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बिना पैसे नहीं लगाया ऑक्सीजन तो हुई मौत, पति ने लड़ी लड़ाई, मिले नौ लाख

औरंगाबाद के अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र माली का मामला अनुज शर्मा पटना : नौ लाख रुपये. मुआवजे की इस रकम से संध्या की जिंदगी नहीं लौटेगी. पति-परिवार का दुख भी कम नहीं होगा. हां, जिंदगी की गाड़ी खींचने में थोड़ी राहत मिलेगी. मुआवजा देते समय सरकार की स्वास्थ्य केंद्रों पर नजर भी जायेगी. भ्रष्टाचार व […]

औरंगाबाद के अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र माली का मामला
अनुज शर्मा
पटना : नौ लाख रुपये. मुआवजे की इस रकम से संध्या की जिंदगी नहीं लौटेगी. पति-परिवार का दुख भी कम नहीं होगा. हां, जिंदगी की गाड़ी खींचने में थोड़ी राहत मिलेगी.
मुआवजा देते समय सरकार की स्वास्थ्य केंद्रों पर नजर भी जायेगी. भ्रष्टाचार व इलाज में लापरवाही के कारण संध्या की हुई मौत पर बिहार मानवाधिकार आयोग के कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस मांधाता सिंह का फैसला नजीर है. औरंगाबाद जिले के अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, माली से जुड़े इस मामले ने सरकारी अस्पतालों की डरावनी तस्वीर सामने ला दी है. यहां के कंपाउंडर आॅक्सीजन तक नहीं लगा पाते. बीपी की मशीन भी तालों में बंद रहती है.
जान पर बन आने पर भी डाॅक्टर नहीं आते हैं. औरंगाबाद के नवीनगर प्रखंड के माली गांव निवासीश्रीकांत लाल दो जनवरी, 2016 को प्रसव पीड़ा होने पर पत्नी संध्या (उम्र 20 वर्ष) को रात आठ बजे अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, माली ले गया था. वहां एएनएम कमला देवी व संध्या कुमारी ने चेकअप किया. रात 10:55 बजे उसे बताया कि बेटा हुआ है. रक्तस्राव अधिक है, जच्चा को टांका लगाना होगा. पत्नी की तबियत बिगड़ने पर श्रीकांत ने बड़े डॉक्टर को बुलाने की गुहार लगायी.
लेकिन चिकित्सा कर्मियों ने दया नहीं दिखायी. संध्या का ब्लड प्रेशर इसलिए नहीं नापा, क्योंकि बीपी मशीन और ऑक्सीजन स्वास्थ्य केंद्र प्रभारी प्रदीप गुप्ता ताले में रख गये थे. पति रामवृक्ष प्रसाद मेमोरियल अस्पताल से आॅक्सीजन खरीद लाया, लेकिन डॉक्टर नहीं आये. कंपाउडर का कहना था कि उसे आॅक्सीजन लगाना नहीं आता.
एएनएम ने ऑक्सीजन लगाने के पैसे मांगे. इसमें इतना समय बीत गया कि संध्या की नब्ज धीमी पड़ गयी. बॉडी ग्लूकोज ड्रिप तक नहीं ले रही थी. श्रीकांत पत्नी को लेकर सदर अस्पताल, औरंगाबाद पहुंचा, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया. संध्या की शादी 21 फरवरी, 2015 को हुई थी.
श्रीकांत ने जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के यहां शिकायत की. स्वास्थ्य विभाग ने दोनों नर्सों की सेवाएं समाप्त कर मामले को दबा दिया. कहीं न्याय नहीं मिलाताे 23 मार्च, 2016 को बिहार मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज करायी. आयोग ने सभी पक्षों को तलब किया. 20 नवंबर, 2018 को पहली सुनवाई हुई. 26 दिसंबर को आयोग ने फैसला दिया कि इलाज में लापरवाही के कारण महिला की मौत हुई है.
प्रधान सचिव गृह, प्रधान सचिव स्वास्थ्य, डीएम और सिविल सर्जन औरंगाबाद को आदेश दिया है कि दो माह के अंदर श्रीकांत को नौ लाख रुपये का मुआवजा दिया जाये. जस्टिस मांधाता सिंह ने 28 फरवरी को अपने आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट जमा करने के भी आदेश दिया है.
मानवाधिकार आयोग ने दिया मुआवजा देने का िनर्देश
िनजी अस्पताल से पति ऑक्सीजन लेकर आया पर कंपाउंडर को नहीं आता था आॅक्सीजन लगाना
पति ने काफी अनुरोध किया, फिर भी नहीं आये डाॅक्टर
नर्स ने ऑक्सीजन लगाने के लिए पैसे मांगे

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