पटना: 16 मई को एक साल पूरा हो जायेगा, पर बिहार की जनता ने जिन 40 सांसदों को चुन कर लोकसभा में भेजा, उनमें 25 सांसदों ने सांसद विकास राशि को खर्च करने की जहमत नहीं उठायी. प्रतिवर्ष मिलनेवाले पांच करोड़ रुपये की सांसद विकास निधि को खर्च नहीं करनेवाले सांसदों में सबसे ज्यादा भाजपा के 15 सांसद हैं. सहयोगी दल लोजपा और रालोसपा के सांसदों की संख्या शामिल कर लेने पर ऐसे सांसदों की संख्या 21 पहुंच जा रही है.
पैसे खर्च नहीं करनेवाले सांसदों में राजद के दो और जदयू के भी एक सांसद का नाम है. विकास मद के पैसे खर्च करनेवालों में रामविलास पासवान और पप्पू यादव दूसरों पर भारी पड़ते हैं. आधे से ज्यादा सांसदों ने तो पैसे खर्च ही नहीं किये, दिल्ली और महानगरों की चकाचौंध छोड़ इलाके की जनता का हाल-चाल जानने में भी कोताही बरती. कई सांसद तो साल भर में महज 20 से 25 दिन ही वोट देनेवाली जनता के लिए निकाल पाये. हालांकि, पाटलिपुत्र के सांसद रामकृपाल यादव, नालंदा के कौशलेंद्र कुमार ने साफगोई से कहा कि हम संसद का सत्र छोड़ बाकी समय अपने इलाके में ही गुजारते हैं.
पप्पू यादव ने दो महीने राज्य के दौरे पर और एक महीना 12 दिन संसद के सत्र में बीतने की बात कही है. सांसद विकास निधि की राशि खर्च नहीं करनेवालों में केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव भी हैं. श्री यादव के ओएसडी रणधीर यादव ने कहा कि विधायकों के लिए प्रतिवर्ष दो करोड़ रुपये जारी होते हैं, जबकि सांसद के क्षेत्र में छह विस का क्षेत्र हे. ऐसे में एक-दो साल के पैसे जमा हो जाये, तो सभी क्षेत्रों में खर्च करने में मुश्किलें कम आयेंगी.
वित्तीय वर्ष समाप्त होने पर सांसद विकास कोष के पैसे लैप्स नहीं करते हैं. सरकार ने सांसद कोष के पैसे के खर्च के लिए योजना एवं विकास विभाग को नोडल विभाग बनाया है. विभाग के 30 अप्रैल, 2015 तक प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक, केंद्रीय मंत्री राधामोहन सिंह, राजीव प्रताप रूडी, राजकुमार सिंह आदि सांसदों ने भी अपने विकास मद के पैसे से किसी विकास कार्य की अनुशंसा नहीं की. सासंदों ने वैसी योजनाओं की भी अनुशंसा की है, जो उसके मानक पर फिट नहीं बैठते. लिहाजा योजनाओं की अनुसंशा करनेवाले सांसदों की अधिकतर योजनाएं मंजूर ही नहीं हो पायी.