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बिहार : पिछले साल लापता हुए ढाई हजार घरों के चिराग का नहीं मिला कोई सुराग

पटना : पिछले साल राज्य के लापता हुए करीब ढाई हजार बच्चों का अब तक कोई सुराग नहीं मिल सका है. राज्य में ऐसे हजारों लोग है जिन्हें अपने बच्चों का इंतजार है. लापता हुए बच्चों में कुछ ऐसे हैं जो किसी आपदा में अपनों से बिछड़ गये, कुछ अपनी मर्जी से घर छोड़कर चले […]

पटना : पिछले साल राज्य के लापता हुए करीब ढाई हजार बच्चों का अब तक कोई सुराग नहीं मिल सका है. राज्य में ऐसे हजारों लोग है जिन्हें अपने बच्चों का इंतजार है. लापता हुए बच्चों में कुछ ऐसे हैं जो किसी आपदा में अपनों से बिछड़ गये, कुछ अपनी मर्जी से घर छोड़कर चले गए और कुछ को अगवा कर मानव तस्करी की आग में झोंक दिया गया. पिछले साल लापता हुए बच्चों में से ढाई हजार बच्चों का सुराग आज तक नहीं मिल पाया. खास बात यह है कि लापता हुए बच्चों में तकरीबन 40 प्रतिशत लड़कियां हैं.

बिहार पुलिस मुख्यालय से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक, पिछले वर्ष राज्य में 18 वर्ष से कम आयु के कुल 6139 बच्चे लापता हुए. इनमें से 3593 बच्चे ऐसे थे, जिन्हें या तो पुलिस ने बरामद कर लिया और या फिर वह खुद ही घर वापस लौट आये. लेकिन, 2546 बच्चों का आज तक कोई सुराग नहीं मिल पाया है. आशंका है कि इनमें से ज्यादातर बच्चे मानव तस्करी का शिकार हुए या नशे के दलदल में फंस जाते हैं. हर बरस लापता होने वाले बच्चों में बड़ी संख्या ऐसे बच्चों की होती है, जो किसी कारण से घर से भाग जाते हैं और फिर लौटकर नहीं आ पाते.

भागलपुर चाइल्ड लाइन संस्था के समन्वयक अमल कुमार के अनुसार, अकेले भागलपुर जिले से पिछले साल कुल 69 बच्चे लापता हुए. इनमें से 39 बच्चे लौट आये या पुलिस ने उन्हें सुरक्षित उनके घर पहुंचा दिया. लेकिन, बाकी 30 बच्चे कहां गये यह कोई नहीं जानता. जो बच्चे नहीं मिल पाते, उनके घरवालों की पीड़ा कोई और नहीं समझ सकता. वह कभी थाने के चक्कर लगाते हैं तो कभी भगवान के सामने माथा झुकाते हैं.

केंद्र निदेशक मनोज पांडेय ने बताया कि बच्चों के भागने की मूल वजह माता-पिता की डांट, घर की माली हालत और पढ़ाई का दबाव होता है. कुछ मामले शारीरिक शोषण के भी होते हैं. ऐसे में बच्चों की मानसिकता को समझते हुए घर और समाज में माहौल बनाने की जरूरत है. वह इसमें आम लोगों की भागीदारी को जरूरी मानते हैं. उनका कहना है कि कहीं कोई बच्चा संदिग्ध अवस्था में दिखे, तो लोगों को 1098 पर तत्काल फोन करके उसकी जानकारी देनी चाहिए.

बिहार की अपराध अनुसंधान शाखा के अपर पुलिस महानिदेशक विनय कुमार ने बताया कि लापता बच्चों के मामलों में पहले शिकायत दर्ज की जाती थी, लेकिन 2013 में उच्चतम न्यायालय ने लापता मामलों में भी प्राथमिकी दर्ज किये जाने का निर्देश दिया. जिसके बाद से लापता मामलों में भी अब प्राथमिकी दर्ज किये जाने पर वर्ष 2017 में सामान्य अपहरण के दर्ज मामलों की संख्या 8972 रही. जबकि 2013 में ऐसे मामलों की संख्या 5506 थी. उससे पिछले बरस की बात करें तो राज्य में 2016 में सामान्य अपहरण के 7324 मामले दर्ज किये गये थे, जबकि इस वर्ष के अप्रैल माह तक ऐसे दर्ज मामलों की संख्या 3051 पहुंच चुकी है. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, बिहार में 2016 और 2017 में हत्या के इरादे से अपहृत मामलों की संख्या क्रमश: 88 और 137 रही. जबकि फिरौती के लिए अपहरण के क्रमश: कुल 37 व 42 मामले दर्ज किये गये. अप्रैल 2018 तक ऐसे मामलों की संख्या 18 पहुंच गयी है. 2017 में मानव तस्करी के 121 दर्ज मामलों में कुल 379 बच्चों को मुक्त कराया गया और इस दौरान कुल 347 तस्करों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें 72 महिला तस्कर भी शामिल हैं. इसी तरह 2018 के अप्रैल महीने तक दर्ज 37 मामलों में कुल 136 बच्चों को मुक्त कराया गया और कुल 93 तस्करों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें 14 महिला तस्कर भी शामिल हैं.

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