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पटना :अब सात प्रतिशत से अधिक फीस नहीं बढ़ा पायेंगे प्राइवेट स्कूल, कसा शिकंजा

विधानमंडल से बिहार निजी विद्यालय शुल्क विनियमन विधेयक, 2019 पास पटना : विधानमंडल से सोमवार को बिहार निजी विद्यालय शुल्क विनियमन विधेयक-2019 सर्वसम्मति से पारित हो गया. इससे फीस समेत अन्य तमाम बातों में प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर नकेल लगायी जा सकेगी. विधानसभा में इस विधेयक को पेश करते हुए शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन वर्मा […]

विधानमंडल से बिहार निजी विद्यालय शुल्क विनियमन विधेयक, 2019 पास
पटना : विधानमंडल से सोमवार को बिहार निजी विद्यालय शुल्क विनियमन विधेयक-2019 सर्वसम्मति से पारित हो गया. इससे फीस समेत अन्य तमाम बातों में प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर नकेल लगायी जा सकेगी.
विधानसभा में इस विधेयक को पेश करते हुए शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन वर्मा ने कहा कि निजी स्कूलों की फीस में बड़े स्तर पर बढ़ोतरी और मनमानी की शिकायतें मिल रही थीं. जनभावना का ध्यान रखते हुए यह कदम उठाया गया है. सरकार प्राइवेट स्कूलों के साथ किसी तरह का टकराव नहीं चाहती है.
ये मुख्य प्रावधान किये गये लागू
इस विधेयक में पिछले शैक्षणिक वर्ष से फीस में सात प्रतिशत से अधिक बढ़ोतरी प्राइवेट स्कूल नहीं कर सकते हैं. इसमें प्रवेश शुल्क, पुनर्नामांकन, विकास, मासिक, वार्षिक, पुस्तक, पाठ्यसामग्री, पोशाक, आवागमन समेत अन्य तरह की फीस शामिल है. इससे अधिक बढ़ोतरी का कोई मामला शुल्क विनियमन समिति से समीक्षा के बाद ही लागू होगा. स्कूल को क्लासवार पुस्तकों की सूची, ड्रेस के प्रकार और अन्य अपेक्षित सामग्री की सूची स्कूल की वेबसाइट और सूचनापट्ट पर जारी करनी होगी.
स्कूल की तरफ से निर्धारित दुकान या किसी स्थान से इनकी खरीद करना अनिवार्य नहीं होगा. इसका उल्लंघन करने वाले स्कूलों पर जुर्माना और अन्य तरह के दंड लगाये जायेंगे. पहली बार गलती करने वाले स्कूलों को एक लाख का जुर्माना लगाया जायेगा. इसके बाद प्रत्येक अपराध के लिए दो लाख रुपये देने होंगे. निर्धारित जुर्माना एक महीने में जमा नहीं करने या बार-बार नियमों का पालन नहीं करने पर स्कूल की मान्यता रद्द करने का अनुमोदन किया जायेगा.
शिकायत पर समिति को 60 दिनों में सुनवाई करनी होगी
सभी बातों की मॉनीटरिंग के लिए ‘शुल्क विनियमन समिति’ का गठन किया गया है. इसके अध्यक्ष प्रमंडलीय आयुक्त होंगे और क्षेत्रीय शिक्षा उपनिदेशक सदस्य सचिव के अलावा प्रमंडलीय मुख्यालय के जिला शिक्षा पदाधिकारी, जिलों के निजी विद्यालयों से दो प्रतिनिधि (आयुक्त से नामित) और दो अभिभावक प्रतिनिधि (आयुक्त की तरफ से नामित) सदस्य होंगे.
स्कूलों से संबंधित किसी शिकायत का निबटारा और जांच का अधिकार इस समिति को होगा. समिति किसी दोषी व्यक्ति को समन कर बुला सकती है. दस्तावेज जांच और किसी मामले में भौतिक सत्यापन या पूछताछ कर सकती है. इस समिति को कोई अभिभावक शिकायत करता है, तो 60 दिनों में सुनवाई करनी होगी.
विवि में शिक्षकों की नियुक्ति में 200 प्वाइंट आरक्षण व 2021 में जातिगत जनगणना करने का प्रस्ताव पास
क्या है 200 प्वाइंट रोस्टर
विधानमंडल के दोनों सदनों में सोमवार को विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षक नियुक्ति में 200 प्वाइंट आरक्षण की पुरानी व्यवस्था लागू करने का प्रस्ताव पास किया. संसदीय कार्य मंत्री श्रवण कुमार ने दोनों सदनों में इसे पेश किया, जिसे सर्वसम्मत से पारित कर दिया.
दोनों ही सदनों में 2021 में होने वाली जनगणना में जाति आधारित जनगणना कराये जाने संबंधी प्रस्ताव भी पेश किया गया, जिसे सदन ने ध्वनिमत से पारित कर दिया गया. दोनों ही प्रस्तावों को केंद्र के समक्ष भेजा जायेगा.
पहले विश्वविद्यालयों व कॉलेजों में 200 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम के अनुसार नियुक्ति होती थी. इसमें विवि व कॉलेजों एक यूनिट माना जाता था.
इसके तहत 49.50% सीटें एससी-एसटी व ओबीसी के लिए आरक्षित रहती थीं, जबकि शेष सीटें सामान्य वर्ग के लिए होती थीं. अगर किसी विभाग में चार पदों के लिए वैकेंसी निकली, तो इनमें दो सीटें अनारक्षित और दो आरक्षित होती थीं.
लेकिन नये 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम में विवि की जगह विभाग/विषय को यूनिट माना जायेगा. इसके अनुसार अगर किसी विवि के किसी विभाग में वैकेंसी आती है, तो चौथा, आठवां और 12वां कैंडिडेट ओबीसी होगा.
मतलब कि एक ओबीसी कैंडिडेट विभाग में आने के लिए कम-से-कम चार वैकेंसी होनी चाहिए. सातवां कैंडिडेट एससी कैटेगरी का होगा. मतलब कि एक एससी कैंडिडेट विभाग में आने के लिए कम-से-कम सात वैकेंसी होनी ही चाहिए. 14वां कैंडिडेट एसटी होगा. मतलब कि एक एसटी कैंडिडेट को कम-से-कम 14 वैकेंसी का इंतजार करना ही होगा़ बाकी 1,2,3,5,6,9,10,11,13 पोजिशन अनारक्षित पद होंगे.
मालूम हो कि 2017 में इलाहाबाद हाइकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि विवि में शिक्षकों की नियुक्ति विभाग/सब्जेक्ट को यूनिट मानना होगा, न कि विवि के हिसाब से. साथ ही 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम लागू हुआ. इसके खिलाफ यूजीसी और मानव संसाधन मंत्रालय ने याचिका दायर की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 22 जनवरी, 2019 को खारिज कर दिया.

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