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मर रहा बच्चा, बाप जात बचा रहा
चुनाव के मौके पर जिस विकास की बात सभी राजनीतिक दल कर रहे हैं, उसमें बच्चों को कुपोषण से मुक्त करने के मुद्दे की कोई जगह है या भी नहीं? मुजफ्फरपुर के हरपुर गांव में मांडियों का टोला इस आंकड़े को पुष्ट करता है कि बिहार में दस में से आठ बच्चे कुपोषित हैं. फिलहाल […]
चुनाव के मौके पर जिस विकास की बात सभी राजनीतिक दल कर रहे हैं, उसमें बच्चों को कुपोषण से मुक्त करने के मुद्दे की कोई जगह है या भी नहीं? मुजफ्फरपुर के हरपुर गांव में मांडियों का टोला इस आंकड़े को पुष्ट करता है कि बिहार में दस में से आठ बच्चे कुपोषित हैं.
फिलहाल चुनावी शोर में इस मुद्दे की तो कोई जगह नहीं दिख रही. यहां कोई नेता नहीं पहुंचा. और तो और खुद पीड़ितों के लिए भी यह कोई चुनावी मुद्दा नहीं है, उन्हें जात की पड़ी है. हरपुर गांव से पुष्यमित्र की रिपोर्ट.
हम उस गांव खाद्य सुरक्षा की मौजूदा हालात को समझने गये थे. पिछले दिनों पटना में आयोजित एक कार्यक्र म में गांव की पंच द्रौपदी देवी ने बताया था कि इस गांव में 400 से अधिक मांझी परिवार रहते हैं, मगर उनमें से अधिकतर लोगों को अभी तक उजला वाला राशन कार्ड (खाद्य सुरक्षा) नहीं मिला है. वे लोग काफी गरीब हैं और राशन कार्ड नहीं मिलने की वजह से उनको बहुत दिक्कत होती है. मगर जब हम उस गांव पहुंचे तो हमें रिपोर्ट का विषय बदलना पड़ा.
वह हरपुर गांव था. मुजफ्फरपुर जिले के मोतीपुर प्रखंड का. मांङिायों की बस्ती में घुसते ही एक खुला अहाता नजर आया, जहां औरतें काम कर रही थीं और नंग-धड़ंग बच्चों का हुजूम था. कुछ बच्चे खा रहे थे, कुछ खेलने में जुटे थे. मैंने जब उनकी तसवीर लेनी चाही तो बड़े बच्चे शर्मा कर भागने लगे और छोटे भयभीत होकर रोने लगे.
देखने से ही लग रहा था, ज्यादातर बच्चे कुपोषित हैं. इनमें से कई तो अतिकुपोषित हैं. हमारे साथ चल रही वार्ड सदस्य द्रौपदी देवी ने कहा कि पिछले साल वह 17 अतिकुपोषित बच्चों को लेकर सरैया स्थित एनआरसी सेंटर(पोषण पुनर्वास केंद्र) गयी थीं. वहां बच्चों और माताओं को 21 दिन रख कर उनका सघन इलाज किया जाता है.
17 बच्चे यहां अतिकुपोषित हैं? मेरे सवाल पर द्रौपदी देवी चौंक गयी. बोलीं, 17 ही ठो थोड़े है. हर घर में है. 400 परिवार का इ टोला है, आप जिस घर में जाइयेगा आपको कुपोषित बच्चा मिलेगा. 500 से कम बच्चा यहां थोड़े है. सब गरीब-गुरबा है, खाने का इंतजाम नहीं है. आंगनबाड़ी में 40 बच्चों का एडमिशन हो सकता है. बांकी बच्चा कहां जाये. और आंगनबाड़ी में भी पोषाहार दो महीना से बंद है.
इस बीच द्रौपदी देवी ने एक नयी सूचना दी कि किशोरियों को बंटने वाला आयरन टेबलेट भी एक सवा साल से बंटना बंद है. दवा घोटाले की शोरगुल में सरकारी दवा की खरीद ही पूरे राज्य में ठप है. मुङो वे आंकड़े याद आ गये, जिसके मुताबिक बिहार में 80 फीसदी से अधिक महिलाएं एनीमिक हैं.
मैंने महिलाओं से पूछा, चुनाव प्रचार के लिए जब नेता लोग आते हैं तो उनसे यह सब बातें नहीं करते. इस पर महिलाओं ने कहा, अभी तक एक भी नेता यहां नहीं आया. तो..? तो क्या जब सब लोग जाते देख रहा है तो हमलोगों को भी तो अपना जात पकड़ना पड़ेगा न. यानी, किशोरी ब्याहताओं और अति कुपोषित बच्चों की इस बस्ती में और कुछ हो न हो लोगों की अपनी जात जरूर है.
जात का स्वाभिमान भी है. द्रौपदी देवी ने बताया, पिछले दिनों इस गांव के एक चरवाहे की हत्या हो गयी थी तो यह खबर उड़ी थी कि जीतनराम मांझी आयेंगे. वे तब बिहार के सीएम थे. हालांकि वे आये नहीं.
यह गांव बरुराज विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है. यहां पिछले चुनाव में ब्रजकिशोर सिंह राजद से जीते थे, मगर वे इस बार चुनाव से बाहर ैहैं. राजद ने नंद कुमार राय को उतारा है, जबकि भाजपा ने अरुण कुमार सिंह को.
422 घर की इस बस्ती में हर जगह एक जैसा माहौल था. खदखदाते बच्चे, काम करती औरतें और बीड़ी पीते बूढ़े. जवान लोग कहां गये? पंजाब. कमाने गये हैं. क्या करें, पहले भात का इंतजाम होगा, तब न भोट डालेंगे.
असवारी हुई है, देवी आयी है
सात साल का अनुल मांझी अपने दादा के साथ मकई का सत्तू खा रहा था. बिल्कुल नंगे बदन बैठा था. दादा ने कहा, असवारी हुई है, देवी आई है. तीन दिन से बोखार है. द्रौपदी देवी ने कहा, चेचक.
टोले में आधे दर्जन से अधिक बच्चों को चेचक हुआ है. राम प्रवेश मांझी के बेटे की तो मौत भी हो गयी है. इलाज नहीं कराते? अस्पताल नहीं ले जाते? अनुल मांझी के पिता डांगर मांझी ने कहा, पैसा नहीं है बाबू. डागदर बहुत पैसा मांगता है. सरकारी अस्पताल में डॉगडर मिलता कहां है.. ?
वोट डालेंगे? हां, बाबू. नेताजी आयेंगे तो कुछ मांगेंगे.. ? ‘हां बाबू, मांगेंगे काहे नहीं, हमरे गांव तक आने के लिए रोड नहीं है. रोड यहां का सबसे बड़ा मुद्दा है.’ चेचक के फंदे में फंसे अनुल मांझी के पिता के मुंह से सड़क की मांग सुन कर आप सहज ही समझ सकते हैं कि हमारा लोकतंत्र कहां जा रहा है.
खड़ा नहीं हो पाता सात साल का किशन मांझी
कांति (एक 40-45 साल की महिला) गोद में सात-आठ साल के अपने पोते को लिए आकर खड़ी हो गयीं. शायद उन्हें किसी ने बताया था कि राशन कार्ड का पता लगाने लोग आये हैं. मेरी निगाह उनकी गोद में टंगे सात-आठ साल के लड़के पर थी. क्या नाम है? किशन मांझी.
क्या हुआ इसको? खड़ा नहीं हो पाता है. काहे? कमजोर है.. अतिकुपोषित है. पीछे से द्रौपदी देवी ने कहा. हम कहे कि इसको एनआरसी सेंटर में भरती करवा दो, मगर इ लोग माने तब न. पिछले साल इ टोला से 17 ठो अतिकुपोषित बच्चा को एनआरसी सेंटर में भरती करवाये थे. सब की माय दस दिन, बारह दिन में भाग के आ गयी.
मां मर गयी, पिता बाहर, 14 वर्ष की चमेली संभाल रही घर
यह शायद सवा साल का बच्चा है. जब हम वहां पहुंचे तो देखा उसके नाक से पानी बह रहा था और वह सामने थाली में रखे मूढ़ी को खा रहा था. पेट उगा हुआ था और बांहें काफी पतली थीं. वह मुङो देख कर रोने लगा था. एक महिला ने बताया, बाबू एकर माय मर गयी है. कब? पिछलका साल अगहने में. कैसे और इसको कौन देखता है? बड़ बहिन हय..
जब यह बातचीत चल ही रही थी, तभी पीछे से एक 13-14 साल की लड़की आकर खड़ी हो गयी और उसने अपने भाई को उठा लिया. उस बच्ची के माथे पर सिंदूर लगा हुआ था. यह लड़की कितने साल की है? 18-20 के होइहैं बाबू.. वहां की महिलाएं उस बच्ची की उम्र छुपाने में जुट गयीं.
उन्हें शायद बाल विवाह कानून के बारे में थोड़ी जानकारी होगी. मगर तभी द्रौपदी देवी ने डपट कर पूछा.. 18-20 के होइ हैं.. तो लड़की ने खुद कह दिया कि वह 13-14 साल की है. फिर महिलाओं ने उस परिवार की कहानी सुनानी शुरू कर दी.
पांचवे बच्चे को जन्म देने के बाद इसकी मां मीना देवी जो खुद बमुश्किल 35 साल की होगी पिछले साल गुजर गयी. खून की कमी थी. मां ने अपनी मौत से पहले 13 साल की चमेली की शादी करवा दी. चमेली के पिता और उसका पति इन दिनों कमाने के लिए पंजाब गये हुए हैं.
वह यहां अपने चार छोटे भाई बहनों की देख-रेख अकेले करती है. मुङो इस उमर की उन लड़कियों की याद आ गयी, जो साइकिल से फर्राटे भरते हुए स्कूल जाती हैं. यहां चमेली के लिए स्कूल जाना असंभव है. उसे तो अपनी नयी गृहस्थी को जमाना है और साथ ही अपने छोटे भाई बहनों की भी देखभाल करनी है. क्या उसकी कहानी अपनी मां मीना देवी जैसी ही होगी या उससे भी अधिक ..
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