10.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

पुराने साथियों के जेहन में ताजा हैं ”लालू” की यादें

पटना : जातिगत-जटिलताओं में उलझे बिहार में 1990 के दशक में सत्ता में आने वाले और घोटाले के दाग दामन पर लगने के बाद राज्य में अपनी सत्ता खो बैठने वाले लालू प्रसाद यादव के बोलने के अलग अंदाज की भले ही नकल उतारी जाती हो लेकिन उन्हें करीब से देखने वाले लोगों का मानना […]

पटना : जातिगत-जटिलताओं में उलझे बिहार में 1990 के दशक में सत्ता में आने वाले और घोटाले के दाग दामन पर लगने के बाद राज्य में अपनी सत्ता खो बैठने वाले लालू प्रसाद यादव के बोलने के अलग अंदाज की भले ही नकल उतारी जाती हो लेकिन उन्हें करीब से देखने वाले लोगों का मानना है कि राजनीतिक मोर्चे पर लालू की दमदार वापसी यह दिखाती है कि वह जन भावनाओं पर कितनी मजबूत पकड रखते हैं.

पंजाब के एक जाने माने निजी स्कूल के प्राचार्य अरुण जी 1970 के दशक के दौरान पटना विश्वविद्यालय में लालू के जूनियर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘‘जब मैंने टीवी पर नतीजे देखे तो मुझे खुशी हुई। यह खुशी किसी पार्टी विशेष के लिए नहीं थी, बिहार के लिए थी।’ हालिया विधानसभा और संसदीय चुनावों में राजनीतिक हाशिए पर धकेल दिए गए लालू ने महागठबंधन की इस दमदार जीत के साथ बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में ‘किंगमेकर’ के रुप में वापसी की है. हालांकि कई लोगों ने सोशल मीडिया पर यह दावा किया है कि इसका नतीजा ‘‘जंगल राज की वापसी’ के रुप में सामने आएगा.अरुण ने कहा, ‘‘पूरे चुनाव के दौरान ‘जंगल राज’ का हौव्वा बनाकर रखा गया और यह बेहद दुखद है कि जनता द्वारा जनादेश दिए जाने के बाद भी, लालू पर प्रहार जारी हैं. टिप्पणियां अच्छी, बुरी या भद्दी हो सकती हैं लेकिन लोग इस व्यक्ति को नजरअंदाज कतई नहीं कर सकते।’

पटना में रहने वाले पूर्व रॉ अधिकारी ज्योति कुमार सिन्हा :71: ने जब वर्ष 1990 में लालू के सत्ता में आने की खबर सुनी, तब वह खुद पेरिस में थे. उन्होंने भारी उत्साह के साथ इस खबर का स्वागत किया लेकिन समय बीतने के साथ उनका मोह अब इस नेता से भंग हो गया है. सिन्हा ने बताया, ‘‘यह अविश्वसनीय था और लालू के सत्ता में आने से देशभर में एक जोश पैदा हो गया था. यह लोकतंत्र का जादू था और सामाजिक सशक्तिकरण की ओर बढने की शुरुआत थी। मुख्यमंत्री के रुप में लालू का पहला कार्यकाल अच्छा था.’ सिन्हा यह बात मानते हैं कि लालू कुछ हद तक ‘‘सशक्तिकरण की भावना’ लेकर आए लेकिन उन्होंने आरोप लगाया कि ‘‘लालू ने एक राजनेता बनने का बडा अवसर गंवा दिया और इसकी बजाय वह किसी अन्य साधारण नेता की तरह होकर रह गए.’ जेपी की ‘संपूर्ण क्रांति’ से उभर कर आए लोगों में से एक रहे लालू के राजनीतिक सफर की शुरुआत जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाले छात्र आंदोलन से हुई, जो कि अंतत: पूरे देश में फैल गया था। इस देशव्यापी आंदोलन का नतीजा इंदिरा गांधी की सरकार गिर जाने के रुप में सामने आया था.

बोलने के अपने एक अलग अंदाज के कारण अक्सर प्रेस द्वारा बिहार के इस पूर्व मुख्यमंत्री को निशाना बनाया जाता रहा है. कितने ही टीवी शो प्रस्तोता उनके बोलने के अंदाज की नकल उतारते हुए नजर आते हैं. अरुण ने कहा, ‘‘बिहार के अंदर और बाहर कई लोग उनके बारे में जो कुछ भी सोचते हों, मुझे नहीं लगता कि लालू के तौर-तरीके किसी भी तरह से बिहार की छवि खराब करते हैं.’ उन्होंने कहा, ‘‘लालू छात्र राजनीति के दिनों में भी बोलने के दौरान अपने विशेष देहाती अंदाज का इस्तेमाल करते थे. धीरे-धीरे उनका यह अंदाज उनकी खासियत बन गया.’ अरुण ने कहा, ‘‘वह उस तरह से बोलते हंै क्योंकि वह अपने निर्वाचनक्षेत्र के लोगों से बात कर रहे होते हैं. वे वंचित, गंवई और ठेठ तबके से बात कर रहे होते हैं. एक ऐसा वंचित समुदाय, जो कि उनमें अपना नेता देखता है.’ वर्ष 1948 में उत्तरी बिहार के फुलवरिया में जन्मे लालू वर्ष 1954 में पटना आ गए थे. उन्होंने वर्ष 1966 में पटना विश्वविद्यालय के तहत आने वाले बी एन कॉलेज में दाखिला लिया और इस दौरान वह छात्र राजनीति से भी जुड गए. 1967-69 तक वह पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ :पीयूएसयू: के महासचिव थे.

गुडगांव में कार्यरत आईटी पेशेवर राम कुमार ने कहा, ‘‘लालू निचली जाति के लोगों तक सामाजिक सशक्तिकरण लेकर आए। वह हाशिए पर जीने वालों और निचले तबकों की आवाज बनकर उभरे. इस बात को कम करके नहीं देखा जा सकता।’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं मुजफ्फरपुर के एक गांव से आता हूं और उंची जाति का हूं. मेरे बचपन के दिनों में, मैं देखा करता था कि निचली जाति के लोग जमीन पर और उंची जाति के लोग कुर्सियों पर बैठा करते थे। लालू जब मुख्यमंत्री बनकर आए तो यह चीज गायब होना शुरु हो गई। अब आप गांव जाते हैं तो यह बदलाव आपको दिखाई देता है.’ उन्होंने कहा, ‘‘लालू का कद बढने को उंची जाति के कई लोग एक खतरे के रुप में देखते थे क्योंकि वह उनकी जाति से नहीं आते थे. इससे समाज में टकराव पैदा हुआ और वह कुछ हद तक अभी भी मौजूद है.’ किशनगंज :1996:, सीवान :1997:, सासाराम :1998: और दरभंगा :2001-2003: में जिला मजिस्ट्रेट के रुप में कार्यरत रहे पटना निवासी राम बहादुर प्रसाद ने कहा, ‘‘1990 के दशक में विकास की कमी का दोष सिर्फ लालू को देना गलत होगा। केंद्र से पर्याप्त धन ही नहीं मिल रहा था.’

Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel