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बिहार में फर्जी प्रमाण-पत्र के आधार पर नियुक्त शिक्षकों के मामले में रिपोर्ट तलब

पटना: बिहार में फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर नियुक्त शिक्षकों पर गाज गिरनी तय है. पटना हाइकोर्ट ने फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर विभिन्न विद्यालयों में नियुक्त शिक्षकों की खबर ली है. कोर्ट ने राज्य सरकार और निगरानी विभाग को छह सप्ताह में यह बताने के लिए कहा है कि जिन शिक्षकों के खिलाफ […]

पटना: बिहार में फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर नियुक्त शिक्षकों पर गाज गिरनी तय है. पटना हाइकोर्ट ने फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर विभिन्न विद्यालयों में नियुक्त शिक्षकों की खबर ली है. कोर्ट ने राज्य सरकार और निगरानी विभाग को छह सप्ताह में यह बताने के लिए कहा है कि जिन शिक्षकों के खिलाफ फर्जी प्रमाण पत्र को लेकर प्राथमिकी दर्ज हुई थी उनके खिलाफ अब तक क्या कार्रवाई हुई है.

कोर्टने निगरानी विभाग को यह भी बताने को कहा है कि अभी तक ऐसे कितने शिक्षक पकड़े गये हैं और उन पर किस प्रकार की कार्रवाई की गयी है. निगरानी के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग को लेकर दायर एक याचिका पर पटना हाइकोर्ट के न्यायाधीश शिवाजी पांडेय एवं न्यायाधीश पार्थ सारथी की दो सदस्यीय खंडपीठ ने सोमवार को सुनवाई की.

याचिकाकर्ता का आरोप है कि विजिलेंस एवं शिक्षा विभाग के बड़े अधिकारियों की मिली भगत से ही फर्जी शिक्षक अभी तक गलत तरीके से वेतन एवं अन्य प्रकार की सुविधाएं ले रहे हैं. रणजीत पंडित की याचिका पर बहस करते हुए अधिवक्ता दीनू कुमार ने कहा कि प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च विद्यालयों में शिक्षकों की ज्यादा नियुक्ति हुई थी. 2006 से 2015 के बीच करीब 3 लाख 62 हजार नियुक्त किये गये थे.

हाइकोर्ट में इन शिक्षकों के प्रमाण पत्र की वैधता को लेकर एक लोकहित याचिका दायर की गयी थी. जिसमें यह साफ हो गया था कि बड़ी संख्या में फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर शिक्षक नियुक्त हो गये हैं. हाइकोर्ट ने 2015 में ही इस मामले की सुनवाई करते हुए इन शिक्षकों को कहा था कि जो शिक्षक 15 दिन के अंदर स्वतः नौकरी छोड़ देते हैं उन पर न तो प्राथमिकी दर्ज होगी और न तो वेतन के रूप में लिए गये राशि की वसूली ही उनसे होगी. इस आदेश के बाद तीन हजार शिक्षकों ने स्वतः नौकरी छोड़ दी थी.

याचिकाकर्ता की ओर से अदालत से कहा कि 25 फरवरी 2019 को सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी मांगी गयी थी कि अभी तक ऐसे कितने फर्जी शिक्षक कार्यरत हैं. याचिकाकर्ता का अनुमान है कि अवैध तरीके से नियुक्त शिक्षकों द्वारा करीब एक हजार करोड़ रुपये का चूना सरकार को लगाया गया है. जिन अधिकारियों के कार्यकाल में इस प्रकार की धोखाधड़ी हुई है, उनसे भी राशि की वसूली होनी चाहिए.

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