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चुनावी चौपाल : आतंकवाद के साथ प्रदूषण और कैंसर भी बने चुनाव का मुद्दा

चुनावी चौपाल का कारवां रविवार को फुलवारी शरीफ के करोड़ीचक स्थित अरोमा प्लाजा अपार्टमेंट में पहुंचा. डेढ़ माह से कुछ दिन अधिक समय चुनाव में रह जाने के बाद यहां भी चुनावी चर्चा जोरों पर थी. प्रभात खबर की टीम ने इन चुनावी चौपालों में लोगों की बात सुनी. इसमें एक बात कॉमन निकल कर […]

चुनावी चौपाल का कारवां रविवार को फुलवारी शरीफ के करोड़ीचक स्थित अरोमा प्लाजा अपार्टमेंट में पहुंचा. डेढ़ माह से कुछ दिन अधिक समय चुनाव में रह जाने के बाद यहां भी चुनावी चर्चा जोरों पर थी. प्रभात खबर की टीम ने इन चुनावी चौपालों में लोगों की बात सुनी.

इसमें एक बात कॉमन निकल कर आयी. सबको इस बात का दर्द था कि राजधानी से इतना पास रहते हुए भी, इस इलाके में अब तक विकास नहीं पहुंचा है. सांसद न जाने कितने समय से सड़क, नाला, शिक्षा व स्वास्थ्य की सुविधा पहुंचाने की बात कर रहे हैं, जो आज पर पूरा नहीं हुआ.
वहीं कुछ लोगों का मत ये भी था कि चुनाव के दौरान उनको सांसद चुनने के लिए ऐसा विकल्प मिलता है कि हर बार बात नहीं बन पाती. इस बार लोग यह भी कह रहे थे कि नोटबंदी, आतंकवाद पर कार्रवाई तो ठीक है, लेकिन प्रदूषण और कैंसर जैसी बीमारी भी मुद्दा बने.
सुबह साढ़े आठ बजे का समय. करोड़ीचक के अरोमा प्लाजा अपार्टमेंट का स्थान. सुबह जब प्रभात खबर की टीम वहां पहुंची तो अपार्टमेंट के पार्किंग वाले जगह में 25 से अधिक लोगों की चौपाल लग चुकी थी. रविवार का दिन होने के कारण पूरी फुर्सत से चाय के साथ चर्चा का माहौल गर्म था.
बैंक में काम करने वाले वी प्रसाद अपनी बात कह रहे थे, देखिए भाई, चुनाव में मुद्दा चाहे जो बने, लेकिन आने वाली सरकार को इस मुद्दे पर जरूर काम करना चाहिए कि हर परिवार में कम से कम एक व्यक्ति को रोजगार जरूर मिले.
बात को आगे बढ़ाते हुए एक बार किसी पार्टी से एमपी का चुनाव लड़ने वाले प्रभुनाथ सिंह ने कहा कि पहले तो हम सभी को इस बात को तय करना चाहिए कि आखिर विकास का मॉडल क्या हो, गैर जरूरी मुद्दों को हवा देने की जरूरत नहीं, बात जन समूह के विकास की होनी चाहिए. वहीं के ओमप्रकाश अपनी बातों को सामने रखते हुए कहा कि भूमि अधिग्रहण के मसलों को भर तेजी से निबटाना होगा.
चाहे जिसकी सरकार बने हर परिवार में कम से कम एक व्यक्ति को वह रोजगार जरूर दे
विकास का मॉडल तय करना होगा और जन समूह के विकास की बात होनी चाहिए.
दस फीसदी आरक्षण देने से किसी का फायदा नहीं हुआ. जीएसटी लागू कर जरूरी वस्तुओं की कीमत बढ़ गयी. शहर साफ नहीं हुआ. सरकार शिक्षा देने में भी असफल रही है. इस बार सांसद के चुनाव में ध्यान देना होगा.
– रामप्रवेश पासवान, खोजा इमली
बिहारियों को दूसरे राज्य में खराब दृष्टि से देखा जाता है. इस पर यहां के सांसदों को ध्यान देने की जरूरत है. देश को विकसित होने में समय लग रहा है. मेक इन इंडिया और अन्य सरकारी बड़ी योजनाओं का जमीनी असर नहीं हुआ. भले ही कुछ विकास हुआ, लेकिन अभी बहुत काम बाकी है.
– संगीता, कामकाजी महिला
आजादी के इतने वर्ष के बाद भी रोटी,कपड़ा और मकान की जरूरतों को पूरा नहीं किया जा सका है. स्थानीय सांसद अपने क्षेत्र की मुद्दों को संसद में उठा नहीं पाते, उनको लगता है कि पीएम नाराज हो जायेंगे,तो मंत्री पद चला जायेगा. हमें ऐसे सांसद की जरूरत है,जो हमारी बात को संसद में उठाते हुए नजर आये.
– प्रफुल्ल चंद्रा, सामाजिक कार्यकर्ता
मुझे कुर्सी कैसे मिले, फिर कुर्सी कैसे बचे इस बात पर ही पूरा ध्यान नेताओं का रहता है. अगर कोई बाहरी प्रत्याशी आकर चुनाव लड़ता है तो आखिर उसको कैसे स्थानीय समस्या का ज्ञान होगा. चुनाव से पहले उम्मीवारों के बीच संवाद होना चाहिए, ताकि आम लोगों को पता चले कि आखिर बेहतर कौन है.
– महेश कुमार पोद्दार, खगड़िया
नोटबंदी से गरीबों को परेशानी हुई, कालाधन नहीं आया. यहां के सांसद रामकृपाल ने पांच साल में वादा किया था कि पीने का पानी व सड़क हर घर तक पहुंचा देंगे. आज स्थिति नहीं सुधरी. यहां से पांच किमी की दूरी में कोई बड़ा शिक्षण संस्थान नहीं है.
– दिनेश पाल, करोड़ी चक निवासी

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