पटना : पटना के विकास प्रबंधन संस्थान, बिहार सरकार और एक्शन मीडिया के संयुक्त तत्वावधान में बिहार डायलाग का आज आयोजन किया गया. कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रसिद्ध बाढ़ विशेषज्ञ डॉ दिनेश कुमार मिश्र ने कहा कि 1984 को नौहट्टा में बांध टूटा और मुझे एक इंजिनियर की तरह भेजा गया. बिहार में बाढ़ कि समस्या से निजात पाने के लिए नेपाल से 1937 से बात चल रही है जो हमारे प्राथमिकता को दर्शाता है. अनुमानतः 2060 तक गंगा घाटी में पीने के पानी की समस्या शुरु हो जायेगी. हम आज अर्ली वार्निंग सिस्टम की बात कर रहे है, उसपर 1966 में सबसे पहले महावीर रावत ने विधान सभा में पूछा था. हम अब तक इसे नहीं विकसित कर पायें है. बांध टूटने के बारे में बताते हुए उन्होंने कहां कि कई बार तटबंधों का कटाव लोग स्वयं करते है, ताकि बाढ़ कि विभिषिका और उसके द्वारा होने वाले जान और माल का नुकसान कम हो सके. जोर देते हुए उन्होंने कहा कि हम योजनाएं बनाने में तो सबसे अव्वल हैं, लेकिन उनको जमीन पर उतरने में काफी नीचे के स्तर पर हैं. जरूरत योजनाओं को अमली जमा पहनने की हैं.
तालाबों के संरक्षण में लगे प्रसिद्ध समाजसेवी नारायणजी चौधरी ने कहा कि तालाबों का संबंध हमारे जीवन, हमारी संस्कृति से है. फ्रांसिस बुकानन जिन्होंने पूर्णिया गजेटियर तैयार किया था, के एक सर्वे के अनुसार बलुहा घाट में 1807 में 122 प्रकार की मछली की प्रजाति पाई जाती थी जो अब मुश्किल से 50 प्रकार की ही रह गया है. तालाब को जलीय जीव और जलीय विविधता के मदद से मेंटेन कर सकते हैं. दरभंगा के दिग्ग्धी और हरारी नामक तलाबों का उदाहरण देते हुए चौधरी ने कहा कि इनका इतिहास 900 से 1000 साल पुराना है. हमें जरूरत हैं अपने इस समृद्ध विरासत को फिर से जीवंत करने की. नयी व्यवस्था में तालाबों का मालिकाना हक सरकार का हैं जिसकी बंदोबस्ती की जाती हैं कुछ नये बदलाव कर ऐसी व्यवस्था होना चाहिए जहां तालाबों के प्रबंधन की जिम्मेदारी गांव की हो तब उनके, सरंक्षण के साथ ही उनका प्रबंधन भी आसान होगा.
वार्ता का समन्वयन विकास प्रबंधन संस्थान के प्रोफेसर सूर्य भूषण ने किया. उन्होंने कहा कि विकास की बात बिल्कुल एकांगी नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसे समग्र होना चाहिए. उन्होंने वक्ताओं का धन्यवाद देते हुए कहा की ऐसी वार्ताएं और निरंतरता और अंतराल से होनी चाहिए.