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वायु प्रदूषण ने बढ़ायी अस्थमा व दिल के मरीजों की संख्या, पटना का नया टेंशन बना पीएम 2.5

बिहार में पीएम 2.5 की मात्रा देश के औसत से काफी अधिक पटना : पटना ही नहीं कमोबेश समूचे बिहार का सबसे बड़ा और नया दुश्मन (बाढ़ के बाद) पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) 2़ 5 बन गया है. यह देखते हुए कि बिहार में पीएम 2.5 की मात्रा सामान्य (स्टैंडर्ड मात्रा चालीस माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर) […]

बिहार में पीएम 2.5 की मात्रा देश के औसत से काफी अधिक
पटना : पटना ही नहीं कमोबेश समूचे बिहार का सबसे बड़ा और नया दुश्मन (बाढ़ के बाद) पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) 2़ 5 बन गया है. यह देखते हुए कि बिहार में पीएम 2.5 की मात्रा सामान्य (स्टैंडर्ड मात्रा चालीस माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर) से करीब तीन गुना और देश के वार्षिक औसत 90 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से काफी ज्यादा है.
जाहिर है कि यहां के जीवन पर पीएम 2़ 5 बड़ा खतरा बन गया है. बिहार स्टेट पॉल्यूशन बोर्ड के अध्यक्ष डॉ अशोक कुमार घोष ने स्वीकार किया कि पटना, मुजफ्फरपुर और गया के अलावा दरभंगा, भागलपुर सहित दूसरे शहरों में भी पीएम 2़ 5 घातक बन गया है.
उन्होंने साफ किया कि हमने एक विशेष एक्शन प्लान बनाया है, उसके रिजल्ट अगले छह से आठ माह में आयेंगे. पीएम 2़ 5 उत्पन्न होने की संबंध में उन्होंने एक खास वजह भी बतायी. उन्होंने कहा कि पटना और कमोबेश समूचे बिहार की मृदा में रेत के कण अधिक हैं. इसके चलते धूल अधिक उड़ती है. इसकी पुष्टि हाल ही में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की रिपोर्ट से हो रहा है.
क्या है पीएम 2.5
ये सूक्ष्म कण होते हैं. इनका आकार 2.5 माइक्रोमीटर से कम होता है. ये आसानी ने सांस के साथ शरीर के अंदर जाकर गले में खराश, फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं. शरीर में जकड़न पैदा करते हैं.
इन्हें एंबियंट फाइन डस्ट सैंपलर पीएम 2.5 से मापते हैं. इनका आकार हवा की मोटाई से 30 गुणा कम होता है. यह ठोस और द्रव रसायनों से मिल कर बना हो सकता है.
पटना में इस दशक में पीएम 2.5 की वर्षवार मात्रा (माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर)
साल मात्रा
2011 अप्राप्त रहा
2012 113
2013 अप्राप्त
2014 122
साल मात्रा
2015 204
2016 122
2017 116
नोट : पीएम 2़ 5 की नॉर्मल मात्रा 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर मानी गयी है. इस तरह ऊपर दिये गये आंकड़े इसकी भयावहता साबित करने के लिए काफी हैं.
पटना : मौसम में आये बदलाव से शहर का मर्ज बढ़ रहा है. हवा में प्रदूषण की परत जमी हुई है. इससे सुबह-शाम स्मॉग (धुंध सा) बना रहता है.साथ ही धीरे-धीरे ठंड भी बढ़ रही है. इस वजह से अस्थमा और दिल के मरीजों की परेशानी बढ़ने लगी है. इसके अलावा बुजुर्गों को भी दिक्कत हो रही है. मरीज सर्दी, जुकाम जैसे बीमारी से भी पीड़ित हो रहे हैं. शहर के पीएमसीएच, आईजीआईएमएस अस्पताल में जांच के लिए आने वाले मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. गला खराब, वायरल, बुखार के मरीज बढ़ रहे हैं. डॉक्टरों की माने तो इस प्रदूषण को खतरनाक बता रहे हैं. इसके अलावा अस्थमा के मरीजों को सांस लेने और बीपी के मरीजों को स्मॉग से घबराहट भी हो रही थी.
डॉक्टरों ने किया अलर्ट
पीएमसीएच के चेस्ट रोग विशेषज्ञ डॉ सुभाष झा ने कहा कि ठंड व प्रदूषण के कारण अस्थमा रोगियों की परेशानी बढ़ गयी है. कई मरीज इनहेलर्स और नेबुलाइजर्स लेकर आ रहे हैं. हालांकि दवा के निरंतर सेवन के बाद सांस संबंधी परेशानी खत्म हो जाती है. उन्होंने कहा कि सर्दी के मौसम में विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है.
बढ़ रही है परेशानी: अस्पतालों में सर्दी, नाक से पानी आना, अस्थमा और बीपी के मरीज इलाज के लिए पहुंच रहे हैं. यहां तक कि बच्चों को भी स्मॉग परेशान कर रहा है. प्रदूषण दोपहर में सबसे अधिक होता है. इस दौरान ही बच्चे स्कूल से घर जाते हैं. ऐसे में यह बच्चों को बीमार कर सकता है. यदि पूरे जिले के छोटे-बड़े अस्पतालों का अनुमान लगाएं तो बीपी और अस्थमा के 150-200 के मरीज इलाज के लिए पहुंच रहे हैं.

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