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पटना : 2008 में बनी जलापूर्ति योजना 10 साल बाद भी नहीं हो सकी पूरी

चुनाव आया तो धूल झाड़ कर फिर निकाली 10 साल पुरानी पेयजल योजना पटना : निगम क्षेत्र का दिन-प्रतिदिन विस्तार हो रहा है. शहर विस्तार होने के साथ-साथ पेयजल संकट की समस्या भी गहराती जा रही है. इस समस्या के स्थायी समाधान को लेकर वर्ष 2008 में ही भारत सरकार की नुरूम योजना के तहत […]

चुनाव आया तो धूल झाड़ कर फिर निकाली 10 साल पुरानी पेयजल योजना
पटना : निगम क्षेत्र का दिन-प्रतिदिन विस्तार हो रहा है. शहर विस्तार होने के साथ-साथ पेयजल संकट की समस्या भी गहराती जा रही है. इस समस्या के स्थायी समाधान को लेकर वर्ष 2008 में ही भारत सरकार की नुरूम योजना के तहत 420 करोड़ की लागत से पटना जलापूर्ति योजना बनायी गयी. लेकिन, योजना नगर आवास विकास विभाग, नगर निगम व बुडको के बीच उलझी रही. स्थिति यह है कि राजनीतिक इच्छा शक्ति व प्रशासनिक अनदेखी की वजह से 10 वर्षों के बाद भी जलापूर्ति योजना को धरातल पर उतारा नहीं जा सका है. इसके बावजूद पेयजल संकट चुनावी मुद्दा नहीं बन रहा है.
वर्ष 2012 में विभागीय निर्देश पर पटना जलापूर्ति योजना को पूरा करने की जिम्मेदारी बुडको को दी गयी. बुडको प्रशासन ने 537 करोड़ की लागत से 24 घंटे व सातों दिन निर्बाध पानी सप्लाइ की योजना बनायी.
इस योजना को पूरा करने के लिए निजी एजेंसी चयनित की गयी. चयनित एजेंसी ने योजना पर काम शुरू किया और वर्ष 2014 में पूरा करने की समय-सीमा निर्धारित की गयी. लेकिन, अगस्त 2014 तक एजेंसी ने 100 करोड़ रुपये खर्च कर सिर्फ 18 वार्डों में आधी-अधूरी जल मीनारें बनायीं और 33 किलोमीटर जलापूर्ति पाइप बिछा सकी. कार्य संतोषजनक नहीं होने पर एजेंसी को टर्मिनेट कर दिया गया. इसके बाद योजना विभाग व बुडको की फाइल में दबी रह गयी.
हजार करोड़ से अधिक हो गया है योजना आकार
वर्ष 2012 में 537 करोड़ था योजना का आकार. जलापूर्ति योजना के तहत आधे पटना को गंगाजल व आधे पटना को ग्राउंड वाटर सप्लाइ करना था. गंगा के पानी को प्यूरिफिकेशन करने को लेकर दीघा में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाना था. लेकिन, एजेंसी टर्मिनेट होने के बाद योजना फाइलों में दबी रह गयी.
योजना फिर फाइल से निकाली गयी है. इसमें 128 करोड़ की लागत से निगम प्रशासन 13 वार्डों में आधी-अधूरी बनी जलमीनारों व सप्लाइ नेटवर्क पर काम कर रहा है और पांच वार्डों में बुडको की ओर से जलमीनारों को दुरुस्त किया जा रहा है व सप्लाइ नेटवर्क तैयार किया जा रहा है. इसके साथ ही निगम प्रशासन ने शेष 57 वार्डों को नये तरीके से डीपीआर बनाने की जिम्मेदारी दी है.

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