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जल बना जंजाल : पिछले 9 दिनों से कालापानी की सजा भुगत रहे लोगों की सामने आ रही है वेदना

पटना : एनडीआरएफ की बोट पर जब हम राजेंद्र नगर रोड नंबर दो में गये तो यहां डॉ एसएन सिन्हा का परिवार हमें मिल गया. डॉ सिन्हा का परिवार रोड नंबर दो के पार्क के ठीक पीछे वाले घर के ग्राउंड फ्लोर पर रहता था. शुक्रवार की रात में जब भारी बारिश के बाद पानी […]

पटना : एनडीआरएफ की बोट पर जब हम राजेंद्र नगर रोड नंबर दो में गये तो यहां डॉ एसएन सिन्हा का परिवार हमें मिल गया. डॉ सिन्हा का परिवार रोड नंबर दो के पार्क के ठीक पीछे वाले घर के ग्राउंड फ्लोर पर रहता था. शुक्रवार की रात में जब भारी बारिश के बाद पानी भर गया तो परिवार अपने भाई के घर में तीसरे तल्ले पर शिफ्ट हो गया. आठ दिनों से यह परिवार इसी उम्मीद में यहां टिका हुआ है कि पानी आज निकल जायेगा, कल निकल जायेगा. मिसेज सिन्हा ने बताया कि दो बेटियां हैं, बेटे हैं और माता पिता. कैसे और किस प्रकार जायें? यही कारण है कि उम्मीद बनी हुई है.

हृदय रोग से जूझ रहे बुजुर्ग को ले जाया गया अस्पताल
और शोभा समैयार (84 वर्ष) की भी कहानी दर्दनाक है. राजेंद्र नगर रोड नंबर सिक्स-ए में स्थित उनके घर में बहू बच्चे के साथ थी, लेकिन बेटे सभी बाहर रहते हैं. जब पानी घिर आया तो बहू दोनों को निकालने में पूरी तरह नाकाम थीं. इसी बीच किसी ने एनडीअारएफ को सूचना दी तो बाहर निकले, शनिवार को दिल्ली स्थित एक अस्पताल में इन्हें भर्ती कराने के लिए ले जाया गया है.
रिटायर्ड आइएएस के लिए भी एनडीआरएफ बना सहारा
रिटायर्ड आइएएस केके त्रिपाठी भी जब बीमारी की स्थित में अपने राजेंद्र नगर रोड नंबर 13 बी स्थित घर में आठ दिनों तक फंसे रहे. एनस में ब्लीडिंग के प्रॉब्लम से जूझ रहे त्रिपाठी जी के बारे में सूचना मिली कि उनकी हालत खराब है तो एनडीअारएफ ने उन्हें ट्रैक्टर से रेस्क्यू किया और इलाज के लिए भर्ती कराने में मदद की.
किताबें बर्बाद हो जाने की चिंता
राजेंद्र नगर के ही रोड नंबर 10 में रहनेवाले इंद्रकांत झा पुरानी किताबों के संग्रह के शौकीन हैं, लेकिन बारिश ने इनका सारा संग्रह खराब कर दिया. अभी उन्होंने इन्कम टैक्स के पास एक होटल में शरण ले रखा है. बताया कि घर के सामान से ज्यादा किताबों के बर्बाद हो जाने की चिंता है. 600 से ज्यादा हमारे पास किताबें थी. तीन पांडुलिपियां भी थी लेकिन बरसात के पानी ने सब बर्बाद कर दिया. घर के सामान तो खरीदे जा सकते हैं लेकिन पुरानी किताबें दोबारा नहीं मिल सकती हैं.
104 डिग्री बुखार, खून की उल्टियां भी हो रही थीं, पर बच गये बहादुर
सात दिनों तक कुछ खाया नहीं, 104 डिग्री बुखार. खून की उल्टियां भी हो रही थी. जिस अर्धनिर्मित मकान में बहादुर रहते थे, उसके चारों ओर सात-आठ फुट पानी के कारण उनके लिए जल समाधि बनने वाली थी. लेकिन एक स्वयंसेवी संगठन के प्रयास और स्थानीय पुलिस की मदद से बहादुर को बचा लिया गया. दो दिनों तक राज ट्रामा हाॅस्पिटल के आइसीयू में भर्ती रहने के बाद शनिवार को बाहर निकले बहादुर ने बताया कि उन्होंने तो बचने की उम्मीद ही छोड़ दी थी.
नेपाल से आकर पटना के नेपाली नगर में छह वर्षाें से चौकीदारी कर जीवनयापन करने वाले बहादुर ने बताया कि उनका पटना में कोई संबंधी नहीं है जो उनकी खोज खबर लेने आता और न ही किसी का मोबाइल नंबर उनके पास था जो मदद को बुलाते. जिस अर्धनिर्मित मकान में वो रहते हैं उसके चारों ओर खेत होने के कारण बारिश शुरू होने के चौबीस घंटे के भीतर ही पांच-छह फुट तक पानी भर गया जो लगातार बढ़ता ही जा रहा था. हर दिन कमाने और हर दिन खाने के कारण उनके पास राशन भी नहीं जमा था. पानी में भींगने से बुखार हो गया जो बढ़ता ही गया.
बहादुर को निकालने में अहम भूमिका निभाने वाले स्वयंसेवी संगठन ग्रेटर पटना रोटरी के सदस्य विशाल सिंह ने कहा कि स्थानीय लोगों के द्वारा दो-तीन दिनों से बताया जा रहा था कि बहादुर को बाहर निकालना मुश्किल है. पानी का स्तर थोड़ा कम होने के बाद तीन अक्तूबर को वे और उनके साथी कृष्णा सिंह, राजवीर कुमार, विवेक विश्वास और अनमोल सिंह दीघा थानाध्यक्ष निशांत कुमार के द्वारा उपलब्ध कराये गये ट्रैक्टर से नेपाली नगर के उस अर्धनिर्मित मकान में पहुंचे, जहां बहादुर थे और उनको रेसक्यू किया.
राज ट्रॉमा अस्पताल के डॉ विजय राज ने बताया कि जब वे अस्पताल में आये तो उनको 104 डिग्री बुखार था, हृदय की धड़कन बहुत तेज थी, लगातार भूखे रहने से बीपी बहुत नीचे चला गया था और लीवर में इंफेक्शन के चलते खून की उल्टियां भी हो रही थी. ऐसे में हमें खुशी है कि दो दिनों तक आइसीयू में रखने के बाद हम उन्हें बचाने में सफल रहे.
सुनली पानी उपछे ल विदेश से मशीन लइलके हे सरकार
सुनली राजिंद्र नगर से पानी उपछे ल सरकार विदेश से मशीन लइलके हे. एकर बाद हम यहां चल अइली जलजमाव देखे ला. भोरे आठ बजे चलली हल, भागलपुर इंटरसिटी पकड़ली और यहां पहुंच के कमर भर पानी में हेल के देख अइली कि केतना पानी निकलल हे! बख्तियारपुर के शाहपुर के रहनेवाले रामवृक्ष सिंह यादव हमें राजेंद्र नगर पुल पर मुरेठा बांधे हुए मिल गये. पेट तक पानी में भींगे हुए लगभग 65 साल के रामवृक्ष यादव राजेंद्र नगर में दो घंटे तक घूमने के बाद हमसे कहा कि हम पहले भी 1975 के बाढ़ में पटना का हाल देखे थे.
आज फिर से आये हैं कि हमने सुना कि देश और विदेश से पानी निकालने के लिए मशीन आयी है. लेकिन यहां राजेंद्र नगर में तो बहुते पानी है. अब तो आठ दिन बीत गया है. इतने वक्त तक तो उस बाढ़ में भी पानी शहर में नहीं ठहरा हुआ था. कहा कि इसी मुहल्ले में डॉ मनीष से पुराना परिचय है तो इनसे मिलने के लिए चले आये हैं. उन्होंने हमें ब्रेड भी दिया है जिसे बांध कर ले जा रहे हैं.
Prabhat Khabar Digital Desk
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