजह बन सकते हैं. कचरे में मौजूद खतरनाक बीमारियों के वाहक कई तरह के जीवाणुओं की जद में न केवल अस्पतालकर्मी, निगमकर्मी, कचरा बीनने वाले, बल्कि पशु-पक्षी भी आते हैं और फिर यह संक्रमण दूसरे लोगों तक भी पहुंचता है.1. हेपेटाइटिस बी2. संक्रमण से फैलने वाली बीमारियां3. टिटनेस4. संक्रमित सुई के चुभने से हो सकता है एड्स5. कूड़े के पानी में या धूप में पड़े रहने से फैलता है संक्रमण6. जलने पर निकलने वाले धुएं से हो सकती हैं कई बीमारियांनिजी, सरकारी अस्पताल दिखा रहे कानून को ठेंगाबायो मेडिकल वेस्टेज का प्राॅपर निस्तारण न करना कानूनन अपराध है. बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट आॅफ हैंडलिंग रूल्स 98 के तहत बायो मेडिकल वेस्टेज इधर-उधर फेंकना गैर कानूनी है. बायो मेडिकल वेस्टेज का प्रापर डिस्पोजल न कर सार्वजनिक स्थान पर फेंकना म्यूनिसिपल काॅरपोरेशन एक्ट, पुलिस एक्ट 69 की धारा 34, इंवायरमेंट प्रोटेक्शन एक्ट 86 की धारा 15 का भी उल्लंघन है. इस अपराध के लिए दोषी पाए जाने पर आरोपित को पांच साल तक की सजा का भी प्रावधान है. ऐसे होता है निबटानहॉस्पिटल वेस्ट के सुरक्षित और प्रभावी निराकरण के कुछ उपाय होते हैं.जैसे- सेग्रीगेशन, डिसइन्फेक्शन-, स्टोरेज, ट्रांसपोर्ट, फाइनल डिस्पोजल सेग्रीगेशन –इस प्रक्रिया में अलग अलग अवशिष्ट पदार्थों को अलग रंगों के थैलों में डाला जाता है. जिससे सबका अलग तरह से निस्तारण होता है.पीला : ऐसे थैलों में सर्जरी में कटे हुए शरीर के भाग, लैब के सैम्पल, खून से युक्त मेडिकल की सामग्री ( रुई/ पट्टी), एक्सपेरिमेंट में उपयोग किये गए जानवरों के अंग डाले जाते हैं. इन्हें जलाया जाता है या बहुत गहराई में दबा देते हैं.लाल : इसमें दस्ताने, कैथेटर , आइवी सेट , कल्चर प्लेट को डाला जाता है. इनको पहले काटते हैं फिर ऑटो क्लैव से डिसइन्फेक्ट करते हैं. उसके बाद जला देते हैं.नीला या सफेद बैग : इसमें गत्ते के डिब्बे , प्लास्टिक के बैग, जिनमें सुई, कांच के टुकड़े या चाकू रखा गया हो, उनको डाला जाता है. इनको भी काट कर केमिकल द्वारा ट्रीट करते हैं फिर या तो जलाते हैं या गहराई में दफनाते हैं.काला : इनमें हानिकारक और बेकार दवाइयां, कीटनाशक पदार्थ और जाली हुई राख डाली जाती है. इसको किसी गहरे वाले गड्ढे में डालकर ऊपर से मिटटी दाल देते हैं.द्रव : इनको डिसइन्फेक्ट करके नालियों में बहा दिया जाता है. डिसइन्फेक्शन-इस प्रक्रिया द्वारा हानिकारक कीटाणुओं को हटा दिया जाता है. इसके कुछ विशेष तरीके हैं जैसे-थर्मल ऑटोक्लैव- इससे गर्मी द्वारा कीटाणु नष्ट करते हैं,केमिकल – इसमें फॉर्मएल्डीहाइड , ब्लीचिंग पावडर, एथिलीन ओक्साइड से कीटाणु नष्ट करते हैं.रेडीएशन- अल्ट्रा वोइलेट किरणों द्वारा कीटाणुओं का नाश करते हैं. स्टोरेज –जब तक थैले पूरी तरह भर न जाए, तब तक अवशिष्ट पदार्थों को निश्चित जगहों पर थैलों में भरकर रखा जाता है. इन थैलों पर नाम लिखते हैं और सिक्यूरिटी गार्ड रखा जाता है. ताकि कोई बाहरी व्यक्ति या कूड़ा उठाने वाला उसे गलती से न ले जाए. बाद में अस्पताल की निश्चित गाड़ियों में रखकर इन्हें जलाने या दफनाने भेजा जाता है. ट्रांसपोर्ट –अवशिष्ट पदार्थों को अस्पताल के अंदर और बाहर ले जाया जाता है. जो कर्मचारी ये काम करते हैं वे अपने हाथ में दस्ताने पहनते हैं और ये ध्यान रखा जाता है कि ये पदार्थ ट्रोली से बाहर न फैलें. ऐसी गाड़ियों में साधारण कूड़ा नहीं रखा जाता है. फाइनल डिस्पोजल –जो पदार्थ संक्रामक होते हैं, उन्हें जलाया जाता है. जो संक्रामक नहीं होते हैं, जैसे कागज उन्हें फिर से रीसाइकिल करके उपयोग कर लेते हैं. आजकल बड़े शहरों में कुछ एजेंसियां हर माह अस्पतालों से बायो मेडिकल वेस्ट कलेक्ट करके ले जाती हैं और उसी हिसाब से उनसे पैसे लेती हैं. इन एजेंसियों ने इस तरह के वेस्ट को ट्रीट करने के लिए अलग से प्लांट लगा रखे हैं, इन सभी को वहीं पर इकट्ठा करने के बाद उसे ट्रीट किया जाता है.

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