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सोशल मीडिया पर सक्रिय हुए नेताजी

पटना : सोशल मीडिया पर सक्रिय रहकर राजनीतिक दल लगा रहे हैं चुनाव आयोग को चूना. जी हां…ये सत्य है. हाल के दिनों में हाईटेक हुए चुनाव प्रचार की प्रणाली ने सभी राजनीतिक दलों को प्रभावित किया है. लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिली सफलता के बाद लगभग सभी पार्टियों ने सोशल मीडिया पर अपनी […]

पटना : सोशल मीडिया पर सक्रिय रहकर राजनीतिक दल लगा रहे हैं चुनाव आयोग को चूना. जी हां…ये सत्य है. हाल के दिनों में हाईटेक हुए चुनाव प्रचार की प्रणाली ने सभी राजनीतिक दलों को प्रभावित किया है. लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिली सफलता के बाद लगभग सभी पार्टियों ने सोशल मीडिया पर अपनी सक्रियता दिखानी शुरू कर दी है.बिहार में महागठबंधन के दल हों या एनडीए के सभी इन दिनों सोशल मीडिया के जरिए अपने प्रचार को परवान पर ले जा रहे हैं.

कई पार्टियों ने बकायदा सोशल मीडिया वार रूम तक बनाया है. जहां से युवा पीढ़ी और एंड्रावयड फोन से लैस लोगों को लुभाने का सिलसिला जारी है. लेकिन सवाल यह भी है कि क्या चुनाव आयोग इन पार्टियों के वेबसाइट और फेसबुक पेजों की मॉनेटरिंग कर रहा है या नहीं. क्योंकि आदर्श आचार संहिता निष्पक्ष चुनाव का एक बड़ा हथियार साबित होता है. इसी संहिता की वजह से राजनीतिक दल चाहकर भी मतदाताओं को भरमा नहीं सकते हैं.
आदर्श आचार संहिता में ये स्पष्ट तौर पर दर्ज है कि कोई भी दल ऐसा कोई कार्य नहीं कर सकता जिससे दो समुदायों के बीच मतभेद हो. साथ ही किसी राजनीतिक पार्टी और प्रत्याशी पर निजी हमले नहीं करने होंगे. वोट पाने के लिए जाति या धर्म आधारित अपील नहीं की जा सकती. किसी भी धार्मिक स्थल को चुनाव प्रचार करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. लाउडस्पीकर या दूसरे यंत्र या किसी सामान के इस्तेमाल के लिए इजाज़त लेनी होगी.
आदर्श आचार संहित के हिसाब से देखा जाए तो सभी राजनीतिक दल जो सोशल मीडिया पर सक्रिए हैं वो संहिता का खुलेआम उल्लंघन कर रहे हैं. भाजपा और उसके नेताओं नंद किशोर यादव,सुशील कुमार मोदी,मंगल पांडेय और सैयद् शहनवाज हुसैन के फेसबुक एकाउंट को ध्यान से देंखे तो वो खुलेआम आदर्श आचार संहित का उल्लंघन है. वहीं कई पार्टियों ने फेक आईडी से एकाउंट बनाकर मतदाताओं को एक दूसरे के खिलाफ करने में लगी हैं. इस श्रेणी में बिहार की सभी पार्टियां शामिल हैं. कानून के जानकारों की माने तो सोशल मीडिया की मॉनेटरिंग भी जरूरी है. सोशल मीडिया की ताकत को नेताओं ने जाना है और वे जमकर इसका इस्तेमाल करते हैं.
सोशल मीडिया के माध्यम से नेता अपना व्यक्तिगत छवि चमकाने के साथ-साथ एक दूसरे को नीचा दिखाने में भी लगे हुए हैं. फेसबुक पर आपत्तिजनक पोस्ट के अलावा एक दूसरे को फेक आईडी से बनाए गए कमेंट के जरिए हमला हो रहा है. साथ ही सत्ताधारी पार्टियां अपने खर्च किए गए पैसे और इलाके में अपने किए गए विकास की बातों को इसके माध्यम से प्रचारित कर रही हैं.

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