डॉ आरके नीरद
हिंदी के बड़े साहित्यकारों ने भी राजनीतिक दलों के लिए चुनावी नारे लिखे. इनमें एक नाम श्रीकांत वर्मा का भी है. ‘जात पर न पात पर, इंदिराजी की बात पर’- यह कांग्रेस के लिए चर्चित नारा श्रीकांत वर्मा का ही लिखा हुआ है.
गांधी परिवार के दूसरे नेताओं के लिए नारे लिखे जाते रहे हैं. संजय गांधी और राजीव गांधी के अलावा प्रियंका गांधी के लिए भी नारे लिखे गये. अमेठी में कांग्रेस की स्टार प्रचारक के तौर पर जब प्रियंका गांधी पहली बार प्रचार करने पहुंचीं थी, तब यही नारा लगा था- अमेठी का डंका, बेटी प्रियंका.
भाजपा और दूसरे दलों के लिए भी साहित्यिक पृष्ठभूमि के लोगों ने नारे लिखे. अटल बिहारी वाजपेयी को पीएम के रूप में भाजपा ने जब आम चुनाव में प्रस्तुत किया था, तब उसके दो नारे खूब गूंजा थे- ‘अबकी बारी, अटल बिहारी’ और ‘अटल आडवाणी कमल निशान-मांग रहा है हिंदुस्तान’.
जब केंद्र में भाजपा की सरकार आयी, तब उसने अगले चुनाव में एक और नारा दिया-‘कहो दिल से, अटल फिर से’. यह इतना लोकप्रिय हुआ कि उसके बाद भी यह नारा अलग-अलग नेताओं और दलों के नाम के साथ जोड़ कर खूब गूंजा.
हालांकि, उसके एक नारे की चमक बेहद फीकी रही, वह थी ‘ इंडिया शाइंनिंग’. इस नारे का हिंदी में अनुवाद था ‘भारत उदय’, मगर इस नारे की बदौलत भाजपा उसके सहयोगी दलों की सत्ता में वापसी नहीं हो सकी. बाद के सालों में भी, बल्कि आज भी चुनावी नारों के मनोवैज्ञानिक और सामाजिक विश्लेषणक इस नारे और उससे जुड़े संदेश की बोधगम्यता को लेकर प्रश्न उठाते हैं. बहरहाल, भाजपा ने 1980 से अब तक कई प्रभावी नारे दिये हैं.
फिल्म स्लम डॉग का गाना जब बना था नारा
फिल्म स्लमडॉग के एक गाने का बोल था- ‘जय हो’. भाजपा ने उसकी पैरोडी करते हुए फिर भी ‘जय हो’ और ‘भय हो’ जैसे चुनावी नारे गढ़े थे. इसी तरह एक और गाना चुनावी नारे के तौर पर खूब चमका, वह भी ‘महंगाई डायन खाय जात है’.
बिहार में चुनावी नारों की खूब रही चमक
बिहार में 1990 के दशक में जातिवादी नारों का दौर रहा. हालांकि ऐसे नारों की आयु बहुत अधिक नहीं रही. अलबत्ता, जदयू ने नीतीश कुमार को केंद्र में रख कर विकास और परिवर्तन के संदेशों-संकल्पों को जब नारा बनाया, तो उसका व्यापक असर भी दिखा. ‘बोल रहा है टीवी अखबार, सबसे आगे नीतीश कुमार’, ‘बढ़ता बिहार, नीतीश कुमार’, ‘पांच साल बनाम 55 साल’ और ‘बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है’ ने खूब चुनावी असर छोड़ा.
