पटना: पटना हाइकोर्ट ने तेली और तमोली (चौरसिया) जातियों को अति पिछड़ा वर्ग में शामिल किये जाने के राज्य सरकार के फैसले पर नाराजगी जाहिर की है. मुख्य न्यायाधीश एल नरसिम्हा रेड्डी और न्यायाधीश अंजना मिश्र के खंडपीठ ने शुक्रवार को इस आदेश के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई करते हुए राज्य पिछड़ा आयोग को […]
पटना: पटना हाइकोर्ट ने तेली और तमोली (चौरसिया) जातियों को अति पिछड़ा वर्ग में शामिल किये जाने के राज्य सरकार के फैसले पर नाराजगी जाहिर की है. मुख्य न्यायाधीश एल नरसिम्हा रेड्डी और न्यायाधीश अंजना मिश्र के खंडपीठ ने शुक्रवार को इस आदेश के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई करते हुए राज्य पिछड़ा आयोग को नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने तीन अगस्त को आयोग के अधिकारियों को कोर्ट में उपस्थित होकर तेली और तमोली जातियों को अति पिछड़ी जातियों की सूची में शामिल करने के तर्क बताने को कहा है.
राज्य सरकार ने इस वर्ष अप्रैल में तेली और तमोली जातियों को अत्यंत पिछड़ा वर्ग में शामिल होने का नीतिगत फैसला लिया था. इसके लिए राज्य पिछड़ा आयोग ने सरकार को सिफारिश भेजी, जिसमें तर्क दिया गया कि तेली जाति को अशुभ माना जाता है. इस नाम से सांप को भी चिह्न्ति किया जाता है. इसलिए इनके उत्थान के लिए दोनों जातियों को अत्यंत पिछड़ी जातियों की सूची में रखा जाना चाहिए. आयोग की अनुशंसा को आधार मान कर सरकार ने 24 अप्रैल, 2015 को इस संबंध में अधिसूचना जारी की.
सामाजिक कार्यकर्ता किशोरी दास की लोकहित याचिका की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता को समाचार पत्रों में सूचना जारी करने का आदेश दिया. इस सूचना में तेली और तमोली जातियों के प्रतिनिधियों को कोर्ट में तीन अगस्त को उपस्थित होकर अपना पक्ष रखने की अपील की गयी है. खंडपीठ ने कहा कि वह किसी भी निर्णय पर पहुंचने के पहले दोनों जातियों के प्रतिनिधियों का पक्ष जानना चाहते हैं.
याचिकाकर्ता के वकील वसंत कुमार चौधरी ने कोर्ट से कहा कि राजनीतिक लाभ के लिए सरकार ने तेली और तमोली जातियों की 50 लाख की आबादी को अत्यंत पिछड़ी जातियों की श्रेणी में शामिल किया है, जबकि वास्तविक स्थिति यह है कि ये जातियां पिछड़े वर्ग की सूची में शामिल जातियों से भी संपन्न हैं. वकील ने कहा कि दो साल पहले जब तेली और तमोली जातियों के प्रतिनिधियों ने आवेदन देकर उन्हें अत्यंत पिछड़ी जातियों की सूची में रखने का निवेदन किया था, तो राज्य पिछड़ा आयोग ने इसे खारिज कर दिया था.
उस समय आयोग का तर्क था कि तेली और तमोली जातियों के लोग साधन संपन्न हैं और ये पिछड़ी जातियों की सूची में सबसे ऊपर हैं. याचिकाकर्ता के वकील वसंत कुमार चौधरी ने कोर्ट से कहा कि अचानक दो साल में क्या परिवर्तन हो गया कि आयोग ने इसे अत्यंत पिछड़ी जातियों की सूची में शामिल करने की सिफारिश कर दी. वकील ने कहा कि सरकार के इस फैसले से छोटी-छोटी अत्यंत पिछड़ी जातियों की हकमारी होगी और आरक्षण का पूरा फायदा तेली और तमोली जातियों तक सिमट जायेगा. याचिका में कहा गया है कि पिछड़ी जातियों की श्रेणी में शामिल एक खास जाति को लाभ पहुंचाने के लिए पिछड़ी जातियों की सूची कम की जा रही है. याचिका में 1950 और 1978 में तैयार पिछड़ी जाति और अत्यंत पिछड़ी जातियों की श्रेणी का हवाला दिया गया है. दोनों ही वर्ष तेली और तमोली जातियों को पिछड़ी जातियों की सूची में रखा गया है.
क्या है मामला
तेली और तमोली जातियां अब तक राज्य सरकार की पिछड़ी जातियों की सूची में शामिल रही हैं. इस वर्ष अप्रैल में राज्य सरकार ने पिछड़ी जातियों की श्रेणी में क्रमांक 13 पर रही तेली जाति को वहां से हटा कर अत्यंत पिछड़ी जातियों की सूची में क्रमांक 126 पर रखने का निर्णय लिया. इसी प्रकार पिछड़ी जातियों की सूची में क्रमांक 12 पर रहे तमोली जाति को वहां से हटा कर अत्यंत पिछड़ी जातियों की सूची में क्रमांक 125 पर रखने का निर्णय लिया गया. राज्य में पिछड़ी जातियों को सरकारी नौकरियों में 12}, जबकि अत्यंत पिछड़ी जातियों को 18 } आरक्षण का लाभ मिलता है.