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केंद्र ने बिहार को आठ हजार करोड़ कम दिये

पटना : अप्रैल से नया वित्तीय वर्ष 2015-16 शुरू हो गया है, लेकिन बीते वित्तीय वर्ष 2014-15 में केंद्र से टैक्स शेयर में राज्य को करीब 5400 करोड़ रुपये कम मिले हैं. इसमें केंद्रीय प्रायोजित योजना (सीएसएस), बीआरजीएफ और केंद्रीय प्लान स्कीम (सीपीएस) समेत अन्य मदों में हुई कटौती को जोड़ दिया जाये, तो यह […]

पटना : अप्रैल से नया वित्तीय वर्ष 2015-16 शुरू हो गया है, लेकिन बीते वित्तीय वर्ष 2014-15 में केंद्र से टैक्स शेयर में राज्य को करीब 5400 करोड़ रुपये कम मिले हैं. इसमें केंद्रीय प्रायोजित योजना (सीएसएस), बीआरजीएफ और केंद्रीय प्लान स्कीम (सीपीएस) समेत अन्य मदों में हुई कटौती को जोड़ दिया जाये, तो यह राशि बढ़ कर करीब आठ हजार करोड़ तक पहुंच जायेगी. हालांकि, सीएसएस, सीपीएस समेत अन्य में कटौती का सही मूल्यांकन वित्त विभाग अभी कर रहा है.
अप्रैल के मध्य तक यह आंकड़ा स्पष्ट होगा. वित्तीय वर्ष 2014-15 के दौरान राज्य को केंद्रीय टैक्स में 42 हजार 443 करोड़ रुपये मिलने थे, लेकिन मिले मात्र 36 हजार 963 करोड़. बाद में केंद्र ने बिहार को टैक्स की हिस्सेदारी को संशोधित कर 38 हजार करोड़ कर दिया था.
लेकिन, इस कटौती के कारण ही अंतिम दिन राज्य के खजाने पर बोझ बढ़ गया था. इसके अलावा राज्य के आंतरिक टैक्स स्नेतों से भी निर्धारित लक्ष्य के अनुसार संग्रह नहीं हो पाया. 2014-15 में 25 हजार 662 रुपये आंतरिक टैक्स स्नेतों से कलेक्शन का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन करीब 20 हजार करोड़ ही संग्रह हो पाये. इसमें करीब 5600 करोड़ का शॉर्ट फॉल आया है. इसका प्रमुख कारण वाणिज्यकर, निबंधन और उत्पाद विभागों में निर्धारित लक्ष्य के मुताबिक कलेक्शन नहीं होना है. वाणिज्यकर में 400 करोड़ और उत्पाद एवं निबंधन में पांच हजार करोड़ का शॉर्ट फॉल होने की संभावना है.
राजकोषीय घाटा रोकने के लिए निकासी पर लगी रोक
वित्तीय वर्ष 2014-15 के अंतिम दिन राज्य का राजकोषीय घाटा नियंत्रित करने के लिए वित्त विभाग ने मंगलवार दोपहर के बाद से तमाम तरह की निकासी पर रोक लगा दी थी.
फिसकल रिस्पॉसब्लिटी एंड बजट मैनेजमेंट (एफआरबीएम ) एक्ट के अनुसार, किसी राज्य का राजकोषीय घाटा तीन प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए. इसके मद्देनजर वित्त विभाग ने खजाने से रुपये की निकासी पर यह रोक लगायी थी. वित्तीय वर्ष के अंतिम दिन सुबह से ही सभी विभागों के बीच ट्रेजरी से योजना मद में ज्यादा से ज्यादा राशि निकालने की होड़ मची थी. दोपहर बाद से एसबीआइ का सर्वर करीब चार घंटे पूरी तरह ठप रहने के कारण राजस्व संग्रह में काफी परेशानी हो रही थी.
खजाना में उस रफ्तार से पैसा जमा नहीं हो रहा था, जितनी तेजी से निकल रहा था. केंद्र से अंतिम दिन 1400 करोड़ आये, लेकिन ये मांग के अनुरूप नाकाफी थे. मंगलवार की दोपहर तक ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गयी कि खजाने में महज 600 करोड़ ही बचे थे. इसके बाद निकासी पर पूरी तरह से रोक लगा दी गयी. देर शाम को सर्वर जैसे ही ठीक हुआ, कलेक्शन बढ़ा और खजाने में 3350 करोड़ रुपये जमा हो गये. बाद में 400 करोड़ की निकासी हुई, जिसके बाद खजाना में 2900 करोड़ रुपये रह गये. इस तरह वित्तीय वर्ष समाप्त होने पर राजकोषीय घाटा तीन प्रतिशत तक आकर रुक गया.
कुछ विभागों के बड़े प्रस्ताव लौटे
राजकोषीय घाटा को निर्धारित मानक से ज्यादा नहीं होने देने और खजाने की सेहत दुरुस्त बनाये रखने के लिए वित्त विभाग ने सख्ती दिखाते हुए तमाम विभागों के योजना मद में कई योजनाओं के लिए जो रुपये मांगे थे, उसके भुगतान पर रोक लगा दी. वित्त विभाग ने इनकी फाइलों में यह लिख कर लौटा दिया कि अगले वित्तीय वर्ष में निकासी का प्रस्ताव लेकर आये, तब निकासी होगी. जिन बड़े विभागों का प्रस्ताव लौटाया गया, उसमें ऊर्जा का 900 करोड़, एससी-एसटी का 150 करोड़, चतुर्थ राज्य वित्त आयोग का 100 करोड़ रुपये निकालने के अलावा गन्ना उद्योग, राजस्व एवं भूमि सुधार, समाज कल्याण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, वाणिज्यकर समेत अन्य विभागों के प्रस्ताव प्रमुख हैं.
योजना मद में खर्च हुए 46 हजार करोड़
वित्तीय वर्ष 2014-15 में राज्य का योजना आकार पुर्नीक्षित करके करीब 50 हजार करोड़ कर किया गया था. इस योजना आकार में सभी विभागों ने लगभग 46 हजार करोड़ रुपये ही खर्च किया है. खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण, आइटी, श्रम संसाधन, पशुपालन एवं मत्स्य संसाधन, पंचायती राज, राजस्व एवं भूमि सुधार, गन्ना उद्योग समेत अन्य विभाग अपने कुल योजना आकार की 50 प्रतिशत के आसपास ही राशि खर्च कर पाये हैं. योजना के क्रियान्वयन में इन विभागों का प्रदर्शन संतोषजनक ही रहा है.
केंद्र से पांच तक आयेगी पहली किस्त
बिहार को नये वित्तीय वर्ष 2015-16 में केंद्र से टैक्स हिस्सेदारी के तहत 50 हजार करोड़ मिलना निर्धारित किया गया है. इसकी पहली किस्त 3 हजार 624 करोड़ के पांच अप्रैल तक आने की संभावना है. शेष रुपये 13 किस्तों में मिलेंगे. इस बार सीएसएस, सीपीएस और बीआरजीएफ में मिलनेवाली हिस्सेदारी को बंद करते हुए टैक्स शेयर में ही जोड़ दिया गया है. अब टैक्स शेयर में मिलनेवाली इसी निर्धारित हिस्सेदारी में राज्य को प्रबंधन करना होगा.
Prabhat Khabar Digital Desk
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