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राहुल गांधी ने विचार-व्यवहार-रणनीति में खींची नरेंद्र मोदी से लंबी लकीर, ऐसे आयेंगे बिहार कांग्रेस के भी अच्‍छे दिन

…पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों ने राहुल गांधी की छवि को बदल दिया है. उनके खिलाफ दुष्प्रचार करने वाली ब्रांडिंग एजेंसियों के कैंपेन धरे के धरे रह गये. वे अब सीधे प्रधानमंत्री के मुकाबले में आ गये हैं. वे लोगों को यह संदेश देने में सफल रहे हैं कि कांग्रेस की सरकार जनता […]

…पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों ने राहुल गांधी की छवि को बदल दिया है. उनके खिलाफ दुष्प्रचार करने वाली ब्रांडिंग एजेंसियों के कैंपेन धरे के धरे रह गये. वे अब सीधे प्रधानमंत्री के मुकाबले में आ गये हैं. वे लोगों को यह संदेश देने में सफल रहे हैं कि कांग्रेस की सरकार जनता की सरकार पहले होगी, कांग्रेस की बाद में. अब उनके नेतृत्व पर सवाल करना आसान नहीं होगा. एएन सिन्हा इंस्टीट्यूटआॅफ सोशल स्टडीज पटना के निदेशक रहे समाजशास्त्री प्रो डीएम दिवाकर का कहना है कि…
आचार-विचार और लोक व्यवहार में राहुल गांधी नरेंद्र मोदी से लंबी लकीर खींचने में सफल रहे हैं. नरेंद्र मोदी की वैचारिक पृष्ठभूमि आरएसएस व मानसिकता हिंदू राष्ट्रवाद की है. भारत बहुसंस्कृति का देश है. इसमें अल्पसंख्यक और धर्मनिरपेक्ष लोग मोदी से कटे हुए हैं.
शांतिप्रिय लोग भी छिटक रहे हैं. राहुल सभी के साथ चलने की कोशिश कर रहे हैं. आज भाजपा का मतलब नरेंद्र मोदी हैं, वहीं राहुल गांधी खुद को पार्टी से बड़ा नहीं मानते. वह चाहते तो सीधे राष्ट्रीय अध्यक्ष हो जाते लेकिन ऐसा नहीं किया. मोदी अच्छे प्रचारक हैं. कुछ समय के लिए वे लोगों को भावनात्मक रूप से प्रभावित कर लेते हैं, लेकिन भारतीय समाज में व्यंग्य की एक सीमा के बाद कोई स्थान नहीं है.
मोदी अपने व्यंग्य, भाव-भंगिमा से भाजपा के प्रचारक की भूमिका में ही बंधे हैं. लोकतंत्र को मजबूत रखने के लिए विरोध जरूरी है. मोदी विरोध स्वीकार नहीं करते हैं. वह देश के प्रधानमंत्री की बजाय एक पार्टी के प्रधानमंत्री वाला आचरण अधिक करते हैं. सपने दिखाते हैं, उनको पूरा नहीं करते. देशभर के किसान दिल्ली में जुटते हैं लेकिन एक बयान तक नहीं देते. मंदसौर में किसानों पर गोली चलने पर भी चुप रहते हैं. राहुल गांधी इसके विपरीत हैं. अहंकार व्यक्त नहीं करते. विरोधी को खुलकर विरोध का मौका देते हैं.
हमेशा सीखने की कोशिश करते हैं. लोगों की नजर में वह बेहतर दिख रहे हैं. किसानों और युवाओं की बात करते हैं, उनकी आवाज बनकर उनके बीच जा रहे हैं. भारत में जिसने भी किसान अौर युवा की उपस्थिति को नजरंदाज किया है, वह सत्ता में नहीं रह पाया है. नरेंद्र मोदी पहली बार लोकसभा पहुंचे तो लोकसभा के आगे माथा टेककर संदेश दिया कि वह संवैधानिक संस्थाओं का बहुत सम्मान करते हैं, जबकि सच इसके विपरीत है. देश में पहली बार इतिहास का व्यक्ति आरबीआई का गवर्नर बना है. सीबीआई, सुप्रीम कोर्ट आदि के विवाद भी इसी सरकार में सामने आये हैं. सेंट्रल फॉर द स्टडी आॅफ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स कानपुर के निदेशकडॉ एके वर्मा का कहना है कि …
लोग राहुल गांधी को विदूषक के रूप में देखने लगे थे. अब उस पर विराम लग जायेगा. सभी उनको गंभीरता से लेने लगेंगे. बहुत सारी चीजों का उनको क्रेडिट नहीं दिया जा रहा है. प्रधानमंत्री से उनकी तुलना करते हुए डॉ वर्मा कहते हैं कि राहुल युवा हैं, अभी सीख रहे हैं. भावी प्रधानमंत्री के रूप में खुद को साबित करने के लिए तो गंभीर उत्तर देने की जरूरत है. नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत छवि परिपक्व है. वह खुद को काम के प्रति प्रतिबद्ध साबित करते हैं. इस चुनाव से उनकी इमेज प्रभावित नहीं होगी.
भाजपा युक्त भारत के बयान से हर जगह राहुल गांधी की चर्चा
राहुल गांधी ने चुनाव नतीजों के बाद मीडिया से जो कहा
उसकी हर जगह चर्चा है. गांधीवादी विचारक रजी अहमद का कहना है कि राहुल गांधी का यह कहना कि वह भाजपा मुक्त भारत नहीं चाहते, भाजपा की विचारधारा का विरोध करेंगे यह बहुत बड़ी बात है. वह लोकतंत्र के प्रति सम्मान और सभी को साध चलने, विरोधियों के लिए दरवाजे खुले रखने वाली सोच को दिखाता है. भाजपा के मुख्यमंत्रियों के काम की प्रशंसा कर राहुल गांधी ने दरियादिली दिखायी है.कांग्रेस की 10 साल सरकार रही राहुल गांधी ने कभी इसका दुरुपयोग नहीं किया. उन पर व्यक्तिगत कोई आरोप नहीं है.
राहुल गांधी ने ऐसे खींची मोदी से लंबी लकीर : चुनाव और रणनीति की बात करें तो राहुल प्रधानमंत्री से अधिक सक्रिय रहे. एमपी और राजस्थान में नरेंद्र मोदी से अधिक सभाएं कीं. दोनों राज्य भाजपा-आरएसएस का गढ़ रहे हैं. राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद के चुनाव नतीजों को देखें तो वह सफल रणनीतिकार साबित हुए हैं.
…मध्यप्रदेश,राजस्थान,छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों में किया गया प्रयोग
वीवीपैट के कारण विलंब से आया परिणाम
राजनीतिक दलों द्वारा ईवीएम को लेकर जतायी जा रही आशंकाओं को दूर करने के लिए भारत निर्वाचन आयोग ने चेक बैलेंस के लिए वीवीपैट प्रणाली अपनायी है. इससे अब चुनाव परिणाम विलंब से आयेंगे.
वीवीपैट के कारण ही मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान सहित अन्य राज्यों में चुनाव परिणाम आने में विलंब हुआ. वोटर वेरिफायड पेपर ऑडिट ट्रायल (वीवीपैट) के माध्यम से विभिन्न दलों द्वारा उठाये जा रहे सवालों का जवाब मिल जायेगा. आयोग ने मतदान के बाद होने वाली मतगणना में इस प्रणाली को अनिवार्य कर दिया है. मतदान के दौरान प्रयोग की जानेवाली वीवीपैट मशीन में हर मतदाता द्वारा किये गये मतदान का एक-एक स्लिप निकलता है. किस मतदाता ने किस उम्मीदवार को मत दिया है इसका स्लिप के रूप में लिखित दास्तावेज एक बॉक्स में संग्रहित होता है. भारत निर्वाचन आयोग के निर्देश के बाद वीवीपैट को हर बूथ पर ईवीएम के साथ स्थापित की जायेगी. नये प्रावधान के अनुसार हर विधानसभा के एक बूथ पर ईवीएम में डाले गये सभी वोटों का मिलान वीवीपैट में संग्रहित स्लिप से की जायेगी.
क्या है वीवीपैट
भारत निर्वाचन आयोग द्वारा मतदान के दौरान एक ऐसी डिवाइस विकसित की गयी है, जो मतदान के बाद इसका एक सॉफ्ट डाटा ईवीएम में दर्ज करती है. ईवीएम से जुड़ा एक बॉक्स भी होता है, जिसमें मतदाता के मतदान के बाद एक स्लिप निकलता है. इस स्लिप में वोटर द्वारा जिस उम्मीदवार को मतदान किया गया है उसका स्लिप निकलता है.
हार्ड कॉपी के रूप में यह एक बॉक्स में
संगृहीत होता है. इसी हार्ड कॉपी से हर विधानसभा क्षेत्र के एक बूथ का बॉक्स में संगृहीत स्लिप से मिलान किया जाता है.
जदयू को मिले राजस्थान व छत्तीसगढ़ में 24 हजार मत
जदयू दूसरे राज्यों में सांगठनिक विस्तार में जुटा है. इस विस्तार के लिए पार्टी के लिए चुनौतियां कम नहीं है. पार्टी ने राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जदयू की प्रदेश इकाई की मांग पर अपने प्रत्याशी उतारे थे.
दोनों राज्यों में पार्टी ने 12-12 प्रत्याशी मैदान में उतारे थे. इन राज्यों में कुछ प्रत्याशियों के प्रदर्शन बेहद चुनौती वाले साबित हुए. दोनों राज्यों में पार्टी को कुल 24 हजार मत प्राप्त हुए हैं. औसतन एक प्रत्याशी को एक हजार मत मिले हैं. राजस्थान में 12 विधानसभा क्षेत्रों में 15948 मत प्राप्त हुए हैं. वहीं, छत्तीसगढ़ में सभी 12 प्रत्याशियों को महज 8159 मतों से ही संतोष करना पड़ा.
पटना :हिंदी पट्टी के तीन बड़े राज्यों में कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में मिली जबरदस्त सफलता से बिहार कांग्रेस को भी नयी ऊर्जा मिली है. पार्टी को इसका लाभ 2019 के चुनाव में मिलेगा. अब बिहार जैसे राज्यों में जहां वह गठबंधन की राजनीति में है, अपनी बात बेहतर और दमदार तरीके से रख सकेगी.
पार्टी नेता तीन राज्यों में सरकार बनने से खासे उत्साहित हैं. बिहार कांग्रेस के लिए दोहरी खुशी की बात इसलिए भी है कि बिहार के एक कांग्रेस नेता चंदन यादव छत्तीसगढ़ के प्रभारी थे. जहां कांग्रेस ने जबरदस्त तरीके से वापसी की है. पार्टी नेता और कार्यकर्ता अब इस ऊर्जा का फायदा 2019 के लोकसभा चुनाव में उठायेंगे. बिहार में कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या आपसी खेमेबंदी है.
इन्हीं कारणों से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी सहित कई नेता कांग्रेस छोड़ दूसरी पार्टी में शामिल हो गये. इसलिए जिस तरह से आपसी गुटबाजी को पाटकर कांग्रेस ने राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में अपनी जीत को मुश्किल से आसान बनाया उसी तरह की रणनीति बिहार में भी अपनानी होगी. पार्टी में इस पर मंथन शु्रू हो गया है. हालांकि, पार्टी नेता किसी तरह की गुटबाजी और खेमेबंदी से इन्कार करते हैं.
अहंकार से बचाव : दूसरा पहलू यह भी है कि जीत से उत्साहित कांग्रेस
नेताओं को अपने अंदर पनपने वाले अहंकार को रोकना होगा. कांग्रेस अब महागठबंधन बनाकर आगामी लोकसभा चुनाव लड़ेगी. इसलिए यदि नेताओं में अहंकार रहा तो अन्य दलों के साथ साझेदारी में खटपट हो सकती है. इसका नुकसान कांग्रेस नेताओं को उठाना पड़ सकता है.
सीट बंटवारे में फायदा माना जा रहा है कि
इस जीत के बाद कहीं ना कहीं देश के लोगों के बीच कांग्रेस यह संकेत देने में सफल हुई है कि वह भाजपा से सीधी टक्कर ले सकती है. इससे कांग्रेस की स्वीकार्यता भी महागठबंधन के घटक दलों के बीच बढ़ेगी. इसका फायदा सीट बंटवारे के समय कांग्रेस को हो सकता है.
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ मदन मोहन झा और बिहार चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष डॉ अखिलेश प्रसाद सिंह ने प्रदेश कांग्रेस में इस समय किसी भी तरह की गुटबाजी से इन्कार किया किया है. साथ ही उन्होंने कहा है कि महागठबंधन के घटक दलों के साथ लोकसभा चुनाव के लिए सीट बंटवारे में किसी भी तरह की समस्या नहीं होगी. हालांकि, अभी इस मुद्दे पर कोई बात नहीं हुई है. सभी विपक्षी दल एनडीए को हराने के मुद्दे पर एकमत हैं.
बदलाव चाहते हैं लोग
डॉ मदन मोहन झा ने कहा कि संगठन कीमजबूती चुनावी मुद्दा और काम नहीं है. इसका उल्लेख पार्टी के संविधान में भी है. उसके अनुसार पंचायत और बूथ स्तर पर कमेटी बनानी है. जाति और धर्म के नाम पर वोट मिलने के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि पांच राज्यों के चुनाव में जनता ने इससे ऊपर उठकर एनडीए की सरकार के खिलाफ वोट दिया. ठीक ऐसा ही बिहार में भी होगा. इसका कारण यह है कि एनडीए सरकार की नीतियों से जनता परेशान हो चुकी है और बदलाव चाहती है.
तीन राज्यों में कांग्रेस को मिली सफलता से बिहार कांग्रेस को भी मिली नयी ऊर्जा
बिहार में लोकसभा चुनावके दौरान कांग्रेस को कब कितनी सीटें मिलीं
वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में बिहार में कांग्रेस ने राजद सहित अन्य दलों के साथ गठबंधन कर चार सीटों पर चुनाव लड़ी. इसमें से तीन पर विजय मिली. वहीं वर्ष 2009 में कांग्रेस अकेले 10 सीटों पर चुनाव लड़ी. इसमें दो सीटों पर जीत मिली.के लोकसभा चुनाव में राजद के साथ गठबंधन में कांग्रेस को 12 सीटें मिलीं, जिनमें से दो पर जीत मिली.
क्या कहते हैं
राबड़ी देवी ने कहा है कि 2019 में जनता भाजपा को पूरी तरह उखाड़ फेंकेगी. इसकी शुरुआत हो चुकी है. उन्होंने भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए राजस्थान, मध्यप्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम की जनता को बधाई दी है.
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता राजीव रंजन ने कहा है कि राज्यों के चुनाव परिणामों का असर 2019 के लोकसभा चुनावों पर नहीं पड़ेगा. देश में मोदी लहर कायम है. भाजपा पूरी तरह जनादेश का सम्मान करती है और अपनी कमियों को दूर करने का हरसंभव प्रयास करेगी. हार के कारणों की पार्टी समीक्षा कर रही है. भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि विधानसभा चुनावों के समीकरण और मुद्दे लोकसभा चुनावों से पूरी तरह अलग होते हैं.
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने ट्वीट करके मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला बोला है. उन्होंने कहा है कि खेमा बदलने के बाद मुख्यमंत्री ने कहा था कि मोदीजी (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) का मुकाबला करने की क्षमता इस देश में किसी में नहीं है. शायद वह अपनी तरह ही सब को समझते हैं. लेकिन, वह विनम्रता से नीतीशजी से पूछना चाहते हैं कि इस बारे में अब उनका क्या विचार है. कहीं फिर से खेमा बदलने के बारे में तो नहीं सोच रहे हैं. उन्होंने अंत में सीएम को चाचाजी कहकर संबोधित करते हुए प्रश्न किया है.
पटना : एक दौर था, जब बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में एकतरफा जीत हासिल की थी. उस वक्त भाजपा समर्थकों या यूं कहें मोदी भक्तों की एक लंबी फौज ने सोशल मीडिया पर सक्रिय होकर कांग्रेस से लेकर अन्य विरोधी दलों का जमकर मजाक उड़ाया था.
कांग्रेस विरोधियों ने राहुल गांधी को सोशल मीडिया का सबसे फनी कैरेक्टर बना कर छोड़ा दिया था, लेकिन इस बार तीन बड़े राज्यों में भाजपा की हार के बाद स्थिति पलट गयी है. जो कभी सोशल मीडिया के हीरो थे. आज यूजर उनका गिन-गिन कर मजा ले रहे हैं. फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर पर मंगलवार के दोपहर से ही ब्रांड मोदी और यूपी के सीएम योगी सहित पूरी भाजपा को लेकर तरह-तरह के फनी जोक्स पोस्ट किये जा रहे हैं.
यहां तक की मध्य प्रदेश के चुनाव परिणाम देर से आने को लेकर चुनाव आयोग पर भी लोग कॉमेंट करने से बाज नहीं आये. सबसे मजाकिया कटाक्ष यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा शहरों के नाम बदलने को लेकर किये गये हैं. इसमें पोस्ट किया गया है कि भाजपा के हारने के बाद पीएम मोदी योगी जी को फोन कर पूछते हैं कि अब क्या किया जाये, जवाब में योगी कह रहे हैं कि अब कांग्रेस का नाम बदल कर भाजपा रख देते हैं.
आपने हनुमानजी की ‘जात’ बतायी और उन्होंने आपकी ‘औकात’
भाजपा के हारने के बाद हनुमान जी से संबंधित कई जोक्स सोशल मीडिया पर सबसे हिट हैं. योगी के हनुमान जी को दलित बताने वाले बयान पर जमकर खिंचाई की जा रही है. एक यूजर ने फेसबुक पर पोस्ट किया कि आपने (भाजपा) हनुमान जी की जात बतायी और उन्होंने आपकी औकात (हराकर) बता दिया. एक पोस्ट ये भी किया गया है कि और ‘बनाओ हनुमानजी का जाति प्रमाणपत्र, मिल गया न मंगलवार को प्रसाद’. वहीं, एक भोजपुरी गाने पर पर भी भाजपा का पोस्टमार्टम किया जा रहा है. ‘ नू रोटी खाएंगे, चौकीदार (मोदी) को भगाएंगे… ठीक है!
इसके अलावा मोदी के स्वच्छता अभियान के आधार पर भी सोशल मीडिया यूजर कह रहे हैं कि पांच राज्यों में स्वच्छ भारत का अभियान सफल रहा. इसके अलावा अमित शाह, शिवराज सिंह चौहान, नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ की फोटों पर कई तरह के फनी काॅमेंट लिख पोस्ट किये जा रहे हैं. इसके अलावा गाय, गोबर, इवीएम से संबंधित कई कॉमेंट पोस्ट सोशल मीडिया पर भरे पड़े हैं.
कई यूजरों ने लिखा है कि हमने एक बोरा आलू खरीद कर रख लिया है
ऐसा नहीं कि हारने के बाद सोशल मीडिया पर केवल भाजपा की खिल्ली उड़ रही है. भाजपा समर्थक सोशल मीडिया यूजरों ने अभी मैदान नहीं छोड़ा है. जीत के बाद भी कांग्रेस और राहुल गांधी पर कॉमेंट व फनी पोस्ट जारी हैं. जीत के बाद कई यूजरों ने लिखा है कि हमने एक बोरा आलू खरीद कर रख लिया है, पता नहीं कब आलू से सोना बनाने वाली मशीन लगा दी जाये. कुछ यूजर कह रहे हैं कि बेरोजगार सड़कों पर ऐसे नहीं घूमें, उन्हें पकड़ कर सरकारी नौकरी दे दी जायेगी.
पांच राज्यों के चुनाव परिणाम के बाद उत्साहित बिहार कांग्रेस के नेताओं ने पोस्टर वार से इसका जवाब दिया है. कांग्रेस के पूर्व सचिव सिद्धार्थ क्षत्रिय और ई वेंकटेश रमण ने एक पोस्टर जारी किया है, जिसमें राम हनुमान मिलाप के फोटो के साथ लिखा है कि प्रभु हमें दलित बताने वाले योगी को भी पांच राज्यों की तरह क्षमा नहीं कीजिए. एक दूसरे वाक्य में रामचरितमानस की ये पंक्तियां लिखी गयी हैं निर्मल जन सो मोहे पावा, मोहि कपट छल छिद्र न भावा.भेद लेन पठवा दससीसा, तबहुं न कछु भय हानि कपीसा.

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