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दूसरी शादी से जन्मे बच्चे की अनुकंपा पर नियुक्ति वैध नहीं

पटना : पटना हाइकोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा कि किसी भी सरकारी कर्मी को पहली पत्नी के रहते हुए दूसरी शादी कर लेने के बाद उससे पैदा हुए पुत्र की अगर अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की जाती है तो वह गैर कानूनी नहीं है. अनुकंपा के आधार पर की […]

पटना : पटना हाइकोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा कि किसी भी सरकारी कर्मी को पहली पत्नी के रहते हुए दूसरी शादी कर लेने के बाद उससे पैदा हुए पुत्र की अगर अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की जाती है तो वह गैर कानूनी नहीं है.

अनुकंपा के आधार पर की गयी इस नियुक्ति को कोई भी कानून रोक नहीं सकता है, बशर्ते उस कर्मी (मृत) को अवैध तरीके से की गयी दूसरी शादी करने के लिए विभागीय कार्रवाई के तहत कोई सजा न मिली हो. न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार सिंह, न्यायमूर्ति वीरेंद्र कुमार और न्यायमूर्ति डॉ अनिल कुमार उपाध्याय की पूर्ण पीठ ने बिहार सरकार व अन्य की तरफ से दायर कई अपीलों को निष्पादित करते हुए यह फैसला दिया.

कोर्ट ने इस मामले को लेकर कार्मिक विभाग से 23 जून, 2005 को निर्गत किये गये परिपत्र के उस अंश को गैर कानूनी घोषित किया है, जिसके तहत अवैध रूप से दूसरी शादी करने वाले सरकारी कर्मी के दूसरी बीवी के बच्चे की अनुकंपा के आधार पर की जाने वाली नियुक्ति पर रोक लग गयी थी. हाइकोर्ट की पूर्ण पीठ ने यह फैसला केंद्र सरकार बनाम वीआर त्रिपाठी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये फैसले के आलोक में सुनाया है .

सुप्रीम कोर्ट ने उक्त फैसले में यह कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत दो विवाह के अवैध होने के बावजूद दूसरी शादी से पैदा हुआ संतान वैध है. ऐसी अवस्था में दो शादी करने वाले सरकारी कर्मी के दूसरी पत्नी के पुत्र की भी अगर अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिये विचार किया जाता है तो फिर वैध या अवैध शादी से उत्पन्न हुए संतानों के बीच भेदभाव करना संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ है.

कोर्ट ने यह फैसला बिहार राज्य विद्युत बोर्ड (अब बिजली कंपनी ) के एक लाइनमैन कर्मी की दूसरी बीवी के बेटे की अनुकंपा पर नियुक्ति किये जाने को लेकर दायर की गयी याचिका पर दिया है. विद्युत बोर्ड ने कार्मिक विभाग द्वारा वर्ष 2005 में जारी किये गये उपरोक्त परिपत्र के आलोक में आवेदक चंद्रशेखर पासवान की अनुकंपा के आधार पर की जाने वाली नियुक्ति से इन्कार कर दिया था.

मामला जब हाइकोर्ट में आया तो एकलपीठ ने कार्मिक विभाग द्वारा 2005 में जारी किये गये इस परिपत्र को निरस्त कर दिया था. बोर्ड ने एकलपीठ के इसी आदेश को अपील दायर कर खंडपीठ में चुनौती दी थी. इस तरह की नियुक्ति को लेकर समय-समय पर दिये गये विरोधी फैसलों के आलोक में इस मामले को तीन जजों की फुल बेंच में भेजा दिया गया था. फुल बेंच ने एकलपीठ के फैसले में आंशिक संशोधन करते हुए यह फैसला दिया. हाइकोर्ट के इस फैसले के बाद इस मामले में अब तक पास हुए हाइकोर्ट के पूर्व के सभी फैसलों में जो भी विरोधाभास था, वह सब खत्म हो जायेगा .

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