नयी दिल्ली/पटना : सांसद शरद यादव ने कहा कि कल देर रात सीबीआई निदेशक को जबरन छुट्टी पर भेजने और संयुक्त निदेशक को अंतरिम व्यवस्था के तौर पर निदेशक का प्रभार देने के सरकार के फैसले की मैं निंदा करता हूं. देश के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ है. सीबीआई निदेशक का चुनाव चयन समिति द्वारा किया जाता है जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों पर विधिवत निर्धारित नियमों में प्रदान किया गया है और नियमों में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि चयन समिति द्वारा ही निलंबन और निष्कासन भी किया जायेगा. सरकार द्वारा देर रात जो कुछ भी किया गया है वह संवैधानिक, नैतिक और राजनीतिक रूप से गलत और अवैध है.
शरद यादव ने कहा कि यह स्वतंत्र इकाई में हस्तक्षेप करने का बल प्रयोग मात्र है. शुरुआत में ही जब अस्थाना को विशेष निदेशक नियुक्त किया जा रहा था तब सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने इसका विरोध किया था और सरकार को इससे बचना चाहिए था. लेकिन, इसकी बजाय इन्हें नियुक्त किया गया क्योंकि वह बीजेपी अध्यक्ष और भारत के प्रधान मंत्री के करीबी माने जाते थे. यह केवल सरकार और बीजेपी थी जिसने देश के प्रमुख जांच इकाई में लड़ाई को बढ़ावा दिया जिसकी अपनी साख थी. न केवल सीबीआई की साख बल्कि देश में कई ऐसे अन्य संगठन हैं जिनमें स्वायत्त निकायों और संवैधानिक निकायों को पिछले चार वर्षों में नष्ट कर दिया गया है. यह पहली बार हुआ है कि सीबीआई सीबीआई के खिलाफ जांच कर रही है और अपने परिसर में ही छापे मार रही है. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि संगठन की साख जान बूझकर इस सरकार द्वारा गिरायी गयी है.
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में नियमों को ताक पर रखना कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता. जैसा कि पहले विशेष निदेशक नियुक्त किये गये और अब सीबीआई के निदेशक को जबरन छुट्टी पर भेजा गया है. जिस तरह से अन्य अधिकारियों को जो कि विशेष निदेशक के खिलाफ आरोपों की जांच करने के लिए नियुक्त किये गये थे उन्हें आनन-फानन में स्थानांतरित कर दिया गया है.
शरद यादव ने कहा कि जब सीबीआई निदेशक ने सरकार से राफेल जेट फाइटर की खरीद से संबंधित फाइले मांगी तब से सरकार में उच्चतम पदों पर बैठे लोगों और बीजेपी को सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा खटकने लगे. दोनों अधिकारियों ने एक दूसरे के खिलाफ जो आरोप लगाये हैं वह कितना सही है और कितना गलत मैं इस पर नहीं जाना चाहता. लेकिन, एक बात स्पष्ट है कि इससे सरकार का इरादा जरूर जगजाहिर हुआ है क्योंकि ऐसा करना सिर्फ अनुचित ही नहीं बल्कि बेहद संदिग्ध है. यह स्वतंत्र इकाई के मामलों में सरकार का प्रत्यक्ष हस्तक्षेप है जब प्रधान मंत्री ने सीबीआई निदेशक को उस वक्त बुलाया जब सीबीआई इस विशेष निदेशक अस्थाना के खिलाफ आरोपों की जांच कर रही थी जो कि उनके चहेते अधिकारी के रूप में जाने जाते हैं.